मानसून की तारीखें बदलने से खेती पर होगा ये असर

मानसून की लेटलतीफी को देखते हुए इसके भारत में आने और जाने की तारीखें नए सिरे से तय करने के लिए मौसम विभाग कर रहा है अध्ययन।

Manish MishraManish Mishra   30 Oct 2019 9:49 AM GMT

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मानसून की तारीखें बदलने से खेती पर होगा ये असर

लखनऊ। शीतला प्रसाद ने इस साल धान की नर्सरी तो समय पर बो दी, लेकिन धान की रोपाई समय पर नहीं कर पाए, क्योंकि उन्हें इंतजार था कि मानसून आने के बाद बारिश शुरू हो उसके बाद खेतों में धान लगाएं।

शीतला प्रसाद पिछले कई वर्षों से ऐसा झेल रहे हैं, मानसून की लुकाछिपी से उनकी फसल चौपट हो जा रही है।

"पिछले कई सालों से समय पर बारिश होती ही नहीं, बारिश कब होगी पता ही नहीं चल पाता। पहले लगातार धीरे-धीरे बारिश होती थी, अब अचानक से तेज बारिश हो जाती है, तो जल्दी खत्म," यूपी के बाराबंकी जिले के गाँव देवरा में रहने वाले शीतला प्रसाद मिश्र बताते हैं।

शीतला प्रसाद मिश्र की कहानी भारत के लाखों किसानों का दर्द बयां करती है जो मानसून की बदली गतिविधियों से परेशान बर्बाद हो चले हैं।

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मानसून के बदले मिजाज को देखते हुए भारतीय मौसम विभाग ने अब इसके भारत में आने और लौटने की तारीखों सहित बारिश के आंकड़ों का अध्ययन करने के लिए एक कमेटी बनाई है, जो यह अध्ययन करेगी कि मानसून के भारत में दखिल होने और विदा लेने की तारीखों में कितना अंतर आया है।

मौसम विभाग की कमेटी की रिपोर्ट के बाद हो सकता है कि भारत में मानसून के दाखिल होने और विदा लेने की तारीखों का नए सिरे से ऐलान किया जा सकता है।

नई दिल्ली स्थित भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक एम. महापात्रा ने 'गाँव कनेक्शन' को फोन पर बताया, "मानसून में आए बदलावों के साथ ही इसके आने और जाने की दोनों तारीखें शामिल हैं। बारिश कहां ज्यादा हो रही है, कहां कम? इन सभी कारणों का कमेटी अध्ययन करेगी। अगर कुछ बदलाव होता है तो बताया जाएगा।"

भारत में मानसून के केरल से दाखिल होने की तारीख एक जून है और राजस्थान से वापस लौटने की तारीख 30 सितंबर। जैसा कि पिछले पिछले कई सालों के पैटर्न को देखें तो मानसून लगतार देरी से दस्तक दे रहा है इससे तारीखें आगे बढ़ाई जा सकती हैं।

वर्ष 2019 में केरल में मानसून करीब 18 जून को पहुंचा, जिसके बाद आगे बढ़ा, इसका मुख्य कारण था कि अरब सागर में चक्रवात 'वायु' ने मानसून को लाने वाली हवाओं का रास्ता रोक दिया। इन चक्रवाती हवाओं ने मानसून को केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में 21 जून तक रोके रखा।

महाराष्ट्र के वर्धा जिले के वायसर में रहने वाले किसान विजय जौदानिया ने फोन पर विदर्भ समेत पूरे राज्य के मौसम के पैटर्न के बारे में समझाते हुए कहा, "अब बारिश के दिन कम हो रहे हैं, और कम दिनों में ज्यादा बारिश हो रही है। विदर्भ में जून-जुलाई सूखा गया, अगस्त-सितंबर में अधिक बारिश हुई।"


किसान विजय जौदानिया की इस बात का समर्थन मौसम की जानकारी देने वाली निजी संस्था स्काईमेट संस्था के प्रमुख महेश पहलावत भी करते हैं।

"अगर लंबे समय अंतराल का औसत (एलपीए) निकाला जाए, तो साफ है कि बारिश कम हो रही है। यह क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) के कारण हो रहा है। पहले लगातार बारिश होती थी, लेकिन अभी चक्रवात ज्यादा मजबूत हो रहे हैं, इसलिए कम दिनों में अधिक बारिश होती है," महेश पहलावत समझाते हैं।

कम समय में अधिक बारिश होने से किसानों को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। इसे समझाते हुए महेश पहलावत कहते हैं, "जब कई हफ्तों की बारिश 24 घंटे में ही हो जाएगी तो पानी ज़मीन सोख नहीं पाएगी और यह पानी नदियों और समंदर में बह जाता है। रिमझिम बारिश नहीं होने और अधिक पानी अचानक बरसने से बाढ़ जैसे हालात जल्दी-जल्दी आते हैं।" वह आगे कहते हैं, "जैसे इस साल पटना, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, असम और राजस्थान में बाढ़ थी, तो कई राज्यों में उसी समय सूखे जैसे हालात थे।"

वर्ष 2019 में जून माह में मानसून के देर से आने और कम बारिश से पूरे भारत में 33 प्रतिशत कम बारिश हुई, जो कि पिछले पांच सालों में सबसे कम है। जून में महाराष्ट्र और केरला में सूखे के जैसी स्थिति बनी रही।

क्लाइमेट चेंज के असर को इसके लिए मुख्य कारण मानते हुए महेश पहलावत कहते हैं, "भारत में अब बारिश क्षेत्रवार होती है। जैसे किसी शहर में आधे में बारिश होती है, तो आधा सूखा पड़ा रहता है। यह सब क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) की वजह से है। कहीं अधिक बारिश होती है, तो कहीं कम।"

स्काईमेट के महेश पहलावत का मानना है कि क्लाइमेट चेंज के इस दौर में किसानों की परेशानियां आगे और बढ़ेंगी

भारतीय मौसम विभाग और क्लाइमेट रिसर्च यूनिट (सीआरयू) के आंकड़ों के अध्ययन के आधार पर नेचर काम्युनिकेशन में छपे एक रिसर्च पेपर के अनुसार जलवायु परिवर्तन के असर से दक्षिण-पश्चिम मानसून से होने वाली बारिश लगतार कमजोर हुई है।

भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून से ही जून से लेकर सितंबर तक 75 प्रतिशत बारिश होती है। भारतीय उप महाद्वीप में भी सबसे अधिक वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून से होती है।

हालांकि, किसान विजय जौदानिया पर मौसम विभाग द्वारा मानसून की आवा-जाही को लेकर की जा रही माथापच्ची का कोई असर नहीं दिखता। वह कहते हैं, "मौसम विभाग की भविष्यवाणी सटीक न बैठने से इस संस्था पर से लोगों का भरोसा उठ सा गया है। अगर मानसून के आने की तारीखों में बदलाव कर भी देंगे तो उससे किसानों को कोई फायदा नहीं होगा। मानसून विभाग की भविष्यवाणी सटीक नहीं होती।"

जिस समय से भारतीय मौसम विभाग के आंकड़ों को दर्ज किया जा रहा है, उसके अनुसार वर्ष 2019 में सबसे देरी से (10 अक्टूबर) मानसून की वापसी हुई।

मानसून की बदलती चाल को समझने के लिए भारतीय मौसम विभाग द्वारा किए जा रहे अध्ययन के बारे में कृषि मामलों के जानकार देविंदर शर्मा कहते हैं, "मानसून की तारीखों में बदलाव के लिए किसान को खेती में बदलाव करने के साथ-साथ कृषि विभाग के अनुसंधान विभाग को भी ज्यादा बदलाव करने होंगे। रिसर्च टीम को बीजों की ऐसी किस्में निकालनी होंगी कि जो इस बदले पैटर्न के हिसाब से फिट हो पाएं।"

देविंदर शर्मा आगे कहते हैं, "अच्छा होगा कि भारतीय मौसम विभाग, कृषि वैज्ञानिकों के साथ मिल कर ही मानसून की नई तारीखों की घोषणा करें। साथ ही कृषि अनुसंधान के वैज्ञानिकों के साथ बैठकें भी होनी चाहिए ताकि रिसर्च एक ही दिशा में हो।"

कृषि मामलों के जानकार देविंदर शर्मा का कहना है कि आईएमडी को मानसून की तारीखों की घोषणा कृषि वैज्ञानिकों के सलाह के साथ ही करनी चाहिए।

मानसून के समय पर आने और होने वाली बारिश का प्रभाव भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी रहता है। वर्ष 2018 में विश्व बैंक की रिपोर्ट 'साउथ एशिया हॉटस्पाट: द इंपैक्ट ऑफ टेम्परेचर एंड प्रेसिपिटेशन चेंजेज ऑन लिविंग स्टैंडर्ड्स' (तापमान और बारिश में बदलाव से जीवनस्तर पर असर) के अनुसार मानसून की चाल बदलने से दक्षिण एशिया की करीब आधी आबादी का जीवनस्तर गिरेगा। मौसम में बदलाव से कृषि उत्पादों में आई गिरावट, श्रम उत्पादकता में कमी, और अन्य स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां बढ़ेंगी।

मौसम विभाग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में देश भर में वार्षिक वर्षा समान्य से कम रही, देश के 36 जोन में से केवल एक केरल में ही वर्षा अधिक रही। 23 प्रभागों में समान्य और 12 में वर्षा कम रही।

मानसून की चाल को लेकर भारतीय मौसम विभाग द्वारा बनाई गई कमेटी के अध्ययन के बारे में आईएमडी पुणे के जलवायु रिसर्च एवं सर्विसेज के प्रमुख डॉ. डीएस पई ने अधिक न बताते हुए कहा, "कमेटी की रिपोर्ट के बाद, नए साल की शुरुआत में इस पर कुछ फैसला हो सकेगा, जिसके बाद इसे लागू किया जा सकता है।"

यह भी पढ़ें- किसानों के बच्चे नहीं करना चाहते खेती, 48 फीसदी खोज रहे दूसरे विकल्प- गांव कनेक्शन सर्वे

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