'घर के सारे कामों के बाद स्कूल आने वाली लड़कियाँ पढ़ाई में भी हैं आगे'

आशुतोष त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के पूर्व माध्यमिक बालिका विद्यालय कन्वारा में शिक्षक हैं, साल 2019 से बच्चियों को पढ़ा रहे हैं। उनकी कोशिश है कि हर एक बच्ची आगे बढें। टीचर्स डायरी में वो अपना अनुभव साझा कर रहे हैं।

Update: 2023-08-16 13:06 GMT

हमारा स्कूल नदी के किनारे बना हुआ है, यहाँ लड़कियाँ कई किमी दूर से आती हैं। मुझे लगता है कि हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन असल काम तो हमारे स्कूल की लड़कियाँ करती हैं।

उनके बारे में जानकर मेरा नज़रिया बदल गया, स्कूल आने से पहले ये बच्चियाँ पाँच-छह लोगों का खाना बनाने के बाद दो से ढाई किमी साइकिल चलाकर स्कूल आती हैं। यही नहीं स्कूल से जाने के बाद भी घर जाकर सारा काम करती हैं और पढ़ाई में भी अच्छी हैं।

मैं जब भी क्लास में पढ़ाता हूँ तो कोशिश रहती है कि उनका दोस्त बन कर रहूँ, जिससे वो अच्छे कनेक्ट हो सकें।


एक बार क्लास में मैं बच्चियों से बातें कर रहा था, तभी एसी की बात चली तो कुछ बच्चियों ने एसी के बारे में पूछा कि सर एसी कैसी होती है। मुझे बच्चियों के लिए बहुत बुरा लगा कि दुनिया कितनी आगे और हमारी इन बच्चियों ने अभी एसी भी नहीं देखा है।

मैंने अपने दोस्तों से इस बात की चर्चा की तो हमने सोचा क्यों न स्कूल में एसी लगवाते हैं। फिर क्या था, हमने मिलकर स्कूल में बच्चियों के लिए एसी लगवाया और हम जैसे बाहर आए बच्चियाँ एसी आन करके एसी की हवा महसूस कर रहीं थी, जो देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा।

हमेशा यही कोशिश रहती है कि बच्चियों को हर तरह से समझ सकूँ, लेकिन बच्चियों में जब हार्मोनल बदलाव होते रहते हैं, क्लास में बैठी किस बच्ची को क्या समस्या हो जाए, इसका अंदाजा हम नहीं लगा सकते हैं, क्योंकि बच्चियों को भी जानकारी नहीं रहती हैं। और बच्चियाँ बात करने में भी हिचकिचाती रहती हैं, हमारे स्कूल की महिला टीचर और रसोइया से वो अपनी परेशानी बताती हैं। इसलिए हमने बच्चियों के लिए स्कूल में पैड की भी व्यवस्था की है।

मीटिंग में बच्चियों की मम्मी आती तो हैं, लेकिन उनका घूंघट रहता है, वो कहती हैं कि सर हम खुद ज़्यादा पढ़े नहीं हैं तो हम बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। मैंने उन्हें समझाया कि आप बस इतना देखिए कि आपकी बच्चियाँ खुश तो हैं, बाकी तो हम देख ही रहें हैं। लड़कियाँ पढ़ाई में भी अच्छी हैं।

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