सुरनकोट। “हम खूब पढ़ना चाहते हैं, आगे बढ़ना चाहते हैं लेकिन बस सेवा के न होने के कारण रोज पैदल चलकर न तो स्कूल जा सकते हैं और न ही छोटी गाड़ियों की भीड़-भाड़ मे सफर कर सकते हैं”। ये वाक्य हैं सीमावर्ती क्षेत्र जम्मू कश्मीर की तहसील सुरनकोट के गाँव मरहोट की लड़कियों का जो यातायात व्यवस्था सही न होने के कारण शिक्षा से वंचित हो रही हैं।
नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार देश के शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों मे यातायात के लिए ज्यादातर लोग बसों पर आश्रित रहते हैं और इसके बाद नंबर आता है ऑटो रिक्शा का। रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाकों मे करीब 66 प्रतिशत परिवार और शहरी क्षेत्रों मे 62 प्रतिशत परिवार का कहना है कि परिवहन के लिए वह सबसे ज्यादा बस या ट्रॉम पर निर्भर करते हैं।
सर्वेक्षण के अनुसार गाँवो मे 38 प्रतिशत और शहरों मंे 47 प्रतिशत लोग परिवहन के लिए ऑटो रिक्शा पर खर्च करते हैं। इसके आलावा टैक्सी, रेलगाड़ी, बस और रिक्शा परिवहन के अन्य साधन हैं जिनका इस्तेमाल ज्यादातर लोग करते हैं। ये आंकड़े जुलाई 2014 से जून 2015 तक के हैं।
आंकड़ों से मालूम होता है कि हमारे देश मे यातायात सुविधाओं का उपयोग करने वालों की कमी नहीं है लेकिन इस संदर्भ में अगर सीमावर्ती जिला पुंछ की बात करें तो यहां के कई ग्रामीण क्षेत्रों में या तो सड़कें है ही नहीं, और अगर हैं तो उनपर चलने वाले वाहन उपल्बध नहीं हैं और तो और जिन क्षेत्रों में सड़क और वाहन दोनो हैं वहां चलने वाले निजी वाहनों का किराया ड्राइवरों की इच्छा के अनुसार वसूला जाता है। यहां किसी भी लिंक रोड पर बस सेवा नहीं पाई जाती जिसकी वजह से छोटी गाड़ी वाले यात्रियों से मनमानी टिकट राशि वसूलते हैं।
तहसील सुरनकोट के ब्लॉक बफलियाज़ में आज तक कोई बस सेवा उपलब्ध नहीं हो पाई। गाँव सैलां के युवा सामाजिक कार्यकर्ता राजा वसीम मलिक का कहना है, “चंदीमढ़ जो मुगल रोड पर स्थित है वहां से सुरनकोट तक कोई बस सेवा उपलब्ध नहीं है जिसका फायदा उठाते हुए मात्र 17 किमी की दूरी के लिए छोटी गाड़ियों के ड्राइवर 50 रुपए वसूलते हैं। इसी तरह सैलां से सुरनकोट तक 15 किमी की दूरी तय करने के लिए हमें 30 रुपए देने पड़ते हैं और सैलां से बफलियाज़ तक 2 किमी के लिए 10 रुपए जबकि सैलां से दराबह तक छह किमी के लिए 20 रुपए देने पड़ते हैं।
वह आगे कहते हैं इस संबंध में क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (आरटीओ) पुंछ से भी शिकायत की थी। शिकायत के बाद उन्होंने एक बस भेजी लेकिन कुछ ही महीनों बाद वो बस भी बंद हो गई। दराबाह के बारहवीं कक्षा के छात्र मोहम्मद आसिफ के अनुसार “मुझे पढ़ाई का बहुत शौक है, लेकिन ये दुर्भाग्य है कि मैं कभी स्कूल समय पर नहीं पहुंच सका जिसकी वजह से कई बार स्कूल के बाहर से ही वापस लोटना पड़ता है।
मुसीबत यह है कि छोटी गाड़ियों में जगह कम होती है और दूसरी गाड़ी में जगह मिलने के इंतजार में सड़क पर खड़े खड़े ही स्कूल पहुंचने का समय निकल जाता है”। इसी कारण यहां के गाँव मरहोट की लड़कियां भी अक्सर दसवीं पास करने के बाद शिक्षा छोड़ देती हैं। इस संबध में गाँव के सरपंच खादिम हुसैन ने बताया “एक तो इस गाँव में कोई उच्च माध्यमिक विद्यालय नहीं है दूसरी सबसे बड़ी वजह यह है कि यहां कोई बस सेवा नहीं है।
केवल दो मेटाडोर हैं और बाकी चन्द छोटी गािड़यां हैं मगर सुबह के समय बहुत अधिक भीड़ होती हैं और हर व्यक्ति जल्दी में होता है किसी को स्कूल तो किसी को ऑफिस जाना होता है। सभी का समय एक ही होता है। इसलिए इसका सबसे बड़ा नुकसान यहां की बच्चियों को होता है।
लड़के तो फिर भी गाड़ियों की छत पर या पीछे लटक कर चले जाते हैं, मगर लड़कियों के लिए ये संभव नहीं है।” बारहवीं कक्षा की एक छात्रा ने बताया “हम अक्सर वाहनों के इंतजार में खड़े रहते हैं और स्कूल का समय बीत जाता है इसलिए मजबूर होकर घर लौटना पड़ता है जिसकी वजह से हम अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सकते”।
यह वह समस्या है जो देखने या सुनने में छोटी मालूम होती है, लेकिन इनके जो परिणाम सामने आ रहे हैं वो बहुत ही गंभीर हैं। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि ग्रामीण क्षेत्रों के ऐसे मुद्दों का समाधान जल्द से जल्द निकाला जाए, ताकि सीमावर्ती क्षेत्र के बच्चे भी भारत के विकास में अपना योगदान दे सकें।
रिपोर्टर - सिद्दीक अहमद सिद्दीकी