''राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी को लेकर किसी भी तरह के भ्रम में आने की जरूरत नहीं है। उपभोक्ता किसी भी कोटे की दुकान से राशन ले सकते हैं, उनका नाम नहीं कटेगा।'' यह बात एडिशनल फूड कमिश्नर सुनील कुमार वर्मा कहते हैं।
इस साल की शुरुआत से उत्तर प्रदेश के 6 जिलों में राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी व्यवस्था लागू हो गई है। इन जिलों के नाम हैं- कानपुर नगर, लखनऊ, उन्नाव, बाराबंकी, हापुड़ एवं गौतमबुद्ध नगर। इस व्यवस्था का फायदा लेते हुए इन जिलों के राशनकार्ड धारक इन 6 जिलों की किसी भी कोटे की दुकान से राशन ले सकते हैं। यह व्यवस्था 'पायलेट प्रोजेक्ट' के तौर पर लागू की गई है और इसके सफल होने के बाद फरवरी तक प्रदेश के 75 जिलों में इसे लागू किया जाएगा।
फिलहाल इन जिलों के उपभोक्ता इस व्यवस्था का लाभ ले रहे हैं, लेकिन इनके सामने जो सबसे बड़ी दिक्कत आ रही है वो है कोटेदार द्वारा फैलाया जा रहा डर। डर इस बात का कि अगर दूसरी जगह से राशन लिया तो कोटे की दुकान से नाम कट जाएगा और फिर राशन नहीं मिल पाएगा। ऐसे में बहुत से उपभोक्ता चाहते हुए भी इस सुविधा का लाभ नहीं ले रहे हैं।
ऐसे ही एक उपभोक्ता हैं बाराबंकी के छेदा गांव के रहने वाले सुरेश। सुरेश ने जनवरी के महीने में पास के ही कोटे की दुकान से राशन लिया, लेकिन बाद में उसे पता चला कि अगर आगे से वो दूसरे कोटे की दुकान से राशन लेगा तो उसका नाम कट जाएगा। सुरेश कहते हैं, ''मेरे पास खेत है नहीं, मैं मजदूर हूं। राशन से ही घर चलता है। अगर वो भी नहीं मिलेगा तो कैसे चलेगा। इसलिए अब से पुरानी कोटे की दुकान से ही राशन लूंगा। वही सही है।''
राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी को लेकर इस भ्रम की स्थिति से और भी लोग दो चार हो रहे हैं। इस बात को खुद एडिशनल फूड कमिश्नर सुनील कुमार वर्मा भी मानते हैं। वो कहते हैं, ''यह लोग जान बूझकर भ्रम फैला रहे हैं, क्योंकि पोर्टेबिलिटी से राशन की दुकानें खुले बाजार की तरह हो जाएंगी। अब फरवरी में हम पूरे यूपी में पोर्टेबिलिटी व्यवस्था लागू कर देंगे, इसके बाद उपभोक्ता प्रदेश की 80 हजार 500 दुकानों में से किसी से भी राशन ले सकेगा। ऐसे में कोटेदारों को यह डर है कि इससे उनकी कोटेदारी छिन सकती है, क्योंकि अगर दुकान पर ग्राहक ही नहीं आएगा तो दुकान भी समाप्त हो सकती है।''
खाद्य एवं रसद विभाग उत्तर प्रदेश की वेबसाइट पर दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश में करीब 3 करोड़ राशन कार्ड धारक हैं। इन राशन कार्डों का लाभ करीब 13.36 करोड़ लोगों को मिल रहा है। प्रदेश में राशन वितरण का जिम्मा करीब 80 हजार 500 कोटे की दुकानों पर है। ऐसे में पूरे प्रदेश में पोर्टेबिलिटी व्यवस्था लागू होने के बाद इन दुकानों के बीच प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी।
सुनील कुमार वर्मा बताते हैं, ''हम लगातार देखेंगे कि कोटेदार का बर्ताव लोगों के साथ कैसा है। अगर उनके राशन कार्ड धारक बड़ी संख्या में दूसरी दुकान पर जा रहे हैं तो इससे यह बात समझ आती है कि या तो उनके वितरण में कोई खामी है या फिर उनका बर्ताव अच्छा न हो। हो सकता है वो दुकान ही न खोलते हों, क्योंकि ऐसा देखने में आता है कि कई कोटेदार अपना दूसरा बिजनस कर रहे हैं, कोटेदारी पर उनका ध्यान ही नहीं है। ऐसी स्थिति में अगर लगातार लोग दूसरी जगह से राशन लेंगे तो हमें उस दुकान को बंद करना पड़ेगा।''
सुनील कुमार वर्मा इस भ्रम की स्थिति पर साफ कहते हैं कि ''राशन कार्ड काटना या जोड़ना कोटेदार के हाथ में नहीं होता। कोई भी राशन कार्ड बिना सत्यापन के नहीं काटा जा सकता। हम यह देखते हैं कि उपभोक्ता राशन उठा रहा है या नहीं। उसके आधार कार्ड से राश्न कार्ड जुड़ा है या नहीं। साथ ही फील्ड की आख्या के बाद ही राशन कार्ड काटा जाता है। यह एक लंबी प्रक्रिया है। किसी को भी इस डर में नहीं रहना चाहिए कि पोर्टेबिलिटी व्यवस्था का इस्तेमाल करने से उनका राशन कार्ड कट जाएगा।''
प्रदेश में राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी लागू होने के बाद खाद्य एवं रसद विभाग इस काम में जुटेगा कि उपभोक्ताओं को उनके इलाके के पांच किलोमिटर के दायरे के कोटे की दुकान की जानकारी उपलब्ध कराई जा सके। उनके पास यह जानकारी हो कि किस कोटे की दुकान में राशन उपलब्ध है। इस बारे में सुनील कुमार वर्मा बताते हैं, ''हम सुचनाओं को आसानी से उपभोक्ता तक लाने की दिशा में काम कर रहे हैं। इससे पारदर्शिता आएगी।''