भारतीय नारी अबला कब और कैसे हो गई ?

Dr SB Misra | Mar 09, 2019, 10:26 IST
कुछ लोग विदेशी हमलावरों को महिलाओं को निर्बल बनाने के लिए जिम्मेदार मानते हैं लेकिन यह पूरा सच नहीं है। शक्तिस्वरूपा दुर्गा और काली को न भी गिनें तो भी यहां पद्मिनी जैसी नारियां भी हुई हैं जिन्होंने अपना जौहर दिखाया था और अलाउद्दीन के मंसूबे फेल किए थे
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भारत वही देश है जहां देवता रहते थे, क्योंकि यहां नारी की पूजा होती थी। नारी के बिना यज्ञ अधूरा रहता था और भगवान राम को भी यज्ञ करते समय सीता की जगह मूर्ति बिठानी प़ड़ी थी। चाहे सीताराम बोलें या राधेश्याम अथवागौरी शंकर सब जगह नारी का स्थान प्रथम है। इसी देश में गार्गी, अपाला और मैत्रेयी जैसी विदूषी जन्मी थीं जिनके ज्ञान का लोहा यज्ञवल्क जैसे महर्षि भी मानते थे। महिलाओं के ज्ञानार्जन में न कोई बाधा थी और न प्रतिबन्ध। तब यहां की महिलाएं अबला क्यों हो गईं।

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कुछ लोग विदेशी हमलावरों को महिलाओं को निर्बल बनाने के लिए जिम्मेदार मानते हैं लेकिन यह पूरा सच नहीं है। शक्तिस्वरूपा दुर्गा और काली को न भी गिनें तो भी यहां पद्मिनी जैसी नारियां भी हुई हैं जिन्होंने अपना जौहर दिखाया था और अलाउद्दीन के मंसूबे फेल किए थे। स्वतत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई का और क्रान्तिकारियों को सहयोग देने में दुर्गा भाभी का नाम कोई भूल नहीं सकता।

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ऐसा भी नहीं है कि विदेशी आक्रमणकारियों ने हमेशा नारियों को पर्दे में रखकर दासी ही बनाया हो। इल्तुतमश ने अपने निकम्मे बेटों को नजरन्दाज करते हुए बेटी रजियाबेगम को 1236 में राजगद्दी पर बिठाया था। यह बात अलग है कि वह 1240 तक केवल चार वर्ष शासन कर सकी। परिवार में नारी का वर्चस्व नहीं रहा फिर चाहें कोई धर्म हो।

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भले ही हमलावर पुरुष प्रधान देशों से आए थे और उनके साथ महिलाएं नहीं आई थीं फिर भी वे अपनी महिलाओं को उचित सम्मान देते थे। कठिनाई तब पैदा हुर्ह जब महिलाओं को सम्पत्ति के अधिकार से वंचित किया गया। किसी महिला के पति के न रहने पर उत्तराधिकारी महिला नहीं उसका बड़ा बेटा बनाया जाता रहा। यह कानून अंग्रेजों ने भी लगातार माना। इसके पीछे विचार कुछ भी रहा हो, महिलाओं को किसान और भूस्वामी मानने की सोच तो विकसित हीं नहीं हुई।

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आजाद भारत के संविधान में इतिहास की भूलों को सुधारने का प्रया किया गया और दलित तथा पिछड़े लोगों को आरक्षण का सहारा देकर सबल बनाने का प्रयास किया गया लेकिन महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक स्वावलम्बन की ओर ध्यान नहीं गया। अभी भी हमारा समाज नारी को जातियों में बांटने के बहाने आरक्षण देने से कतरा रहा है। जब तक समाज में लिंगभेद का जहर रहेगा महिलाओं की दशा सुधारना आसान नहीं।

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वर्तमान सरकार का '' बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ'' का सन्देश सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन महिलाओं को नौकरियों, व्यापार, जमीन जायदाद और बाकी सम्पत्ति में बराबर का हिस्सा नहीं मिलेगा हालात नहीं सुधरेंगे । आशा है यह बात समझी और समझाई जाएगी तभी महिलाओं के प्रति अबला भाव समाप्त होगा ।

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