आखिर सरकार ने क्यों रोका पोलियो टीकाकरण अभियान ?

देश में 17 जनवरी से शुरू होने वाले पोलियो अभियान को फिलहाल स्थगित कर दिया है और 16 जनवरी से कोरोना टीकाकरण को लेकर तैयारियां तेजी से चल रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर लम्बे समय से देश में निश्चित समय पर चले आ रहे पोलियो टीकाकरण अभियान को स्थगित किया जाना कितना सही है?

Update: 2021-01-13 14:23 GMT
सरकार ने 17 जनवरी से शुरू हो रहे पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम को स्थगित किया। फोटो : गाँव कनेक्शन

"देश भर में पोलियो टीकाकरण अभियान 17 जनवरी से शुरू होगा। सरकार पोलियो की तरह कोविड का भी उन्मूलन करेगी," आठ जनवरी को देश के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से मीडिया के सामने यह घोषणा की, मगर अगले ही दिन पोलियो को लेकर यह अभियान स्थगित कर दिया गया।

नौ जनवरी को देश के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के प्रमुख सचिव द्वारा एक पत्र जारी किया गया जिसमें कहा गया कि अप्रत्याशित गतिविधियों की वजह से 17 जनवरी 2021 को पोलियो एनआईडी (National Immunisation Day) अगले नोटिस तक स्थगित कर दिया गया है।

इस पत्र में 16 जनवरी से शुरू हो रहे कोविड-19 को लेकर टीकाकरण अभियान का जिक्र नहीं किया गया मगर अगले नोटिस तक देश में पोलियो टीकाकरण अभियान को रोक दिया गया। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर लम्बे समय से निश्चित समय पर चले आ रहे देश में पोलियो टीकाकरण अभियान को स्थगित किया जाना कितना सही है? 

फोटो साभार : एएफपी 

देश में जन स्वास्थ्य अभियान से जुड़े अमूल्य निधि सरकार के इस फैसले का विरोध करते हैं और 16 जनवरी से शुरू हो रहे कोरोना टीकाकरण के एवज में अन्य रूटीन टीकाकरण कार्यक्रमों को रोके जाने जाने के सरकार के इस कदम को जन स्वास्थ्य के लिए गलत ठहराते हैं।

अमूल्य निधि 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "पिछले साल मार्च में कोरोना की वजह से जन स्वास्थ्य से जुड़े लगभग सारे कार्यक्रम बंद हो गए, चार महीनों बाद धीरे-धीरे शुरू किये गए, मगर सवाल यही है कि कल को अगर कोई नयी बीमारी या वायरस आ गया तो क्या आप स्वास्थ्य से जुड़े अन्य क्रायक्रम भी बंद कर दोगे?"

"कई राज्यों में जन स्वास्थ्य कानून लागू है, इस कानून का उद्देश्य ही यही है कि कोई भी महामारी आने पर फंड अलग से रखा जाता है और सरकार की ओर से इसके लिए पूरी योजना रहती है, ऐसे ही कोरोना के लिए सरकार को अलग से एक स्वतंत्र चैन बनानी चाहिए जो देश में इसके टीकाकरण कार्यक्रम से लगी रहे, मगर कोरोना वायरस के साल भर बाद भी बाकी रूटीन टीकाकरण अभियानों का प्रभावित करना सही नहीं है, सरकार खुद बोल रही है कि लोगों को कोविड के साथ जीना सीखना चाहिए, और सरकार को भी कॉविड के साथ स्वास्थ्य से जुड़े अन्य कार्यक्रमों के साथ जीना सीखना चाहिए," अमूल्य निधि आगे कहते हैं।

भारत में हर साल पोलियो ड्राप से जुड़ा अभियान बड़े स्तर पर चलाया जाता है और हर साल लाखों की संख्या में पांच वर्ष तक के उम्र के बच्चों को पोलियो ड्राप पिलाई जाती है। भारत में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चलता है, मगर अब यह आगे अभियान कब होगा, इसके बारे में अभी सरकार की ओर से कोई जानकारी नहीं दी गयी है। 

देश में पोलियो अभियान को लेकर आशा कार्यकत्रियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है और ग्रामीण स्तर तक बच्चों को पोलियो की खुराक देना सुनिश्चित करती हैं।

पोलियो अभियान को निरस्त किये जाने के फैसले पर उत्तर प्रदेश में आशा कर्मचारी यूनियन की स्टेट प्रेसिडेंट वीना गुप्ता 'गाँव कनेक्शन' से बताती हैं, "कोविड टीकाकरण के साथ पल्स पोलियो अभियान भी चलना चाहिए था, कोरोना वायरस के कारण प्रदेश में काफी समय से बच्चों को पोलियो खुराक नहीं दिया गया है और अगर सरकार चाहे तो दोनों अभियानों को साथ में ही चला सकती है, मगर सरकार पहले कोविड टीकाकरण को ज्यादा प्राथमिकता दे रही है।"

कोरोना वायरस के कारण देश में अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर खासा प्रभाव पड़ा और गैर कोविड स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई थीं। हालांकि कोरोना वायरस को लेकर अब भारत में दो वैक्सीन को मंजूरी मिल गयी है मगर जन मानस तक वैक्सीन की पहुँच में लम्बा समय लग सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी 18 दिसंबर को यह चेताया कि भले ही वैक्सीन आने से कोरोना वायरस के नियंत्रण को लेकर उम्मीद जगी हो, मगर आम नागरिकों को कोरोना वायरस की वैक्सीन मिलने में 12 से 24 महीनों तक का समय लग सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर जन स्वास्थ्य से जुड़े अन्य कार्यक्रमों पर इतनी हीलाहवाली बरतना कितना सही है? 

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इस बारे में आल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क के सह संयोजक डॉ. गोपाल दोबाड़े 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "अगर ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में अन्य जन स्वास्थ्य सेवाओं पर इसका बुरा असर पड़ेगा। वैसे भी अपने देश में स्वास्थ्य बजट जीडीपी का सिर्फ 1.2 फीसदी है जो दुनिया में अन्य देशों के मुकाबले सबसे कम है, इसे कम से कम चार से पांच फीसदी तक होना चाहिए था।"

"हमें वर्ल्ड बैंक ने भी चेताया है कि कोरोना से इतर भी जन स्वास्थ्य से जुड़े अन्य कार्यक्रमों पर हमें जोर देना चाहिए। कुछ राज्यों में तो पब्लिक सेक्टर बहुत कमजोर है और वहां स्वास्थ्य के लिए अतिरिक्त फंड भी नहीं दिया जाता है। इसे हमें जन स्वास्थ्य से जुड़े सभी अभियानों को बैलेंस करने की जरूरत है और अगर ऐसा नहीं कर पाते हैं तो आने वाले समय में इसका ख़ासा असर पड़ेगा," डॉ. गोपाल दोबाड़े आगे कहते हैं।

हालांकि भारत में पोलियो का आखिरी मामला वर्ष 2011 में दर्ज किया गया था और हर साल राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन पर होने वाला पोलियो अभियान एक बहुमूल्य कार्यक्रम है। आठ जनवरी को केंद्रीय स्वस्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने 17 जनवरी से भारत में पोलियो अभियान के शुरुआत करने की घोषणा के साथ कहा था कि भारत ने जिस तरह से 10 सालों में देश से पोलियो का उन्मूलन किया है, वैसे ही देश से कोविड का भी उन्मूलन होगा। मगर देश में कोरोना वैक्सीन लगाने की तैयारियों के बीच अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर इसका असर दिखाई देता नजर आ रहा है।

इस बारे में आल इंडिया पीपल्स साइंस नेटवर्क के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान कार्यकारी सदस्य डी. रघुनंदन 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "कोरोना वायरस के साल भर बाद भी अगर हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर असर पड़ रहा है तो आने वाले समय में इसके हमें बुरे नतीजे देखने को मिलेंगे। सरकार के पास यह मौका था कि देश की जो स्वास्थ्य व्यवस्था पहले से कमजोर है उसको और मजबूत किया जा सके, मगर ऐसा नहीं हुआ।"

"देश के पब्लिक हेल्थ विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य संगठनों ने कोरोना से इतर अन्य बीमारियों पर ध्यान दिए जाने को लेकर सरकार को पहले भी चेताया था, कोरोना की वजह से अन्य टीकाकरण अभियानों पर पहले भी असर पड़ा है और अब अगर पोलियो अभियान किया जाता है तो यह सही नहीं है, सरकार को दोनों अभियानों को साथ चलाना चाहिए था," डी. रघुनंदन आगे कहते हैं।

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