"एक दिन योग करने से कुछ नहीं होगा, हर रोज़ के अभ्यास से दूर होंगी बीमारियाँ"

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर सिर्फ औचारिकता के लिए हाथ पॉव हिलाने को योग के जानकर फालतू मानते हैं। उनका मानना है सिर्फ सोशल मीडिया पर फोटो डालने के लिए आसन करने से बेहतर है हर रोज़ 10 मिनट ही सही अनुलोम विलोम कर लिया जाए तो बहुत फ़ायदा हो सकता है।

Update: 2023-06-21 04:34 GMT

दिक्कत ये है कि आजकल लोग आसन को योग समझ बैठे हैं। जबकि आसन योग के आठ अंग का एक हिस्सा है। महात्मा गाँधी सिर्फ यम के एक हिस्से 'सत्य' को अपना कर मोहनदास करमचंद गाँधी से महात्मा गाँधी बन गए। ज़रूरत है हम योग को अपने दैनिक जीवन में हर रोज़ हर पल उतारे भीं। हम सिर्फ आसन को पकड़कर समझते हैं कि सब योग जान गए हैं। आजकल हर कोई योग गुरु है, जबकि सीखा वो आसन रहे हैं। कौन सा आसन किस बीमारी में फायदेमंद है और कौन सा नुकसानदेह है इसका ज्ञान सबको नहीं है।

आसन उसे कहते हैं जब आप स्थिर और सुख पूर्वक बैठते हैं। आसन का मतलब ये नहीं है कि शरीर को कष्ट दिया जाए। आसन का तो अर्थ ही है जो आसानी से किया जा सके। जिसे आप हठ योग कहते हैं वह योगियों के लिए है गृहस्थ के लिए नहीं है।

योग का अर्थ है जोड़ना। किसी भी दो चीजों को मिलाने को योग कहते है। यहाँ जो हम जानना चाहते हैं वो है शरीर को मन से जोड़ना, तब शरीर स्वस्थ्य रहेगा। मन को आत्मा से जोड़ने से न्यूरो (स्नायु ) से जुड़ी बीमारियाँ नहीं होती है। आत्मा को परमात्मा से जब जोड़ते है तो आध्यात्मिक फ़ायदा होता है। लेकिन ये सभी चीजे तब संभव है जब जोड़ने की लिए क्या छोड़ना है ये हम जान लें तो जोड़ना अपने आप सिद्ध हो जायेगा। किसान जब खेत में जाता है तो अपना घर छोड़ कर ही जाता है, अगर सोचे कि घर बैठे फ़सल तैयार हो जाएगी तो कुछ नहीं होगा। पतंजलि ने भी योग सिद्ध करने के लिए चित्त (बुद्धि) की वृत्तियों को छोड़ने पर बल दिया है।


योग का पूरा फ़ायदा लेने के लिए आठ सीढ़ियाँ बनाई गई हैं, जिन पर चढ़ कर ही कुछ हासिल किया जा सकता है। दुनिया के सभी योग मार्ग इसी के तहत आते हैं। इसे क्रम से अगर किया जाए तो मन की शुद्धि हो जाती है और उपलब्धि होती रहती है। जैसे पहला है यम, इससे बाहर का आचरण सुधरता है। दूसरा है नियम, इससे शरीर के अंदर का सुधार होता है। फिर बारी आती है आसन की,जिससे पूरा शरीर शुद्ध होता है। प्राणायाम से साँस की शुद्धि होती है,यानि फेफड़े तक भरपूर ऑक्सीजन पहुँचता है। उसके बाद प्रत्याहार है, इससे इन्द्रियाँ काबू में होने लगती है। इन पाँचों को बहिरंग साधन कहते हैं।

इसके बाद जो तीन हैं वो हैं धारणा (कॉन्सेंट्रेशन), ध्यान (मैडिटेशन) और समाधि। धारणा के ज़रिए मन को साफ़ किया जाता है, ध्यान से अस्मिता में सुधार होता है। समाधि में बुद्धि यानि चित्त शाँत होता है। लेकिन ये सभी तब संभव है जब आपका खाना,पीना और व्यवहार ठीक हो। गीता में भी कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि "हे अर्जुन यह योग न तो बहुत खाने वाले का, न बिल्कुल नहीं खाने वाले का, न बहुत सोने वाले का या न हमेशा जागने वाले का सिद्ध होता है। दुःखों का नाश करने वाला योग तो सही आहार विहार करने वालों का, कामो में अपने अनुसार कोशिश करने वालों का और समय पर सोने जागने वालों का ही सिद्ध होता है।"

ये करें तो भी फ़ायदा होगा

शरीर में जितने सिस्टम है उनके लिए कम से कम एक आसन तो ज़रुर करें। जैसे साँस के लिए, खाना पचाने के लिए, बाहरी अंगों के लिए और दिमाग को ठीक रखने के लिए एक आसन करना चाहिए। बहुत ज़्यादा आसन नहीं करना चाहिए। बेहतर है शुरू में गहरी साँस लेने का अभ्यास करें। अभी हम सिर्फ एक चौथाई साँस लेते हैं। जानवर को देखिये हमेशा पूरी साँस लेता है। गाय,बैल तक पूरी साँस लेते दिखेंगे। यही कारण है कि हमारे फेफड़े ख़राब हो जाते हैं। हमारा खून साफ़ नहीं होता है। पूरी साँस ले पूरी साँस छोड़े। कम से कम एक घंटा तो रोज़ करें।

इसके बाद अनुलोम विलोम करें। एक नाक से साँस लें दूसरे से छोड़े, फिर जिससे छोड़े उसी से साँस लें और दूसरी नाक से छोड़े। इसके बाद प्राणायाम कर सकते हैं। इसमें बंद प्राणायाम बहुत ज़रूरी है। मूलबंद प्राणायाम में गुदा मार्ग को अंदर की तरफ खींचते हुए बाएँ नाक से साँस खींचे (पेट को अंदर करें, इसे उड्यान बंद कहते हैं) और फिर क्षमता अनुसार रोकिये। जब साँस खींचते हैं तो पेट अंदर जाता है। जब छोड़ते है तो ठुड्डी को नीचे दबा कर छोड़ते हैं। इसे जालंधर बंद (चिन लॉक) कहते है। बंद के साथ जब प्राणायाम करते हैं तो पेट या फेफड़े से जुड़ी कोई बीमारी नहीं होगी। एक बात ध्यान रखियेगा जब बंद प्राणायाम करेंगे तो शरीर में गर्मी होगी। इसलिए इसके बाद शीतलीकारण भी करें। (कुत्ते को देखा होगा जीभ बाहर लिकाल कर साँस लेते हैं) जीभ को गोल बनाकर साँस को खींचिये और निगल जाइये। फिर नाक से उसे छोड़िये।

दफ़्तर जाने की जल्दी है तो सिर्फ ये कर लें

अगर समय नहीं है फिर भी पाचन और शरीर को कुछ ठीक रखना है तो एक काम करें। खाना खाने से पहले देखें कौन सी साँस चल रही है ? अगर दायीं साँस चल रही है तो भोजन करें, अगर बायीं चल रही है तो खाने के बाद पाँच मिनट की लिए बज्रासन में बैठ जाएँ। इससे सूर्य नाड़ी चलने लगेगी और खाना पच जायेगा। भोजन के समय पानी न पीएं,जब बायीं साँस चलने लगे तब पानी पीएं।

(लेखक काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय में योग और प्राकृतिक चिकित्सा विभाग के अध्यक्ष रहे हैं और इंडियन अकादमी ऑफ़ योग के सदस्य हैं।)  

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