सोना-चाँदी नहीं अब धान की जूलरी महिलाओं का दिल चुरा रही है

ट्रेंडी, क्लासिक और लीक से हटकर जूलरी पहनने वालों को अब आर्टिफिशियल जूलरी, पेपर जूलरी या फ्लॉवर जूलरी के बाद पैडी जूलरी लुभा रही है। धान से बने झुमके, बालियाँ और हार बनाने वाली पुतुल दास मित्रा को उनके इस हुनर के लिए कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया है।

Update: 2023-11-28 08:32 GMT

साल 1998 में पुतुल दास मित्रा ने धान के गहने बनाने की शुरुआत की थी।

अभी तक आपने धान से बने चावल, पोहे, इडली और न जाने कितने व्यंजन खाए होंगे, लेकिन अगर आपसे कहा जाए कि आप धान से बने गहने भी खरीद सकते हैं तो शायद आपको यकीन न हो।

पश्चिम बंगाल के कोलकाता की रहने वाली पुतुल दास मित्रा धान से ऐसे गहने बनाती हैं, जिन्हें देखकर आप सोने-चाँदी के गहने भी भूल जाएँगे।

आखिर धान से गहने बनाने का आइडिया कैसे आया के सवाल पर 46 साल की पुतुल दास मित्रा गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "करीब 25 साल पहले इसकी शुरुआत की थी, हुआ ये कि हमारे यहाँ लक्ष्मी पूजन के लिए धान की किस्म गोबिंद भोग से माला बनाई जाती है, जो लंबे समय तक खराब नहीं होती है; मैंने उसी धान से राखी बनाई थी, जिसे देखकर लोगों ने खूब तारीफ की।"


बस यहीं से पुतुल के गहने बनाने की शुरुआत हुई, धीरे-धीरे वो माला और छोटे-मोटे गहने बनाने लगीं, इसके बाद साल 2000 में कोलकाता की प्रदर्शनी में जाने का मौका मिला जहाँ पर लोगों को उनके बनाए गहने ख़ूब पसंद आए। साल 2002 में उनकी इस अनोखी कला के लिए स्टेट अवार्ड से भी सम्मानित किया गया।

वो आगे कहती हैं, "जब तारीफ़ मिलने लगी तो लगा इसे बिजनेस की रूप में भी शुरू कर सकते हैं; अब तक हज़ारों गहने बना चुकी हूँ।"

कहाँ मिलेगी धान की जूलरी

पुतुल के बनाए गहनों की माँग देश के अलग-अलग राज्यों के साथ दूसरे देशों जैसे चीन, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, इटली में भी है। देश के अलग-अलग हिस्सों में लगने वाली प्रदर्शनियों के साथ ही वो ऑनलाइन भी गहने बेचती हैं। इसमें उनके घर वालों ने भी पूरा साथ देते हैं, पुुतुल कहती हैं, "जब मैंने ये काम शुरू किया तो मेरे पापा ने हमेशा मेरा साथ दिया और अब मेरे पति मेरी पूरी मदद करते हैं, अभी तो बच्चा बड़ा हो गया है, पहले उसे छोड़कर बाहर-बाहर जाती थी, तब मेरे पति घर संभालते।"


दिल्ली हाट से भी इसे ख़रीदा जा सकता है। सिर्फ प्रोफेशनल महिलाओं के लिए ही वहाँ ऐसी जूलरी नहीं है बल्कि शादी जैसे बड़े समारोह के लिए भी पूरा सेट है 50 रुपए से 2500 तक है। छोटे छोटे कम बजट वाले गहने भी यहाँ से ले सकते हैं।

साल 2015 पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया। हाल ही लखनऊ में चल रहे जनजाति भागीदारी उत्सव में भी इन्होंने स्टॉल लगाया था, जहाँ लोगों ने इनके बनाए गहनों को ख़ूब पसंद किया। अब तो लोग शादियों में पहनने के लिए भी इन्हीं से गहने खरीदते हैं।

पुतुल केंद्र सरकार की गुरु शिष्य परंपरा योजना के तहत कई राज्यों में भी दूसरे लोगों को धान के गहने बनाने की ट्रेनिंग दे चुकी है।

सात-आठ साल तक चल जाती है धान की जूलरी

गहनों को किसी तरह का नुकसान न हो इसके लिए धान के दानों को केमिकल से ट्रीट किया जाता है। ये गहने सात-आठ साल तक ख़राब नहीं होते। धान के आभूषण बनाने के लिए पूरी तरह नैचुरल चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। इसी कारण इनकी माँग हमेशा बनी रहती है। उन्होंने अपने साथ दो दर्जन से अधिक महिलाओं को जोड़कर उन्हें रोज़गार दिया है।

पुतुल कहती हैं, "धान लंबे समय तक चलता है, इसलिए ये जल्दी खराब नहीं होता है, इसे चिपकाने के लिए गम इस्तेमाल करते हैं और कलर के लिए एक्रेलिक कलर इसलिए इसे धुल भी सकते हैं। ये खराब नहीं होगा, बल्कि सालों-साल तक चलता रहेगा।"

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