विशु : आरमुला कन्नाडी आईना, जो सिर्फ केरल के छोटे से कस्बे में बनाया जाता है
सूर्य का मेष राशि में प्रवेश हो गया है.. आप सभी को 'विशु' की शुभकामनाएँ।
केरल और दक्षिण भारत के कई हिस्सों में मनाये जाने वाला त्यौहार है विशु, ये फ़सल कटाई का त्यौहार है इसलिए सुख समृद्धि की कामना से जुड़ा है। इस दिन सुबह आँख खोलते ही सबसे पहले भगवान विष्णु के सामने रखे अमलतास के फूल, नारियल, आम, ककड़ी, केला, कटहल, नीबू और स्वर्ण देखने की प्रथा है, ये 'विशु कणि' कहलाती है,याने जो सबसे पहले देखी जाए। पहले हमारे उठने के पहले मां सारी तैयारी करती थीं और हम उठ कर आँखें बंद किए किए भगवान के सामने पहुँच जाते थे और विशु कणि देखते थे। हम यही प्रथा हम निभाते हैं अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए।
पूजा में रखी सभी चीज़ें सोने जैसी पीली होती हैं। एक विशेष पात्र उरुली में सुनहरा धान भी भर कर रखते हैं। नारियल के दो टुकड़े करके उसके भीतर दीपक जलाते हैं।
फिर सब चीज़ों के सामने एक आईना रखते हैं- अरमुला कन्नाडी।
माना जाता है कि आईने में दिखता प्रतिबिंब खुशियों को और धन धान्य को दुगुना दिखाता है इसलिए साल भर घर भी भरा रहता है। ये आरमुला कन्नाडी याने केरल के छोटे से क़स्बे आरमुला में बनाया आईना है। ये कांच का नहीं बल्कि एक विशेष धातु मिश्रण से बनाया जाता है। इस आईने को वहां के कुशल कारीगर सदियों से बना रहे हैं और इसका राज़ अपने परिवार तक ही सीमित रखते हैं। बहुत मेहनत और तकनीकी कौशल से बने इस आईने की कीमत भी बहुत ज़्यादा होती हैं।
केरल में इस आईने को शुभ माना जाता है। लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम में भी एक आरमुला कन्नाडी रखा हुआ है।
हाँ तो बात विशु की हो रही थी। इस दिन अपने से छोटों के हाथ में पैसे देने का रिवाज़ भी है- इसे ‘विशु कईनीटम’ कहते हैं। हम जब छोटे थे तब ग्यारह रुपए या बहुत हुआ तो इक्यावन रूपए मिल जाते थे। पर तब हमारी गुल्लकें इतने में ही खनक जाती थीं।
इस दिन पैसे के अलावा लोग गरीबों को, अपने मातहतों को तोहफ़े भी देते हैं| सब समृद्ध हों यही भाव है। घर की औरतें नयी नयी सेट-साड़ी पहनती हैं, जिसे पहले पूजा में भी रखा जाता है|
रसोई में ख़ास केरल स्टाइल का खाना “सद्या” बनाया जाता है, जिसे केले के पत्तों में परोसते हैं। खुशियों, मेलजोल और उम्मीद का त्यौहार है विशु। सच तो बस इतना है कि त्यौहार मन में छाए दुःख को हल्का कर देते हैं, निराशा पर आशा की सुनहरी चादर ओढ़ा देते हैं।
अनुलता राज नायर,लेखिका और कहानीकार हैं, लेख उनके फेसबुक से लिया गया है।
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