"जब शहर के थियेटर में थ्रीडी फिल्म देखने पहुँचे गाँव के सरकारी स्कूल के बच्चे"

ममता सिंह, उच्च प्राथमिक विद्यालय, नरायनपुर, अमेठी की प्रधानाध्यापिका हैं, टीचर्स डायरी में बाल दिवस के दिन का क़िस्सा साझा कर रहीं हैं, जब पहली बार उनके स्कूल के बच्चे थियेटर में फिल्म देखने पहुँचे।

Update: 2023-11-16 12:09 GMT

वीकेएनएस मॉल के सिनेमा हॉल में थ्री डी में कैप्टन मार्वेल देखते हुए बच्चों का मुँह खुला रह गया, उनके लिए यह स्वप्न सरीखा था।

'एलिस इन वंडरलैंड' में एलिस को दूसरी दुनिया में जाकर कैसा लगा होगा यह हमने उस दिन यूपीएस नरायनपुर के बच्चों के चेहरे देखकर जाना।

जब दुनिया तेज़ी से बदल रही, जब टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल से भी आगे एआई का दबदबा बढ़ता जा रहा है, एक छोटे से सरकारी स्कूल के बच्चों, रसोइया के लिए सिनेमा हॉल में फ़िल्म देखना एक असंभव स्वप्न था ,उसी समय में कुछ अद्भुत घटता है।

बच्चों को बड़ा सपना दिखाना, बड़ी दुनिया की बातें बताना आसान है पर उनकी फरमाइश मसलन जिलाधिकारी से मिलना , मेट्रो ट्रेन में बैठना , शहर में फ़िल्म देखना , हवाई जहाज पर बैठना बहुत मुश्किल है; पर इनकी कठिन ख्वाहिशों में पिछले बरस जिलाधिकारी से मिलना और इस बरस शहर में फ़िल्म देखना पूरा हुआ।


पूरा कैसे हुआ उसकी भी कहानी है; मेरे लिए लगभग असंभव और बजट से बाहर की बात थी कि कुल 69 बच्चों को एक साथ फिल्म दिखा पाऊं, पर इस कायनात में ऐसे फरिश्ता दिल लोग भी हैं जो बच्चों की मासूम ख्वाहिश सुनकर उसे पूरा कर देते हैं।

सुल्तानपुर शहर के प्रतिष्ठित शैक्षिक, राजनीतिक परिवार के परिमल सर से मेरा कोई पूर्व परिचय नहीं होते हुए भी जब मैंने उनसे फ़ोन पर बच्चों की ख्वाहिश का ज़िक्र किया तो सर ने सहर्ष उनके लिए स्पेशल मॉर्निंग शो की व्यवस्था करवा दी। सुबह साढ़े सात बजे सर के मैनेजर अमन भैया और सारा स्टाफ बच्चों के वेलकम के लिए तैयार था। उन्होंने पूरे सम्मान और विनम्रता के साथ बच्चों को ऐसा स्पेशल ट्रीट दिया जिसे बच्चे आजीवन याद रखेंगे। फिल्म के साथ साथ पॉपकॉर्न, जूस और बेशुमार प्यार बच्चों को बोनस में मिला।

वीकेएनएस मॉल के सिनेमा हॉल में थ्री डी में कैप्टन मार्वेल देखते हुए बच्चों का मुँह खुला रह गया, उनके लिए यह स्वप्न सरीखा था।


सुबह सुबह ठंड में शहर पहुँचना भी एक चुनौती थी.. हमारे पास बंद गाड़ियों की व्यवस्था नहीं थी सो हम सब ई रिक्शा में सवार होकर फिल्म देखने पहुँचे। रास्ते में सरकारी स्कूल का यूनिफॉर्म पहने अनुशासित बच्चों को देखकर लोग आश्चर्य में पड़े, कुछे एक ने पूछताछ भी की कि सब कहाँ और क्या करने जा रहे हैं ।

रोज़ दुनिया की तमाम नकारात्मक ख़बरों के बीच ऐसी ख़बरें कितनी सुकूनदेह होती हैं कि हमारे बड़े बच्चों की न केवल परवाह करते हैं बल्कि उनके सपनों को सच करने में सहायता भी करते हैं..

हज़ार हज़ार सलाम और शुक्रिया परिमल सर, हम सब आपके आगे नतमस्तक हैं। स्नेह भरा आभार अमन भैया और उनकी टीम को। 

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