उपोष्ण जलवायु में भी कर सकतें हैं आंवले की बागवानी

Update: 2016-06-13 05:30 GMT
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लखनऊ। पिछले कुछ वर्षों में आयुर्वेदिक कंपनियों में आंवला की मांग बढ़ने से किसानों को काफी मुनाफा हो रहा है। आंवला का पौधा एक बार लगा देने पर ज्यादा देखभाल की भी जरुरत नहीं होती है।

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़, रायबरेली, सुल्तानपुर, आगरा और मथुरा जिलों में आंवले की खेती होती है, लेकिन प्रतापगढ़ में प्रदेश के आवंला उत्पादन में 80 प्रतिशत भागीदारी है। प्रतापगढ़ जिले के 16 ब्लॉकों में लगभग 12000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में आंवले की खेती होती है।

प्रतापगढ़ जिला उद्यान अधिकारी वीके सिंह आंवला की बागवानी के बारे में बताते हैं, “बलुई मिट्टी के अलावा  सभी तरह की मिट्टी में आंवला कि खेती की जा सकती है। जहां पर बारिश कम होती हैं वहां पर भी इसकी बाग अच्छे से तैयार की जा सकती है।” वो आगे कहते हैं, “जून महीने में ही गड्ढे खोद लेने चाहिए, ताकि जुलाई में अच्छे से पौध लगाई जा सके।”आंवला उष्ण जलवायु का पेड़ होता है, इसकी खासियत ये भी है कि इसे शुष्क जगह पर भी आसानी से लगाया जा सकता है।

उपोष्ण जलवायु में भी सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है इसके पेड़ लू और पाले से अधिक प्रभावित नहीं होते है। यह 0.46 डिग्री से तापमान सहन करने की क्षमता रखता है पुष्पन के समय गर्म वातावरण अनुकूल होता है। प्रतापगढ़ जिले के गोड़े गाँव के किसान प्रभाकर सिंह ने पांच बीघा में आंवला के बाग लगाए हैं और इसकी पौध भी बेचते हैं। प्रभाकर सिंह बताते हैं, “चार-पांच साल में आंवले का अच्छा मार्केट मिलने लगा है, दूसरे प्रदेश के व्यापारी भी यहां से पौध ले जाकर पौध तैयार कर रहे हैं।”

बागवानी तैयार करने का तरीका

ऊसर भूमि में जून में 8-10 मीटर कि दूरी पर एक से सवा मीटर के गड्ढे खोद लेना चाहिए यदि कड़ी परत अथवा कंकर की तह हो तो उसे खोद कर का अलग कर देना चाहिए। 

 बरसात के मौसम में इन गड्ढो में पानी भर देना चाहिए और एकत्रित पानी को निकाल कर फेंक देना चाहिए प्रत्येक गड्ढे में 50-60 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद, 15-20 किग्रा बालू, आठ से दस किलो जिप्सम जिप्सम और जैविक खाद का मिश्रण लगभग पांच किलो ग्राम भर देना चाहिए। भराई के 15-25 दिन बाद अभिक्रिया समाप्त होने पर ही पौधा का रोपण करना चाहिए। 

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