इन तरीकों से कराएं पशुओं में होने वाली बीमारियों की जांच

Update: 2019-04-10 10:44 GMT

लखनऊ। अगर पशुपालक समय-समय पर अपने पशुओं की जांच कराता रहे तो काफी हद पशुओं  को बीमारियों से बचाया जा सकता है। पशुओं की जांच कब और कैसं करायें पशुपालक को इस बात का रखना जरुरी है इससे पशु हमेशा स्वस्थ और उपयोगी बने रहें।


जांच कब करायें?

  • जन्म के तुरंत बाद यानि नवजात अवस्था में।
  • दूध उत्पादन में गिरावट की स्थिति में।
  • प्रजनन अवस्था में।
  • यदि जानवर की मुद्रा (चाल-ढाल) सामान्य से हटकर हो और असामान्य व्यवहार स्थिति में।
  • भूख और प्यास न लगने की स्थिति में।
  • असामान्य गोबर और मूत्र की स्थिति में।

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  • त्वचा की असामान्यता की स्थिति में।
  • अनावश्यक स्त्राव की स्थिति में।
  • दूध में खून के थक्के या दही दिखाई देने की स्थिति में।
  • पशु के उठने-बैठने में कठिनाई की स्थिति में।
  • पशु के शरीर में अतिरिक्त मांस लटका दिखाई देने पर।
  • लगातार पशु-भार में गिरावट आने की स्थिति में।

जांच कैसे करायें?

  • बीमार पशुओं को परीक्षण सुनकर, सूंघकर, देखकर और स्पर्श से किया जाता है।
  • छोटे पशुओं जैसे मुर्गी, भेड़, बकरी आदि की बीमारी की दशा में सीधे प्रयोगशाला लाया जा सकता है जहां पशुचिकित्सक वांछित नमूने इकट्ठे कर रोग की जांच कर सकते हैं।
  • पशुओं में रोग की जांच कराने के लिए निकटतम पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
  • रोग परीक्षण के लिए निर्देशानुसार बीमार पशु से विभिन्न नमूने जैसे खून, सीरम, मल मूत्र, त्वचा की खुरचन आदि को लेकर प्रयोगशाला भेजना चाहिए।
  • संक्रामक रोग के व्यापक रूप से फैलने पर पशुपालक अविलंब पशु चिकित्सा अस्पताल में स्वयं और फोन द्वारा सूचित करें और समय रहते रोग की रोकथाम की जा सके।
  • पेट में परजीवियों की जांच के लिए पशुपालक खुद गोबर का नमूना साफ कागज की पुड़िया या प्लास्टिक/कांच की शीशी में लेकर प्रयोगशाला आ सकते हैं।
  • थनैला रोग की आंशका होपे पर दूध का नमूना साफ बर्तन में लायें।

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  • गर्भपात होने पर गार्भित भ्रूण को प्लास्टिक और पॉलीथिन में बंद करके प्रयोगशाला में ला सकते हैं।
  • पशुपालक जांच के नमूने एकत्रित करने, संरक्षित करने और प्रयोगशाला भेजने में बरते जाने वाली सावधानियों का विशेष ध्यान रखें ताकि संरक्षित नमूनों से रोग की जांच हो सके।
  • पशुपालकों को पशुओं की नियमित जांच करवाते रहना चाहिए ताकि बीमारी के पहले उस रोग को फैलने से रोका जा सके।
  • पशुओं को तापक्रम (बुखार) लेने के लिए ताप थर्मामीटर को गुदा में रखकर लेना चाहिए। 

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