गाँव की युवती स्वच्छता दूत से बनी स्टेट ट्रेनर, अब प्रदेश को ओडीएफ करने की छेड़ी मुहिम

जनपद को भी खुले में शौच से मुक्त कराने में सहयोग दिया। अब यूपी के कई जिलों में स्वच्छता को लेकर इस युवती ने मुहिम छेड़ रखी है। वहां सशक्त निगरानी समिति बनाने के साथ ही सीएलटीएस की ट्रेनिंग भी दे रही हैं।

Ajay MishraAjay Mishra   20 Nov 2018 5:58 AM GMT

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गाँव की युवती स्वच्छता दूत से बनी स्टेट ट्रेनर, अब प्रदेश को ओडीएफ करने की छेड़ी मुहिम

हसेरन (कन्नौज)। पिता का मन नहीं था की बिटिया घर से बाहर निकले। मां और चाचा ने साथ दिया तो गांव ओडीएफ हुआ। जनपद को भी खुले में शौच से मुक्त कराने में सहयोग दिया। अब यूपी के कई जिलों में स्वच्छता को लेकर इस युवती ने मुहिम छेड़ रखी है। वहां सशक्त निगरानी समिति बनाने के साथ ही सीएलटीएस की ट्रेनिंग भी दे रही हैं।


जिला मुख्यालय कन्नौज से करीब 40 किमी दूर हसेरन ब्लॉक क्षेत्र के खरगपुर गाँव की 23 वर्षीय काव्या सिंह अपनी मेहनत और लगन के बलबूते कई जनपदों में सम्मानित हो रही हैं।

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''करीब तीन साल पहले मेरे चाचा बृजेश सिंह को एडीओ पंचायत अभिलाश बाबू से पता चला कि स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत लोगों को प्रेरित कर शौचालय बनवाने हैं। साथ ही गाँव को भी खुले में शौच से मुक्त कराना है। बताया यह भी गया कि इस काम में सुबह-शाम मेहनत करनी होगी और पैसा नहीं मिलेगा।''

काव्या सिंह आगे बताती हैं, "पैसा न मिलने के बाद भी मेरा इस मिशन में स्वच्छता दूत (अब स्वच्छताग्रही) बनकर जुड़ने का मन हुआ लेकिन पापा राजी नहीं हुए। हमारे यहां महिलाओं को घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी। मेरे चाचा और मां ने मेरा साथ दिया तो मिशन से जुड़ गई।"

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''किसी लड़की की कामयाबी और उसके आगे बढ़ने में माता-पिता का सपोर्ट जरूरी होता है, जो मुझे मिला। इससे कोई भी मिशन पूरा किया जा सकता है। अब मैं अकेले ही उत्तर प्रदेश के अन्य जनपदों में जाती हूं और ओडीएफ को लेकर प्रशिक्षण देती हूं। मेरे परिजनों को हम पर पूरा भरोसा है। स्टेट ट्रेनर के लिए कन्नौज से सिर्फ दो लोगों का चयन हुआ था। दूसरा नाम छिबरामऊ की पूनम प्रजापति का है।''
काव्या सिंह, स्टेट ट्रेनर, एसबीएस (ग्रामीण)

काव्या ने आगे बताया, "एसबीएम (स्वच्छ भारत मिशन) ग्रामीण को लेकर राजकीय मेडिकल कॉलेज तिर्वा में पांच दिवसीय सीएलटीएस के तहत ट्रेनिंग हुई। उसके बाद गांव में ट्रिगरिंग और सुबह-शाम फॉलोअप में जुट गई।''

''गांव से पहले मैं अकेली ही युवती थी, लेकिन धीरे-धीरे महिलाओं, बच्चों और पुरूषों समेत 40-50 लोगों की टीम बन गई। ग्राम के सचिव और एडीओ पंचायत भी गांव आए। उसके बाद तत्कालीन डीएम अनुज कुमार झा जी ने मुझे सम्मानित भी किया।मेरे काम को लेकर अधिकारी संतुष्ट थे। व्हाट्सएप ग्रुप पर ईवनिंग और मार्निंग फॉलोअप की फोटो भी भेजती थी। इस ग्रुप में कन्नौज जनपद के ही नहीं बल्कि अन्य जनपदों के अधिकारी जुड़े हैं। साथ ही उस समय के मिशन निदेशक विजय किरन आंनद भी थे, "काव्या ने बताया।


आगे बताया, ''मेरे कार्य को देखते हुए स्टेट रिसोर्स ग्रुप (एसआरजी) लखनऊ से कॉल आई कि तीन दिवसीय टीचर ऑफ ट्रेनिंग (टीओटी) लखनऊ में दी जाएगी। ट्रेनिंग लेने के बाद वर्ष 2017 से मैंने अब तक कन्नौज के अलावा फतेहपुर, जालौन, औरैया, इटावा, झांसी, कानपुर नगर और कानपुर देहात में जनपदों को खुले में शौच से मुक्त कराने का प्रशिक्षण दिया और टीमें तैयार कराईं।''

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''स्वच्छाग्रहियों का काम शौचालय बनवाने और उसका उपयोग करने के लिए प्रेरित करना है। अगर अपने यहां का कोई स्वच्छाग्रही कन्नौज को ओडीएफ कराने के बाद दूसरे जिले में ट्रेनिंग देने के लिए जा रहा है तो यह अच्छी बात है। अन्य जिलों को भी लाभ मिलेगा। यह हमारे लिए गर्व की बात है। ओडीएफ के बाद भी कई काम होते हैं। दूसरे जनपदों में सहयोग करने के साथ ही अपने जनपद में भी योगदान बनाए रखें।''
रवीन्द्र कुमार, डीएम- कन्नौज


उन्होंने आगे बताया कि ''फर्रूखाबाद, ललितपुर, कासगंज और हमीरपुर में भी प्रशिक्षण देने के लिए बुलाया गया लेकिन कुछ कारणों से नहीं पहुंच सकी। जब मैं अपने गांव को ओडीएफ कराने में जुटी थी तब कोई पैसा नहीं मिलता था। लेकिन अब ट्रेनिंग देने के लिए प्रतिदिन का 1,400 रूपए मिलता है। एक ट्रेनिंग तीन से पांच दिन की होती है। साथ ही खाना और रहने की व्यवस्था संबंधित जिला करता है।''

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शुरूआती दौर पर बात करते हुए काव्या कहती हैं, ''जब हमने राजकीय मेडिकल कॉलेज तिर्वा, कन्नौज में स्वच्छता दूत का प्रशिक्षण लिया था, तो डर की वजह से पीछे बैठी थी। उस समय वल्र्ड बैंक से ट्रेनर ज्योति प्रकाश सर आए थे। उन्होंने मुझे आगे बुलाकर बिठा दिया। अब झिझक छूट गई है। कई जनपदों में सैकड़ों लोगों को प्रशिक्षण दे चुकी हूं। कुछ जगह तो मैंने अकेले ही ट्रेनिंग दी है।''

काव्या की मां उमा सिंह बतातीं हैं, ''मेरा परिवार पढ़ा-लिखा है, बेटी के प्रति मेरा सपोर्ट हमेशा ही रहा। काव्या दूसरे जनपदों में जाकर नाम कमा रही है मुझे अच्छा लग रहा है। शुरूआती दिनों में बेटी के बाबा और ताऊ ने भी निगरानी समिति का साथ दिया।''

प्रधान वीरभान बताते हैं, ''काव्या ने अपने गाँव के अलावा दूसरे गाँव में भी मेहनत की है। लड़की होने की वजह से कभी-कभी उसको घर से लेने भी जाना पड़ता था। कभी खुद भी आ जाती थी। उसके पिताजी ने बताया कि अब वह दूसरे जिलों में भी ट्रेनिंग के लिए जाती है। यह मेरी ग्राम पंचायत के लिए गर्व की बात है।''

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