'कृषि सुधारों के साथ-साथ एमएसपी व मंडी व्यवस्था को और मजबूत करे सरकार'

मंडी में पहुंचने के बाद सही मूल्य ना मिलने पर भी किसान फसल बेचने को मजबूर होता था क्योंकि वापसी का भाड़ा देना और नुकसानदायक होता। यदि फसल फल, सब्जी या अन्य खराब होने वाली उपज हो तो मंडी पहुंचने के बाद उसे किसी भी मूल्य पर बेचने की मजबूरी होती है।

Pushpendra SinghPushpendra Singh   31 July 2020 9:45 AM GMT

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कृषि सुधारों के साथ-साथ एमएसपी व मंडी व्यवस्था को और मजबूत करे सरकार

केन्द्र सरकार ने हाल ही में कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु लाए गए अध्यादेशों को अधिसूचित कर दिया, परन्तु इनके प्रति किसानों के मन में कुछ शंकाए बनी हुई हैं। पिछले दिनों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के कुछ किसान संगठन इनके विरोध में सड़कों पर भी उतरे थे। किसानों के मन में सबसे बड़ी आशंका यह है कि इन सुधारों के बहाने सरकार एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) और वर्तमान मंडी व्यवस्था को समाप्त करने की ओर बढ़ रही है। सच्चाई यह है कि उपरोक्त अध्यादेशों में ऐसी कोई बात नहीं कही गई है। ये सुधार कृषि उपज की बिक्री हेतु वर्तमान व्यवस्था के साथ-साथ एक अन्य समानांतर व्यवस्था बना रहे हैं। यह किसानों के विवेक और पसंद पर निर्भर होगा कि वे किस व्यवस्था के अंतर्गत अपनी फसल बेचना चाहते हैं। किसानों को यह भी समझना होगा कि नई व्यवस्था एक नया विकल्प है जो वर्तमान मंडी व एमएसपी व्यवस्था के साथ-साथ चलता रहेगा।

दशकों से कृषि क्षेत्र को तरह-तरह के बंधनों से मुक्त करने की मांग उठती रही हैं। फसलों का लाभकारी मूल्य ना मिलने, बिचौलियों द्वारा किसानों का शोषण करने, किसान और उपभोक्ता के बीच कृषि उत्पादों की कीमत में भारी अंतर होने का मूल कारण कृषि क्षेत्र में सुधार ना होना है। एक अलग काल और परिस्थितियों में बनाए गए कृषि अधिनियमों के कारण हमारी कृषि अपनी पूर्ण क्षमता पर कार्य नहीं कर पा रही थी। कृषि में सुधार इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि हमारा कृषि क्षेत्र आज भी लगभग आधी आबादी को रोजगार देता है। देश की कृषि जीडीपी लगभग 30 लाख करोड़ रुपये की है, परन्तु देश की जीडीपी में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी मात्र 15 प्रतिशत है। अतः कृषि क्षेत्र में सुधारों का असर आधी आबादी की आय पर पड़ेगा।

कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम में सुधार करते हुए किसानों को अधिसूचित मंडियों के अलावा भी अपनी उपज को कहीं भी बेचने की छूट प्रदान की गई है। इससे किसान अपनी उपज को जहां उसे उचित और लाभकारी मूल्य मिले वहां बेच सकते हैं। इस विषय में चार बड़े सुधार किए गए हैं- पहला, अब तक कृषि उत्पादों को केवल स्थानीय अधिसूचित मंडी के माध्यम से ही बेचने की अनुमति थी।

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अब किसी भी मंडी, बाजार, संग्रह केंद्र, गोदाम, कोल्ड स्टोरेज, कारखाने आदि में फसलों को बेचने के लिए किसान स्वतंत्र है। इससे किसानों का स्थानीय मंडियों में होने वाला शोषण कम होगा और फसलों की अच्छी कीमत मिलने की संभावना बढ़ेगी। यानी अब किसानों के लिए पूरा देश एक बाजार होगा। दूसरा, मंडियों में केवल लाइसेंस धारक व्यापारियों के माध्यम से ही किसान अपनी फसल बेच सकते थे। अब मंडी व्यवस्था के बाहर के व्यापारियों को भी फसलों को खरीदने की अनुमति होगी। इससे मंडी के आढतियों या व्यापारियों द्वारा समूह बनाकर किसानों का शोषण करने की प्रवृत्ति पर अब अंकुश लगेगा। अधिक संख्या में व्यापारी किसानों की फसल खरीद सकेंगे जिससे उनमें आपस में किसान को अच्छा मूल्य देने के लिए प्रतिस्पर्धा होगी।

तीसरा, मंडी के बाहर फसलों का व्यापार वैध होने के कारण मंडी व्यवस्था के बाहर भी फसलों के व्यापार व भंडारण संबंधित आधारभूत संरचना में निवेश बढ़ेगा और यह विकसित होगी। चौथा, अब अन्य राज्यों में उपज की मांग, आपूर्ति और कीमतों का आर्थिक लाभ किसान स्वंय या किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाकर उठा सकते हैं। किसानों को स्थानीय स्तर पर अपने खेत या घर से ही सीधे किसी भी व्यापारी को फसल बेचने का अधिकार होगा। इससे किसान का मंडी तक फसल ढ़ोने का भाड़ा भी बचेगा।

मंडी में पहुंचने के बाद सही मूल्य ना मिलने पर भी किसान फसल बेचने को मजबूर होता था क्योंकि वापसी का भाड़ा देना और नुकसानदायक होता। यदि फसल फल, सब्जी या अन्य खराब होने वाली उपज हो तो मंडी पहुंचने के बाद उसे किसी भी मूल्य पर बेचने की मजबूरी होती है। किसान की इसी मजबूरी का लाभ बेचौलिए उठाते रहे हैं। अब किसान अपने घर या खेत से उचित मूल्य मिलने पर ही फसल बेचेगा। अब किसान जब चाहे जितना चाहे अपनी फसल का भंडारण कर सकता है और बाद में उचित मूल्य मिलने पर उसे बेच सकता है। किसान को मंडियों की अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, लंबी कतारों, लंबे इंतज़ार, माफिया राज से भी मुक्ति मिलेगी। प्रतिस्पर्धा के कारण इन मंडियों को भी अपनी व्यवस्था में सुधार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

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दूसरा सुधारवादी अध्यादेश 'अनुबंध कृषि' से संबंधित है जो फसल की बुवाई से पहले किसान को अपनी फसल को तय मानकों और तय कीमत के अनुसार बेचने का अनुबंध करने की सुविधा प्रदान करता है। इससे किसान एक तो फसल तैयार होने पर सही मूल्य ना मिलने के जोखिम से बच जाएंगे, दूसरे उन्हें खरीदार ढूढ़ने के लिए कहीं जाना नहीं होगा। किसान सीधे थोक व खुदरा विक्रेताओं, निर्यातकों, प्रसंस्करण उद्योगों आदि के साथ उनकी आवश्यकताओं और गुणवत्ता के अनुसार फसल उगाने के अनुबंध कर सकते हैं।

इससे किसानों को फसल उगाने से पहले ही सुनिश्चित दामों पर फसल का खरीददार तैयार मिलेगा। इसमें किसानों के ज़मीन के मालिकाना अधिकार सुरक्षित रहेंगे और उसकी मर्जी के खिलाफ फसल उगाने की कोई बाध्यता भी नहीं होगी। इसमें फसल खराब होने के जोखिम से भी किसान का बचाव होगा। किसान खरीददार के जोखिम पर अधिक जोखिम वाली फसलों की खेती भी कर सकता है। इन अनुबंधों व खरीददारों के माध्यम से किसानों को कृषि की अत्याधुनिक तकनीक, अच्छे बीज एवम देशव्यापि व अंतरराष्ट्रीय बाजार भी उपलब्ध होगा।

तीसरा सुधार 'आवश्यक वस्तु अधिनियम' में संशोधन से संबंधित है, जिससे किसानों को अपनी उपज के लाभकारी मूल्य मिल सके। अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दलहन, आलू और प्याज़ सहित सभी कृषि खाद्य पदार्थ अब नियंत्रण से मुक्त होंगे। इन वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा या अकाल जैसी विशेष परिस्थितियों के अलावा स्टॉक की सीमा भी अब नहीं लगेगी। सरकार का कहना है कि इससे कृषि उत्पादों की भंडारण संरचना में निवेश बढ़ेगा। फसलों की आवक के वक्त उचित मात्रा में उपज का भंडारण होने से एक तरफ किसानों को अच्छे दाम मिलेंगे तो दूसरी तरफ उपभोक्ताओं को भी साल भर उचित मूल्यों पर कृषि खाद्य पदार्थ उपलब्ध होंगे। देश की आवश्यकता से अधिक उत्पादन होने पर अक्सर फसलों के दाम बहुत गिर जाते हैं। अतिरिक्त उत्पादन होने पर कृषि जिंसों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार को भी सुगम एवं निर्बाध बनाया जा रहा है। कृषि उत्पादों को ई-ट्रेडिंग के माध्यम से बेचने की सुविधा को और बेहतर बनाया जा रहा है।

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इन तमाम सुधारों के बाद सरकार को आशा है कि कृषि क्षेत्र में फसलों के विविधीकरण, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, कृषि उत्पादों के निर्यात, कृषि क्षेत्र में निजी व सरकारी निवेश और पूंजी निर्माण को बढ़ावा मिलेगा। कागज़ों में तो यह सब ठीक लग रहा है परन्तु किसानों की आशंकाओं को दूर करने के लिए सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि वर्तमान मंडी और एमएसपी पर फसलों की सरकारी क्रय की व्यवस्था इन सुधारों के कारण कमज़ोर ना हो। एमएसपी व्यवस्था केवल गेंहू, धान जैसी कुछ फसलों तथा कुछ राज्यों तक ही वास्तविक रूप से सीमित रही है।

अतः एमएसपी की वर्तमान व्यवस्था को और व्यापक व सुदृढ़ बनाकर इसे पूरे देश में 'आरक्षित मूल्य' की वैधानिक मान्यता देनी चाहिए। किसानों से एमएसपी से नीचे फसलों की खरीद वर्जित हो और इसके उल्लघंन पर दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान किया जाए। दोनों व्यवस्थाओं में टैक्स के प्रावधानों में भी एकरूपता होनी चाहिए।

मंडियों की संख्या को भी सुधारों के साथ-साथ और बढ़ाया जाना चाहिए। दोनों व्यवस्थाओं का स्वस्थ रूप से एक साथ समानांतर चलना किसान हित में आवश्यक है। सरकार ने किसी भी प्रकार का आपसी विवाद होने पर उसे सुलझाने की कानूनी व्यवस्था भी बनाई है। परन्तु समयबद्ध विवाद निस्तारण होना चाहिए जिसके लिए जिला, राज्य व केंद्र स्तर पर एक अलग न्यायाधिकरण व्यवस्था की स्थापना होनी चाहिए, जिसमें किसानों का भी उचित प्रतिनिधित्व हो। सरकार को चाहिए कि किसान हित में आवश्यक हो तो भविष्य में और सुधार भी करे। अब देखना यह है कि कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी कहे जा रहे इन सुधारों को जमीन पर कैसे क्रियान्वित किया जाता है और किसानों को इनका कितना लाभ मिलता है।

(लेखक किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष हैं)

  

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