बारामूला की सैकड़ों ग्रामीण महिलाओं की कैसे दुनिया बदल दी एक जैम ने

‘ग्रासरूट्स इनोवेशन ऑग्मेंटेशन नेटवर्क’ एक गैर-लाभकारी संस्था है, जो कश्मीर के टीवाई शाह गाँव की महिलाओं को स्थानीय जंगलों में पाए जाने वाले जंगली रसभरी से जैम बनाने और उसकी मार्केटिंग करने में मदद कर रहा है।

Update: 2023-11-21 11:56 GMT

महिलाओं द्वारा बनाए गए इस जैम को ‘वाइल्ड रास्पबेरी जैम’ ब्रांड से बेचा जा रहा है, जिसे कश्मीरी महिलाएँ अपनी माँ और दादी से मिले पारंपरिक नुस्खों से तैयार करती हैं।

श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर। कश्मीर की हरी-भरी वादियों में बसे टीवाई शाह गाँव में जाने पर एक अलग ही नज़ारा देखने को मिलेगा। जो महिलाएँ कभी घर के कामों में व्यस्त नज़र आती थीं आज वे सभी जैम बनाने के कारोबार से जुड़ गई हैं।

रसभरी से बना जैम उनके स्वाद और जीवन में खुशियाँ लाने का कारण बन गया है। ये महिलाएँ आस-पास के जंगलों से जंगली रसभरी इकट्ठा करती हैं और फिर उसमें स्थानीय मसाले मिलाकर जैम तैयार करती हैं। यह सब होने के बाद उसे बोतलों में पैक करके दूसरी जगह पर बेचने के लिए भेज दिया जाता है।

महिलाओं द्वारा बनाए गए इस जैम को ‘वाइल्ड रास्पबेरी जैम’ ब्रांड से बेचा जा रहा है, जिसे कश्मीरी महिलाएँ अपनी माँ और दादी से मिले पारंपरिक नुस्खों से तैयार करती हैं।

ग्रासरूट्स इनोवेशन ऑग्मेंटेशन नेटवर्क (जीआईएएन) नामक एक गैर-लाभकारी संस्था महिलाओं को जंगलों में मिलने वाले जंगली रसभरी से जैम बनाने और उसे बेचने में उनकी मदद कर रही है। इस पहल को शुरू हुए तीन साल हो गए हैं। आज बारामूला जिले के गाँव की सौ से ज़्यादा महिलाएँ जैम बनाने के काम से जुड़ी हैं।


33 साल की आयशा जान ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमारा जैम पुराने नुस्खों से बनाया जाता है; जैम बनाकर और बेचकर हम न सिर्फ पैसा कमा रहे हैं बल्कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर को भी बचा रहे हैं।"

जैम बनाने का व्यवसाय शुरू करने से पहले टीवाई शाह गाँव की ज़्यादातर महिलाएँ घर पर या फिर खेतों में काम करती थीं। उन्होंने खुद से कभी कोई पैसा नहीं कमाया था।

फिर जीआईएएन ने कदम बढ़ाया और उन्हें जैम बनाने की ट्रेनिंग दी। 100 से ज़्यादा महिलाओं ने पास के जंगलों में उगने वाले जंगली रसभरी, चेरी और अन्य फलों को हाथ से चुनने, उन्हें साफ करने और उन्हें जैम में बदलने की कला सीख ली।

हर सुबह टोकरियों को हाथ में उठाए महिलाएँ घर से निकल पड़ती हैं और बड़ी ही सावधानी से सबसे पके और रसीले फलों को चुन-चुन कर अपनी टोकरियों में भर लेती हैं। जैम बनाते समय किसी भी तरह के प्रिजरवेटिव, एडेटिव या आर्टिफिशियल फ्लेवर का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। रसभरी के प्राकृतिक स्वाद और सुगंध को बरकरार रखते हुए पारंपरिक तरीकों से बेहतरीन जैम तैयार किया जाता है।


महिलाएँ पूरे दिन में जितनी भी रसभरी इकट्ठा करती हैं, उसी के आधार पर उन्हें गैर-लाभकारी संस्था भुगतान करती है। औसतन, हर महिला एक महिने में 5 से 6 हजार रुपये तक कमा लेती है।

जैम बनाने के व्यवसाय से जुड़ी एक और महिला आसमा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमारे जंगलों में जंगली रसभरी के साथ -साथ अन्य फलों की भरमार है। इनसे जैम बनाकर, हम न सिर्फ बर्बादी कम करते हैं, बल्कि प्रकृति से जुड़ी चीजों को भी बढ़ावा दे रहे हैं; हम अपने गाँव के प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित कर रहे हैं।"

इस व्यवसाय से जुड़ी इन्हीं महिलाओं में से एक के घर में वर्कशॉप आयोजित की जाती है। ये महिला इस कार्यशाला में इकट्ठा होती हैं, जहाँ रोज़ाना मीटिंग की जाती है और आगे क्या काम करना है, इसकी योजना बनाई जाती है।

शुरुआत में तो महिलाओं ने पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करके अपने घरों में ही जैम बनाने का काम किया था। लेकिन जैसे-जैसे उनका बिजनेस बढ़ने लगा, उन्होंने एक सहकारी समिति की स्थापना की और उत्पादन बढ़ाने के लिए अपने संसाधन और स्किल पर काम करना शुरू कर दिया।

इस प्रोजेक्ट के साथ कुल 111 महिलाएँ जुड़ी हैं। ग्रासरूट्स इनोवेशन ऑग्मेंटेशन नेटवर्क इनकी मदद करता है। इस गैर-सरकारी संगठन का मुख्यालय अहमदाबाद, गुजरात में है। आज टीवाई शाह गाँव की महिलाएँ सामूहिक रूप से हर साल लगभग 250 किलोग्राम जैम बनाती है। माँग के आधार पर इसे बढ़ाया भी जा सकता है।


मौजूदा समय में, इस प्रोजेक्ट का सालाना कारोबार लगभग 500,000 रुपये से 8,00,000 रुपये है।

जीआईएएन के सह-संस्थापक सबजार अहमद ने बताया, "जैम की हर बोतल ग्रामीण कश्मीर की महिलाओं के बदलाव और उनके दृढ़ संकल्प की कहानी सुनाती है।" इस संगठन के दूसरे संस्थापक सैयद नदीम हैं। और इन दोनों ने मिलकर कश्मीर में आजीविका परियोजनाएँ शुरू की हैं।

महिलाएँ जून और जुलाई में पीक सीजन के दौरान जँगल से रसभरी तोड़ती हैं और उन्हें स्वादिष्ट जैम में बदल देती हैं। रसभरी की उपलब्धता के आधार पर, उत्पादन की सटीक मात्रा हर साल अलग हो सकती है।

महिलाओं के मुताबिक, जैम को तैयार करने में उन्हें लगभग तीन सप्ताह का समय लगता है। 500 ग्राम जैम की एक बोतल बनाने में 1.5 किलोग्राम जंगली रसभरी लगती है। इस बोतल की कीमत 500 से 600 रुपये है।

अब ये उत्पाद ऑनलाइन भी मिलने शुरू हो गए हैं। इस कारण अब उनके ग्राहक भी बढ़ने लगे हैं। ये जैम जीआईएएन की आधिकारिक वेबसाइट पर बेचे जाते हैं।


महिलाओं की समूह नेता हुमैरा मोहिदीन ने गाँव कनेक्शन को बताया, “इस पहल ने हमें अपने परिवारों की मदद करने और स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान देने का मौका दिया है; खुद से पैसे कमाना अच्छा लगता है।"

रजिया यूसुफ खुश है क्योंकि वह जो पैसा कमाती है उससे वह अपने बच्चों के भविष्य के लिए बचा कर रख रही है। यूसुफ ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मैं अब अपने परिवार को चलाने में मदद कर रही हूँ; यह एक ऐसा अहसास है जिसे बयाँ करना मुश्किल है।"

जैम व्यवसाय की सफलता से गाँव के लोगों की जीवनशैली में सुधार हुआ है। वे अब अपने बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा का खर्च उठाने, स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंचने और अपने घरों की मरम्मत और उन्हें फिर से बनाने के काबिल हो गए हैं। सबसे बड़ा फायदा तो ये है कि महिलाओं का खुद पर विश्वास बढ़ गया है और समुदाय में उनकी एक पहचान बन गई है। परिवार वाले अब उन्हें तवज्जो देने लगे हैं।

अहमद ने गाँव कनेक्शन को बताया, "टीवाई शाह गाँव में जैम बनाने का प्रोजेक्ट इस बात का उदाहरण है कि कैसे नए विचार और लोगों की मदद, समुदायों में बदलाव ला सकते हैं; इन महिलाओं ने अपनी किस्मत खुद सँभाल ली है और दूसरों के लिए रोल मॉडल बन गई हैं।"


उन्होंने कहा कि महिलाओं का भविष्य उज्ज्वल दिख रहा है क्योंकि उनके द्वारा बनाए गए जैम की माँग बढ़ रही है। उन्होंने बताया, "वे अब अपने नए उत्पादों जैसे प्रिजर्वेटिव-फ्री जूस और तेल को बेचने के लिए आगे कदम बढ़ा रही हैं।"

जीआईएएन महिलाओं को स्थानीय और उनके गाँव के बाहर अपना जैम बेचने के लिए विभिन्न रास्ते तलाशने में मदद करता है। ये महिलाएँ स्थानीय दुकानों, बाजारों और सैलानियों को आकर्षित करने वाले इलाकों में भी अपने उत्पादों की सप्लाई करती हैं। वे क्षेत्रीय मेलों और प्रदर्शनियों में भी भाग लेती हैं।

फिलहाल इस प्रोजेक्ट को और बड़ा करने पर काम चल रहा है। लिपस्टिक और लिप बाम जैसे मेकअप प्रोडक्ट की तरफ जाने की योजना है। जीआईएएन चाहता है कि पड़ोसी गाँवों की भी महिलाओं को ट्रेनिंग देकर, उन्हें अपना उद्यम शुरू करने में सक्षम बनाया जाए।

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