हम आए दिन चीन से अपनी तुलना करते रहते हैं और यदि किसी क्षेत्र में आगे बढ़ते दिखे तो गदगद होते हैं। बाकी बातें छोड़ दें तो भारत और चीन की जितनी जमीन थी उतनी ही है लेकिन हमारी आबादी 1.25 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है और चीन की मात्र 0.5 प्रतिशत की दर से। इसका मतलब है हमारी आबादी चीन से ढाई गुना रफ्तार से बढ़ रही है और हमारी सरकार इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर रही है। हमारे कुछ लोग हिन्दू आबादी और मुस्लिम आबादी के चक्कर में पड़े रहते हैं और कहते हैं प्रत्येक हिन्दू पांच बच्चे पैदा करे। यह देश हित में नहीं होगा।
हिन्दुओं को संख्या बल की नहीं संगठन और बुद्धिबल की आवश्यकता है। हमें ध्यान रखना चाहिए कि धृतराष्ट्र के 100 बेटे थे और सगर के 60000 लेकिन क्या हुआ? महाभारत की लड़ाई पांच पांडवों ने नहीं अकेले कृष्ण ने जिताई थी। इस देश के विद्वानों ने कहा है कि ‘‘वरमेको गुणी पुत्रो, न च मूर्ख शतान्यपि‘‘ जैसे चन्द्रमा अन्धकार भगाता है हजारों तारे नहीं। आज के जमाने में जब आबादी बढ़ती है तो उसके लिए रोटी, कपड़ा, मकान, दवाई, शिक्षा की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी सरकार की होती है। यह बात मोदी सरकार को सोचना चाहिए कि जीडीपी बढ़ाने से कहीं अधिक जरूरी है आबादी घटाना और कुरीतियां मिटाना।
आज भी हिन्दू समाज में छुआछूत, जातिगत अलगाव, दहेज, कन्याभ्रूण हत्या, नारी उत्पीड़न, लिंगभेद जैसी अनेक समस्याएं जस की तस मौजूद हैं। आज का हिन्दू अपने इतिहास को, अपने पूर्वजों को, अपनी परम्पराओं को नहीं जानता और आपस में छोटी-छोटी बातों पर लड़ता है और कुछ लोग कहते हैं पांच-पांच बच्चे पैदा करो। कुछ आपस में लड़कर मर जाएंगे और कुछ भूख से लड़कर। वैसे आबादी तो आबादी है उसमें जातियां और धर्म ना गिने तो ठीक रहेगा।
देश के नेता वोट के कारण तरह-तरह के कानून लाते रहते हैं जैसे भोजन की गारन्टी यानी बच्चे तुम पैदा करते रहो सरकार उनके भोजन की गारन्टी लेती है। यह आबादी बढ़ाने को प्रोत्साहन है। स्कूलों में भाई-बहनों को ब्रदर कन्सेशन, चाहे जितने भी बच्चे पैदा करो मुफ्त शिक्षा और मुफ्त दवाई, यह आबादी पर अंकुश नहीं प्रोत्साहन है। सरकारी नौकरी में एक से अधिक पत्नी वाले को नहीं रखतीं तो एक से अधिक पत्नी वालों का राशन कार्ड क्यों बने, सरकारी सुविधाएं जैसे मुआवजा और सब्सिडी क्यों मिले। कुछ कड़े कदम उठाने चाहिए जिससे आबादी पर अंकुश लगे।
देश की अजीब हालत है जिसमें जातीय और मजहबी आबादी के हिसाब से आरक्षण मांगा और दिया जाता है। कठिनाई यह है कि विभिन्न जातियों की आबादी की वृद्धि दर अलग-अलग है इसलिए जिस जाति की आबादी तेजी से बढ़ेगी वह अधिक आरक्षण की मांग कर सकती है। सरकार को चाहिए कि ऐसे सभी कदम समाप्त किए जाएं जो आबादी बढ़ाने को प्रोत्साहित करते हैं और ऐसे कदम उठाए जाएं जो आबादी बढ़ाने को हतोत्साहित करते हों।
यह सच है कि भारत और चीन में मौलिक अन्तर है। चीन में लोकतंत्र नहीं है इसलिए कोई भी कार्यक्रम जनता की इच्छा के विपरीत भी लागू हो सकता है और आबादी नियंत्रण तो जबरदस्ती ही हुआ है। हमारे देश में भी जब देश की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था तो बसों से पकड़-पकड़ कर नसबन्दी की गई थी। यह अब न तो सम्भव है और न वांछनीय है। फिर भी जितना सम्भव हो करना ही पड़ेगा।