गुर्जर आन्दोलन से राजस्थान कराह चुका है, जाट आन्दोलन से हरियाणा सुलग चुका है और गुजरात जला था पटेल आन्दोलन से। अब उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद भी प्रोमोशन में आरक्षण को लेकर सुगबुगाहट आरम्भ हो रहीं है और जाट समुदाय ने तो धमकी दे ही रखी है। अभी हम भूले नहीं हैं मंडल आन्दोलन में किस तरह मेधावी छात्रों का आत्मदाह और देश की सम्पत्ति को स्वाहा किया गया था। ऐसा कोई दिन नहीं बीतता है जब अदालतों में आरक्षण को लेकर मुकदमा न चल रहा हो, सड़कों पर बसें और पटरियों पर रेलगाडि़यां बाधित न हो रही हों और कार्यालय बन्द न हों। वर्ग-विशेष की स्वार्थ सिद्धि के लिए सारे देश के धन, जन और समय को बर्बाद करना देशहित तो नहीं है।
आरक्षण की अंधाधुंध व्यवस्था ने प्रत्येक आरक्षणभोगी वर्ग में प्रबुद्ध वर्ग पैदा कर दिया है जो अपनी ही जाति के गरीबों से रोटी-बेटी का सम्बन्ध नहीं कायम करना चाहता। उदाहरण के लिए एक ही अनुसूचित जाति के रैदास वर्ग के लोग सम्पन्न हैं वे वाल्मिकियों अथवा मुसहर से रिश्ता नहीं जोड़ते।
इस बात पर बहस हो सकती है कि देशहित किसमें हैं विशेषज्ञता में या सामान्य विकास में। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सभी मुख्यमंत्रियों को वर्ष 1961 में लिखा था ‘‘मैं हर प्रकार के आरक्षण को नापसन्द करता हूं विशेषकर सेवाओं में”। सरदार वल्लभ भाई पटेल भी आरक्षण को देशहित के विरुद्ध मानते थे। यहां तक कि राजीव गांधी ने 6 सितम्बर 1990 को वीपी सिंह से कहा था ‘‘आप ने सारे देश में जातीय हिंसा की आग जला दी है।” यह सन्दर्भ था मंडल कमीशन की अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू करने का। परन्तु महात्मा गांधी और डा अम्बेडकर के बीच 1932 में हुए पूना पैक्ट का सम्मान करते हुए 8.5 फीसदी का आरक्षण 1960 तक दलितों को दिया जाना था। यह अवधि अन्तहीन हो चुकी है।
यदि जातीय गणना के हिसाब से सेवाओं में आरक्षित वर्गों की संख्या पूरी करनी हो तो अनिश्चितकाल तक प्रतीक्षा करनी होगी। पदों की कमी नहीं है, कमी है योग्य अभ्यर्थियों की। ऐसी हालत में वैज्ञानिक प्रतिष्ठान, कल कारखाने और प्रशासनिक इकाइयां या तो धीमी गति से चलेंगी या रुकी रहेंगी जब तक कोटा पूरा ना हो जाए।
आरक्षण का एक पक्ष यह भी है कि जब मेधावी लोगों को नौकरी नहीं मिलती है तब उनके अपराधी बनने की सम्भावना बढ़ जाती है। अब अपराधियों में सवर्णों का प्रतिशत बढ़ा हुआ लगता है। ऐसे अपराधियों को पकड़ पाना भी कठिन होता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने आन्दोलित मेधावी छात्रों को पेट्रोल पम्प और मिट्टी के तेल का लाइसेंस, मारुति कार की एजेंसी देने की बात कही थी। इससे दुखद क्या हो सकता है कि जो विद्यार्थी रिसर्च और आविष्कार कर सकते हैं उन्हें तेल बेचने का अवसर दिया जा रहा था। यह मेधा का अपमान था।
यदि आरक्षण व्यवस्था को तर्कसंगत ढंग से नहीं लागू किया गया तो दलितों का विकास तो होगा ही नहीं दूसरे वर्गों में असन्तोष बढ़ता जाएगा।