इन सरकारी स्कूलों को देखकर आप दूसरे स्कूलों को भूल जाएंगे

एक समय था जब सरकारी विद्यालयों को लेकर लोगों का सोचना था कि पढ़ाई नहीं होती, लेकिन ये भी सरकारी स्कूल हैं, जिन्हें देखकर आपकी सोच बदल जाएगी...

Update: 2018-10-06 08:13 GMT

प्रतापगढ़। कुछ महीने पहले इन स्कूलों की पहचान गिरती दीवारें और टूटी फर्श और नाममात्र के बच्चों से थी, लेकिन आज उनकी पहचान चमचमाती फर्श, दीवारों पर शानदार पेंटिंग, अत्याधुनिक लाइब्रेरी और प्रयोगशाला, कंप्यूटर लैब, साफ-सुथरे शौचालय और ढेर सारे बच्चों से है।

प्रतापगढ़ जिले के अलग-अलग ब्लॉकों के डेढ़ सौ से अधिक परिषदीय विद्यालयों की तस्वीर पूरी तरह से बदल गई है। ये सब हुआ है यहां के प्रधानाध्यापकों, ग्राम प्रधान और ग्रामीणों के सहयोग से। प्रतापगढ़ जिले में 2,022 प्राथमिक विद्यालय और 727 पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में से 127 विद्यालयों कायाकल्प होना है, जिसमें से 102 विद्यालयों का कायाकल्प हो गया है।

कभी 12 बच्चे थे, अब बढ़कर हुए 250


जिले में आज जो परिषदीय विद्यालयों का कायाकल्प हुआ है, उसका पूरा श्रेय कुंडा ब्लॉक के शहाबपुर गाँव के ग्राम प्रधान राजेश प्रभाकर सिंह को जाता है। सबसे पहले उन्होंने बिल्डिंग की दशा सुधारी। अब विद्यालय में पार्क, शौचालय, पंखे, टाइल्स देखकर कोई कह नहीं सकता कि यह प्राइमरी स्कूल है। 15 अगस्त 2016 में इस विद्यालय में 12 बच्चे आते थे। आज ये संख्या 250 को पर कर गई है।

प्रभाकर सिंह बताते हैं, "2016 में उपचुनाव के बाद जब मैं ग्राम प्रधान बना तो सबसे पहले शिक्षा व्यवस्था सुधारने के बारे में सोचा और हमें इसमें कामयाबी भी मिली है। हमारी मेहनत का ही नतीजा है कि आज हमारे यहां बच्चों की संख्या 250 हो गई है।"

इसी तरह ही है सदर ब्लॉक का डोमी भुवालपुर प्राथमिक विद्यालय साल पहले तक दूसरे सरकारी स्कूलों की तरह ही थी। वही टूटी दीवारें, इधर-उधर दौड़ते बच्चे। साल 2015 में यहां प्रधानाध्यापिका डॉ. नीलम सिंह की यहां नियुक्ति हुई। अंग्रेजी में पीएचडी करने वाली नीलम ने आते ही नए प्रयोग करने शुरू कर दिए। सबसे पहले उन्होंने अपनी सैलरी दस हजार रुपए खर्च कर बच्चों के बैठने के लिए डेस्क-बेंच का इंतजाम किया।

डॉ. नीलम सिंह बताती हैं, "शुरू में तो बहुत सी परेशानियां भी हैं, आने के बाद सबसे पहले शनिवार को नो बैग डे घोषित कर दिया गया। इस दिन आधे दिन खेल और बाकी समय सोशल एक्टिविटी शुरू की। हम लोगों की मेहनत का ही नतीजा है कि आज हमारे स्कूल में 250 से अधिक बच्चे हैं।"

वो आगे बताती हैं, "बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ा। सिर्फ शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की वजह से अभिभावक खुद उनका एडमिशन करवाने के लिए आगे आए। इस स्कूल में कान्वेंट विद्यालयों की तर्ज पर अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई होती है।"

प्रोजक्टर से स्मार्ट क्लास के अलावा बच्चों को प्रेरणादायक फिल्में और कहानियां दिखाई जाती हैं। विज्ञान और कंप्यूटर लैब के साथ लाइब्रेरी भी है, जिसमें छह सौ से अधिक किताबें हैं। यहां से बच्चों को किताबें उपलब्ध कराई जाती हैं। कुल पांच अध्यापक अलग-अलग विषयों में लगे रहते हैं। बच्चों को कैरम, बैडमिंटन, क्रिकेट और शतरंज भी खेलवाया जाता है। स्कूल के विकास में प्रधान ने भी सहयोग किया और अब यहां साफ-सुथरे शौचालय के साथ हर कमरे में टाइल्स और पानी के लिए सबमर्सिबल भी लग गया है।

इस पूर्व माध्यमिक विद्यालय में हर हफ्ते होती है पैरेंट्स मीटिंग


ऐसा ही एक विद्यालय है मानधाता ब्लॉक के मल्हूपुर गाँव का पूर्व माध्यमिक विद्यालय। यहां के प्रधानाध्यापक रमाशंकर ने विद्यालय की दशा सुधारने के लिए अपने तरीके से प्रयास करने शुरू किए। सबसे पहले उन्होंने बच्चों को बैठने के लिए अपने पैसे डेस्क बेंच का इंतजाम किया। कुछ दिनों बाद अपनी तनख्वाह से ही स्मार्ट क्लास चलाने के लिए प्रोजक्टर लगाया।

रमाशंकर बताते हैं, "इस समय हमारी प्रतियोगिता से सीधे प्राइवेट स्कूलों से होती है, इसलिए हमने घर-घर जाकर अभिभावकों से संपर्क करना शुरू किया है। रिस्पांस देखकर अभिभावकों ने भी रुचि दिखाई शुरू कर दी। नतीजा यह हुआ कि स्कूल की सूरत बदलने लगी है।"

प्रधानाध्यापक की इस पहल का ग्राम प्रधान का भी सहयोग मिला। ग्राम प्रधान नंदिनी मिश्रा ने कमरों और साइंस लैब में टाइल्स की व्यवस्था कराई और तीन शौचालय का भी निर्माण कराया। रमाशंकर अपने स्कूल के बच्चों की कान्वेंट स्कूल के बच्चों के साथ प्रतियोगिता कराते हैं। इस स्कूल में पिछले सत्र में 126 बच्चे थे। नए सत्र में तीन दिन के भीतर ही 35 नए एडमिशन हो चुके हैं। रमाशंकर बताते हैं कि 2015 के बाद उन्हें शिक्षकों की अच्छी टीम मिली।

प्रतापगढ़ के बेसिक शिक्षा अधिकारी बीएन सिंह कहते हैं, "प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है। इस बार जिले के 127 स्कूलों को मॉडल स्कूल के तौर पर विकसित किया गया है। इन स्कूलों में कान्वेंट स्कूलों की तर्ज पर अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई होगी।"

बायोमैट्रिक मशीन से शिक्षकों और बच्चों की हाजिरी


पूर्व माध्यमिक विद्यालय कटरा गुलाब सिंह तो निजी स्कूलों को भी मात दे रहा है। हेडमास्टर मोहम्मद फरहीम ने अपने जुनून जज्बे से न सिर्फ स्कूल को हाईटेक किया, बल्कि बच्चों के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया है। यह उत्तर प्रदेश का दूसरा ऐसा सरकारी विद्यालय है जहां शिक्षकों और बच्चों का हाजिरी बायोमैट्रिक मशीन से लगती है। कोई भी लेट नहीं हो सकता। फरहीम ने अपने वेतन से स्कूल को संवारा है। उन्होंने खुद के पैसे से स्कूल की वायरिंग कराई।

बिजली, पंखे के साथ इनवर्टर और कक्षा में नोटिस बोर्ड लगवाया। अब प्रधान प्रेमलता अग्रहरि भी चौदहवें वित्त से स्कूल के लिए मदद कर रही हैं। छह शौचालय बनवाए जा रहे हैं तो बच्चों को शुद्ध पानी पिलाने के लिए आरओ भी लग रहा है। स्मार्ट क्लास के लिए डिजिटल बोर्ड के साथ सोलर पैनल भी आ गया है। फरहीम जब इस स्कूल में आए थे तो महज 50 बच्चे थे। अब उनकी संख्या बढक़र 250 पहुंच गई है। स्कूल के अलावा वह कमजोर बच्चों को हर दिन दो घंटे नि:शुल्क कोचिंग भी देते हैं।

मॉडल स्कूल राजगढ़ भी प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में नए कीर्तिमान गढ़ रहा है। इस स्कूल को संवारने में हेडमास्टर अजय दूबे के साथ प्रधान देवदास विश्वकर्मा की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। 14वें वित्त से 10 लाख रुपए खर्च कर प्रधान ने स्कूल की सूरत ही बदल डाली। कमरों में टाइल्स, शौचालय के साथ सबमर्सिबल और शानदार किचेन बनवाया। पिछले दिनों मंडलायुक्त आशीष गोयल ने भी इस स्कूल का निरीक्षण किया और यहां की व्यवस्था देखकर अध्यापकों को शाबाशी दी। इस स्कूल में भी बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दी जा रही है। प्रधानाध्यापक अजय दूबे के प्रयास से बच्चों की संख्या बढ़ी है।


बीएसए आगे कहते हैं, "स्कूल में बच्चों की सुविधाओं और बदहाल दशा को बदलने के लिए प्रधानों के साथ आम लोगों का भी सहयोग चाहिए, तभी प्राथमिक शिक्षा का स्वरूप बदल सकता है। जिले के पांच स्कूल इस दिशा में नजीर बने हैं। सरकारी मदद के साथ-साथ लोग आपसी सहयोग से भी स्कूलों की दशा बदल सकते हैं।"

क्या है ऑपरेशन कायाकल्प

गाँव में मूलभूत विकास और निर्माण कार्यों के अलावा अब स्कूलों के रखरखाव और मरम्मत का काम भी प्रधान के जिम्मे होगा। प्रधान अब पंचायतों को मिलने वाले 14वें वित्त और राज्य वित्त और मनेरगा से मिलने वाली निधि को मिलाकर गांवों नाली, खडंजा, इंटरलाकिंग, सीसी रोड निर्माण कार्य भी करा सकेंगे। इसके साथ ही गाँव के प्राथमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों की मरम्मत और नवीनीकरण, शौचालय और पेयजल का काम भी प्रधान अब अनिवार्य रूप से करवाएंगे।

इसके अलावा परिषदीय प्राथमिक/उच्च प्राथमिक विद्यालयों के फर्श की मरम्मत एवं उच्च गुणवत्ता के टाइल्स लगवाने का कार्य भी इसके तहत सुनिश्चित किया जाता है। परिषदीय विद्यालयों में बच्चों के ज्ञान का स्तर बढ़ाने के उद्देश्य से 'लेविल वाइज़ लर्निंग' की भी व्यवस्था सुनिश्चित की जाती है।  

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