गोरखपुर हादसा : ग्रामीणों ने कहा, यहां बुखार से हर साल होती हैं मौतें

Neetu SinghNeetu Singh   12 Aug 2017 9:44 PM GMT

गोरखपुर हादसा : ग्रामीणों ने कहा, यहां बुखार से हर साल होती हैं मौतेंअस्पताल में इराजरत एक बच्चा।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

नीतू सिंह

लखनऊ। बाबा राघवदास मेडिकल काॅलेज स्थित नेहरू हॉस्पिटल में हुए दर्दनाक हादसे के बाद ग्रामीणों ने कहा बुखार से हर साल मौतें होना यहां अब सामान्य बात हो गयी है। बीमार होने के बाद लोग अस्पताल जाते हैं जब यहाँ ही मौतें हो रहीं है तो अब कहाँ जाएंगे। हर साल हो रही मौतों के बाद प्रशासन की तरफ से कोई खास कदम नहीं उठाये गये हैं। इस हादसे के बाद सरकार का क्या कदम होगा इसका ग्रामीणों को इन्तजार है जिससे हर साल हो रही मौतों पर रोक लग सके।

गोरखपुर जिला मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर दूर खोराबार ब्लॉक के जंगल केवटालिया ग्राम सभा के ग्राम प्रधान राकेश पासवान ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, “आज सुबह उस अस्पताल में हमारी ग्राम सभा के दो बच्चे मर गये हैं, एक आठ महीने का था और एक साल भर का। इस हादसे के बाद सभी बहुत दहशत में है, बीमार होने पर अस्पताल में ही जाते हैं जब अस्पताल में ही सुरक्षा नहीं तो फिर क्या करेंगे।” उन्होंने आगे बताया, “गंदगी ज्यादा होने की वजह से ये बीमारी लगातार बढ़ रही है, हमारी ग्राम सभ में अगर कोई बीमार होता है 25 किलोमीटर दूर गोरखपुर ही जाना पड़ता है, इस हादसे के बाद तो अब लोग अस्पताल जाने से भी डरेंगे।”

ग्रामीण।

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इस हादसे के बाद जब गाँव कनेक्शन ने जिले के कई ब्लॉक में ग्रामीणों से बात की तो सभी ने यही कहा कि ये हर साल होने वाली मौतों का गढ़ बन गया है। प्रदेश में सबसे ज्यादा मच्छर इसी जिले में पाए जाते है, हर साल हो रही मौतों के बाद भी सरकार का इस ओर ध्यान नहीं जा रहा है।

जिलामुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर ब्रहमपुर ब्लॉक से पूरब दक्षिण में गोपाल टोला राजधानी ग्राम सभा में रहने वाली विमला देवी (35 वर्ष) पिछले एक सप्ताह से बीमार हैं उन्होंने बताया, “इस समय हमारे गाँव में हर घर में एक या दो लोग बीमार है, बरसात में बीमार लोगों की संख्या और बढ़ जाती है, रात-रात और दिन-दिन भर पानी की पट्टी करते हैं तब कहीं जाकर बुखार उतरता है, सर में अचानक बहुत तेज दर्द होता है है और इसके बाद बुखार चढ़ आता है।” इस ग्राम सभा में 58 टोला है, विमला महिला समाख्या की नारी अदालत की संचालक हैं इनका कई गांवों में जाना रहता है और कई गाँव के लोग इनके पास आते हैं।

उन्होंने बताया, “हर घर में कोई न कोई बीमार जरुर रहता है एक तो गरीबी है ऊपर से ये बीमारी, अस्पताल में भी तो अब जिन्दगी खतरें में हैं अब लोग मरीजों को कहाँ दिखाने ले जायेंगे। अस्पताल में ये सोंचकर मरीज को लेकर जाते हैं यहाँ ये जल्दी ठीक हो जाएगा, इस हादसे के बाद तो अस्पताल जाने से डर लगेगा।”

महिला समाख्या की जिला समन्यवक नीरू मिश्रा ने बताया, "हम तो यहाँ बीसों साल से काम कर रहे हैं, हजारों महिलाएं हमारे साथ जुड़ी हैं, बीमारी यहाँ के लोगों को कंगाल कर रही है, और इससे हो रही मौतें पूरे परिवार पर असर डाल रही है, बीमारी झेलते-झेलते यहाँ के लोग परेशान हो गये हैं इससे न तो बच्चों की अच्छी परवरिश हो पाती है और न ही किसी का स्वास्थ्य अच्छा रहता है, जिले में कोई सुविधा हो या न हो पर इस जिले से दिमागी बुखार का खत्मा जरुर होना चाहिए।” वो आगे बताती हैं, "इतने बड़े हादसे के बाद हो सकता है सरकार कोई अहम कदम उठाये जिससे इस जिले को दिमागी बुखार से मुक्ति मिल सके।”

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इस हादसे से महज छह किलोमीटर दूर रहने वाली धनेश्वरी वरमन (49 वर्ष) ने कहा, “सिर्फ प्रशासन की लापरवाही इतनी मौतें एक साथ हुई हैं, 29 साल मै यहाँ रह रहीं हूँ मुझे ऐसा लगता है दिमागी बुखार से यहाँ हर साल 100 में पांच लोग तो मर ही जाते हैं, बुखार से मरना आम बात हो गयी है पर अफ़सोस प्रदेश का सबसे पिछड़ा जिला होने की वजह से सरकार का ध्यान नहीं गया है।” वो आगे बताती हैं, “हर साल मच्छरों की दवा भी छिड़की जाती थी इस साल वो भी नहीं छिड़की गयी, बुखार का दहशत यहाँ हर किसी की आँखों में देखने को मिलता है, किसी के पास इतना पैसा नहीं है कि वो प्राइवेट अस्पताल जाए, सरकारी अस्पताल ले जाना उनकी मजबूरी है पर जब यहाँ की भी ये दशा है तो अब लोग कहाँ जायेंगे।”

गाँव में महिलाओं द्वारा बने ‘नारी संजीवनी केंद्र’ को संचालित कर रही जिलेवा यादव (58 वर्ष) बताती हैं, “घर में तो अपने हिसाब से पानी की पट्टी करके ही बुखार में आराम मिलता है पर जब अस्पताल जाते हैं तो डाक्टर अपनी मर्जी से ही देखरेख करते हैं, अगर अस्पताल में मरीज के साथ अपनी मर्जी से कुछ करने लगो तो डाक्टर चिल्लाने लगते हैं और कहतें है खुद डाक्टर न बनो।” जिलेवा जिला मुख्यालय से लगभग 26 किलोमीटर दूर भटहट ब्लॉक के राजी करमौरा गाँव की रहने वाली है। इन्होने आगे कहा, “सबसे कहते तो हैं पानी उबालकर छानकर पियो, नीम की पत्ती का धुंआ करो, अपनी नाली खुद साफ़ रखो जिससे मच्छर न लगे, अगर सरकार के इन्तजार में रहे तो जिन्दगी से हाथ धो बैठेंगे, खाँसी बुखार जिसको न हो तो ये बड़ी बात है।”

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