पुरुषों के शहर पलायन से महिलाओं की खेती में बढ़ी हिस्सेदारी

vineet bajpaivineet bajpai   2 Feb 2018 6:03 PM GMT

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पुरुषों के शहर पलायन से महिलाओं की खेती में बढ़ी हिस्सेदारीमहिलाओं की खेती में हिस्सेदारी बढ़ी।

विनीत बाजपेई/गाँव कनेक्शन टीम

देश में महिलाओं की भागीदारी कृषि के क्षेत्र में बढ़ रही है क्योंकि पुरुष, नौकरी या मजदूरी करने के लिए शहर चले जाते हैं उसके बाद महिलाएं ही होती हैं जो खेती-बाड़ी का काम देखती हैं।

"पुरूष तो गाँव में कम ही मिलेंगे, वो तो मजदूरी करने बाहर गए हैं। तीज-त्यौहार पर दो-तीन माहीने में आते हैं, हाल-चाल लेकर फिर चले जाते हैं। हम नही जाते क्योंकि जो बची-खुची खेती है वो चौपट हो जाएगी और साथ ही बच्चों की पढाई भी।'' ललितपुर जिले से 40 किमी उत्तर दिशा में तालबेहट तहसील के कलौथरा गाँव की मीरा कुशवाहा (45 वर्ष) कहती हैं, ''सुबह से घर का पूरा काम और बच्चों को खिला पिला कर स्कूल भेजते हैं, बाकी समय खेती किसानी पर देना पड़ता है, खाली समय में मजदूरी मिल जाए तो वो भी कर लेते हैं।"

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परिवारों की आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से पुरूष बड़े शहरों में मजदूरी के लिए पलायन कर गए हैं। घर परिवार की देखरेख महिलाएं करती हैं। कलौथरा की आबादी 575 लोगों की है और करीब 118 परिवार रहते हैं। वर्ष 2011 में हुई जनगणना के अनुसार भारत में छह करोड़ से ज़्यादा महिलाएं खेती के व्यवसाय से जुड़ी हुई हैं।

केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री अरुण जेटली ने पिछले दिनों जारी किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में बताया था कि पुरूषों का गाँव से शहर में पलायन होने की वजह से महिलाओं की हिस्सेदारी कृषि के क्षेत्र में बढ़ रही है। इसकी वजह से महिलाएं कृषि को लेकर विभिन्न भूमिकाओं में दिख रही हैं। मसलन किसान, उद्यमी और श्रम में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है। इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि वैश्विक स्तर पर देखा गया है कि महिलाओं ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में और स्थानीय जैव व कृषि को सुरक्षित बनाने में अहम भूमिका को निभाई है। ग्रामीण महिलाओं ने विभिन्न तरीके के प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए प्रबंधन का एकीकृत ढांचा विकसित किया है जिससे रोजमर्रा की जरूरतें पूरी की जाती हैं।

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बाराबंकी के फतेहपुर ब्लॉक के कस्बा बेलहरा की नीतू राजपूत (40 वर्ष) बताती हैं, ''हम छोटे काश्तकार (छोटी जोत के किसान) हैं इतनी कम खेती में घर का खर्च नहीं चलता था पहले हम पति पत्नी खेती मिलकर करते थे लेकिन जब गुजारा नहीं हुआ तो पति नोएडा में एक कंपनी में काम करने चले गए अब हम ही खेती करते हैं।''

एटा जिले से करीब 55 किलोमीटर दूर स्थित ब्लॉक अलीगंज के गाँव अमरौली में महिलाएं खेतों में पसीना बहाकर अपने परिवार का पालन करतीं हैं, शान्ति आज पति प्रेमपाल के कर्ज को चुकाने व घर चलाने के लिए खेती का काम करतीं हैं। 5 बेटियों का साथ और एक बेटे की भविष्य की चिंता शान्ति को सताती है। "उनके पति पर साहूकार का कर्ज हो गया था, जिसे चुकाने के चक्कर में उनकी कुछ जमीन भी बिक गयी, पति बीमार भी रहते हैं, कर्ज चुकाने के लिए वह 6 माह से दिल्ली की फैक्ट्री में नौकरी कर रहे हैं, मैं बटाई पर खेती करती हूं।'' शान्ति ने गाँव के ही रघुवीर का खेत बटाई पर लिया है, शान्ति बताती हैं, ''4 बीघा खेत में गेहूं की खेती की है, खेती के काम में मेरी बेटियां भी साथ रहती हैं।"

शान्तिदेवी अपने बच्चों के साथ।

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जेटली ने आर्थिक सर्वेक्षण पेश करते हुए यह भी कहा था कि अब जरूरत इस बात की है कि महिलाओं तक जमीन, पानी, क्रेडिट और प्रौद्योगिकी पहुंच बढ़ाई जाए। भारत की स्थिति देखते हुए ग्रामीण महिलाओं को कृषि को लेकर प्रशिक्षण दिए जाने की जरूरत है। महिलाओं को अधिकार दिए जाने के बाद कृषि उत्पादकता में सुधार हुआ है। महिला किसानों को अधिकार दिलाने को लेकर सरकार ने कई कदम उठाए हैं।

महिलाओं को मुख्यधारा की कृषि में लाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं-

  • सभी योजनाओं, कार्यक्रमों और विकास संबंधित गतिविधियों में किए जाने वाले आवंटन में महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत निर्धारित किया जाना सुनिश्चित किया गया है।
  • लाभदायक कार्यक्रमों, योजनाओं, महिला केंद्रित गतिविधियों पर जोर देने की शुरूआत की गयी है।
  • क्षमता विकास गतिविधियों और छोटी बचत के जरिए महिला स्वयं सहायता समूह पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। विभिन्न निर्णय लेने वाले निकायों में उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए उन्हें तमाम तरीके की सूचनाएं मुहैया कराने के इंतजाम किए गए हैं।
  • कृषि में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने प्रत्येक वर्ष 15 अक्टूबर को महिला किसान दिवस घोषित किया है।
  • उत्पादकता बढ़ाने के लिए महिलाओं की कृषि मूल्य कड़ी की उत्पादन, फसल पूर्व, कटाई, पश्च प्रसंस्करण, पैकेजिंग, विपरण से सभी स्तरों पर अधिपत्य होने के चलते महिलाओं की विशिष्ट भागीदारी जरूरी है। छोटी खेत जोत क्षेत्रों की उत्पादकता बढ़ाने, ग्रामीण कार्याकल्प में सक्रिय एजेंटों के रूप में महिलाओं को जोड़ना और लैंगिक विशेषता के चलते विस्तार सेवाओं में पुरूषों व महिलाओं को लगाने के लिए समावेशी परिवर्तनकारी कृषि नीति महिला विशिष्ट हिस्सेदारी पर लक्षित होना चाहिए।

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