छोटी बाई की बड़ी कहानी... वो श्मशान घाट पर रहती हैं, मुर्दों की देखरेख करती हैं...
Neetu Singh 1 Dec 2017 2:03 PM GMT

महिलाएं और श्मशानघाट... अंतिम संस्कार में हिस्सा... थोड़ा अजीब है न। घर वाले तक शव को छोड़कर चले जाते हैं.. लेकिन एक महिला है जो उस पार्थिव शरीर के खाक होने का इंतजार करती है... आपने डोम की कहानी पढ़ी होगी न.. पढ़िए छोटी बाई की वो कहानी
नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश)। हमारे हिन्दू धर्म में श्मशान घाट पर महिलाओं का प्रवेश पूरी तरह से वर्जित माना जाता है। हम जब भी श्मशानघाट का जिक्र करते हैं हमारे सामने कई तरह की तस्वीरें उभर कर आने लगती हैं। इनमे से कुछ तो अपनों की यादें होती हैं तो कुछ डरावनी तस्वीरें।
श्मशान घाट पर महिलाएं क्यों न जाएं इसको लेकर हमारे समाज में आज भी कई तरह के विचार और बंदिशे हैं। वहीं छोटी बाई इन सभी बंदिशों को तोड़कर 25 साल तक श्मशानघाट की देखरेख कर चुकी अपनी बड़ी बहन के कुछ महीने पहले हुए देहांत के बाद डेढ़ साल से इनकी रातें इसी श्मशान घाट पर ही गुजरती हैं।
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‘इनसे मिलने श्मशान घाट पर पहली बार मैं भी पहुंच गयी। उस सुबह भी वहां दो लाशें जल रही थी, पर छोटी बाई इन लाशों के धुएं से बेखबर हाथ में बांस की झाड़ू लिए सफाई करने में जुटी हुई थी।’
‘श्मशानघाट की देखरेख करते हुए यहां रहने की मेरी आदत हो गयी है, अब हमें यहां डर नहीं लगता है’ छोटी बाई ने ये बात बड़ी ही सहजता के साथ कही थी। मध्यप्रदेश की रिपोर्टिंग के दौरान जब मैंने छोटी बाई (70 वर्ष) के बारे में सुना। इनसे मिलने श्मशान घाट पर पहली बार मैं भी पहुंच गयी। उस सुबह भी वहां दो लाशें जल रही थी, पर छोटी बाई इन लाशों के धुएं से बेखबर हाथ में बांस की झाड़ू लिए सफाई करने में जुटी हुई थी। बढ़ती उम्र के साथ ये उंचा सुनने लगी थी, मेरा पहला सवाल इनसे यहीं था, ‘आपको यहाँ डर नहीं लगता’।
छोटी बाई ने जबाब दिया था, “मेरी बड़ी बहन यहाँ 25 बरस रही है, हम तो यहाँ आते जाते रहते थे, जब वो बहुत बीमार पड़ गयी थीं तो उन्होंने मुझसे कहा था, जब तक तुम जिन्दा रहना इसकी देखरेख करना, पिछली नवरात्रि में वो नहीं रहीं, पर मैं इसकी देखरेख डेढ़ साल से कर रही हूँ।”
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मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले में नकटुआ ग्राम पंचायत में बने इस श्मशानघाट को मुक्ति धाम के नाम से सभी जानते हैं। मुक्ति धाम के अन्दर एक छोटा सा कमरा है जिसमे छोटी बाई रहती हैं। इनके पास गृहस्थी के नाम पर दो चार छोटे बर्तन, लगभग दो किलो आटा, दो चार वर्षों पुराने प्लास्टिक के छोटे डिब्बे और कुछ बर्तन, कुछ बिस्तर ही थे। इस कमरे में इनके बेटे बहु भी रहते हैं।छोटी बाई उम्र के इस पड़ाव पर श्मशान घाट की देखरेख तो बड़ी शिद्दत से करती हैं जिसका पहला कारण है कि उनकी बड़ी बहन ने यहाँ वर्षों गुजारे, दूसरा यहाँ जितनी लाशें जलती हैं उसी से इनके दो वक़्त की रोटी चलती है।
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इनकी बड़ी बहन कौशल्या बाई (72 वर्ष) जो 25 वर्षों से भी ज्यादा इस श्मशान घाट पर रहीं। इससे पहले कौशल्या बाई के पति इस श्मशान घाट की देखरेख करते थे। पति के देहान्त के बाद इसकी पूरी जिम्मेदारी कौशल्या बाई ने संभाल ली थी। यहाँ पड़ोस में रहने वाली सोनम सुनील ठाकुर (19 वर्ष) ने बताया, “बड़ी बाई (कौशल्या बाई) जबसे इस श्मशान घाट को देख रहीं थी तबसे यहाँ की सूरत बदल गयी, उन्हें जो भी पैसे मिलते थे उससे उन्होंने यहाँ पर खूब सारे पेड़-पौधे, फूल लगाये, सुबह होते ही इसकी साफ़-सफाई में जुट जाती थी, जबतक उनके हाथ पैरों ने काम करना बिल्कुल बंद नहीं किया तबतक वो सुबह से लेकर रात तक यहाँ जलती लाशों के धुएं के बीच रहीं।”
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छोटी बाई से मिलने मैं खुद भी पहली बार श्मशान घाट पर गयी थी, मैंने इतने करीब से पहली बार लाशों को जलते देखा था। यहाँ रुकी तो आधे घंटे ही थी, पर पूरे दिन परेशान रही थी, मन में अजीब सी घबराहट थी। सोच रही थी आखिर कैसे कौशल्या बाई ने यहाँ 25 साल गुजारे और अब छोटी बाई गुजार रही हैं। हम अपने आप से उनको जोड़ने की कोशिश कर रहे थे कि सुबह के वक़्त आधा घंटा रहना यहाँ मुश्किल हो रहा है, तो छोटी बाई कैसे अपने दिन और रात गुजारती होंगी। मैं कुछ देर उनसे बात करके बार-बार एक ही सवाल पूंछ रही थी आपको यहाँ डर नहीं लगता, हर बार उनका एक ही जबाब कई तरह से होता था, “उम्दा लगत है, अच्छो लगत है, आदत है, हमे डर बिल्कुल नाई लगत है।”
मुझे छोटी बाई से मिलकर बहुत अच्छा लगा, कौशल्या बाई के बारे में भी छोटी बाई से बहुत जानने की कोशिश की। उनकी बहादुरी की वो बहुत तारीफ़ कर रही थी। यहां रह रहे एक जागरूक किसान राकेश दुबे ने बताया, “जहाँ तक हमे जानकारी है कौशल्या बाई जिले की पहली महिला थी जो श्मशान घाट पर रही हैं, ये मध्यप्रदेश की भी पहली महिला हो सकती हैं, मैंने किसी और महिला के बारे में नहीं सुना है।”
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