2022 का तो पता नहीं, पिछले 4 वर्षों से आधी हुई किसान की आमदनी- राजस्थान का एक किसान

Arvind ShuklaArvind Shukla   29 Jan 2018 7:03 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
2022 का तो पता नहीं, पिछले 4 वर्षों से आधी हुई किसान की आमदनी- राजस्थान का एक किसानकिसान व उसकी चिट्ठी

आम बजट की आहट और आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार के दावों के बीच राजस्थान के गंगानगर में रहने वाले किसान की हताशा और मजबूरियों से भरी चिट्ठी पढ़ लीजिए।

सरकार साल 2022 में किसानों की आय कैसी दोगुनी करेगी वो मुझे नहीं पता। लेकिन पिछले चाल सालों में हमारी कमाई आधी जरुर हो चुकी है। जो अगर दोगुनी हो भी जाती है तो आज से 4 साल पहले के स्तर पर ही आ पायेगी। कम से कम मेरे क्षेत्र (राजस्थान) में तो यही जमीनी हकीकत है। प्रधानमंत्री फसल बीमा का क्लेम पिछले साल के भी अभी तक नहीं मिला है। पेचीदा नियमों के कारण फसल बीमा योजना ने किसानों को नहीं बल्कि बीमा कंपनियों के शेयरों को ही सहारा दिया है। मेरी तो यह भी समझ नहीं आया कि संसद में यह किस आधार पर कहा गया है कि, "किसानों की मुश्किलों का समाधान करना और उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाना, मेरी सरकार की उच्च प्राथमिकता है। मेरी सरकार की योजनाएं न केवल किसानों की चिंता कम कर रही हैं बल्कि खेती पर होने वाले उनके खर्च को भी घटा रही हैं।"

जबकि जमीनी स्तर पर हकीकत यह है कि खेती की लागत में बडा़ हिस्सा रखने वाले डीजल और फार्म मशीनों के रेट में भारी बढ़ोतरी हुई है। आज मेरे क्षेत्र में प्रति एकड़ डीजल खपत प्रति वर्ष 35 लीटर से ज्यादा है जो 71.48 के रेट पर 2500 रुपए से ज्यादा बनता है और याद रखिए यदि इसमें आधा भी टैक्स मानकर चलते हैं तो किसानों को प्रती एकड़ 1250 रुपये से ज्यादा टैक्स देना पड़ता है फिर भी देश दुनिया में खेती पर टैक्स छूट की अफवाहें फैलाई गई हैं।

ये भी पढ़ें- क्या पूरा होगा किसानों की आमदनी दोगुनी करने का सपना ?

फिर भी आज किसान को हर छोटी से छोटी जरूरत के लिए भी आंदोलन करने पर मजबूर कर दिया गया है। पहले बिजली पानी के लिए आंदोलन, फिर खाद बीज कीटनाशकों के लिए आंदोलन करो और अंत में फसल को बेचने के लिए भी आंदोलन करने पड़ रहे हैं।

समस्याएं एक दम पैदा नहीं हुई हैं, इसमें पिछली सरकारों का भी बड़ा योगदान है बीते सालों में विशेष कर 80 और90 के दशक से हमने अपनी प्राथमिकताओं का गलत चुनाव किया, जिससे परिस्थितियां बिगड चुकी उसके पहले खेती और गाँव तुलनात्मक रूप से बेहतर थे।

ये भी पढ़ें- बजट की उम्मीदों के बीच एक किसान का दर्द, बजट हमारे लिए बस शब्द है!

अभी भी वक्त है यदि हमारे नीति निर्माता इस देश को गांव-शहर, किसान-व्यापारी, बेरोजगार-उद्योगपति, जिनको एक-दूसरे का सहयोगी और पूरक होना चाहिए की लड़ाई में नहीं डालना चाहते तो तुरंत ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि क्षेत्र के अनुरूप नीतियों का निर्माण करे इसी में सबका भला हो सकता है और इसके लिए कोई बड़ा बजट या एफडीआई की जरूरत भी नहीं है सब कुछ वर्तमान संसाधनों से ही संभव है।

ये भी पढ़ें- सरकारी रिपोर्ट : किसान की आमदनी 4923 , खर्चा 6230 रुपए

जब हम विदेशी बाजारों से 5200 के भाव पर चना खरीद सकते हैं तो अपने देश के किसानों को यह भाव और खरीदने की गारंटी क्यों नही देते? आने वाले दिनों में आप देखेंगे कि चने सरसों आदि न्यूनतम समर्थन मूल्य खरीदी न होने के कारण किसान फिर सड़क पर होगा। सरकारी तंत्र केवल वही पुराना राग अलापता रहता की उत्पादन बढाओ जो एक भ्रम है यदि उत्पादन में बढ़ोतरी से ही भला होता तो आज पंजाब में किसानों को आत्म हत्या करनी पड़ती? बात फिर वही है समस्या कम पैदावार नहीं है कम दाम हैं।

आखिर में मैं इतना हूं कि किसानों की उपज का वाजिब दाम देने के अलावा सरकार की कोई योजना खेती-किसानी और मजदूरों के लिए उपयोगी साबित नहीं होने वाली।

नोट- हरविंद्र सिंह, किसान, डेलवा पदमपुर, गंगानगर, राजस्थान, लेखक के मुताबिक वो आम किसान हैं, ये उनके निजी विचार हैं।

ये भी पढ़ें- इस बार के बजट में किसानों को प्राथमिकता नहीं दी तो संकट में आ जाएगा कृषि क्षेत्र

ये भी पढ़ें- दिल्ली से स्मॉग हटा तो दिखा किसानों का आक्रोश, क्या 2019 में दिखेगा असर ?  

  

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.