गाँव से निकली इन बैडमिंटन खिलाड़ियों का अब लक्ष्य है ओलंपिक में गोल्ड जीतना

अपने देश के लिए खेलना हर खिलाड़ी का सपना होता है, आज मिलिए ऐसे ही बैडमिंटन की दो खिलाड़ियों से जो गाँव से निकलकर ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने के लिए अभी से कड़ी मेहनत कर रही हैं।

Update: 2023-11-30 05:31 GMT

उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले से करीब 275 किलोमीटर दूर लखनऊ आईं बैडमिंटन खिलाड़ी सोनाली सिंह को यकीन है कि उन्हें अगले ओलंपिक में गोल्ड मेडल जरूर मिलेगा।

"अभी हमने इंडिया रिप्रेजेंट करना शुरू किया है, मुझे यकीन है अगले दो साल में हमारे पास कुछ गोल्ड मेडल जरूर आएँगे, फिर उसके बाद अगले ओलंपिक की तैयारी करेंगे गोल्ड लाएँगे, बस यही हमारा लक्ष्य है।" बैडमिंटन खिलाड़ी सोनाली सिंह ने गाँव कनेक्शन से कहा।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बाबू बनारसी दास बैडमिंटन अकादमी में सैयद मोदी अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन चैंपियनशिप चल रही है। जहाँ सोनाली की तरह देश- विदेश से बेहतरीन खिलाड़ी अपने खेल का जौहर दिखाने पहुँचे हैं।

सैयद मोदी इंडिया इंटरनेशनल बैडमिंटन चैंपियनशिप एचएसबीसी वर्ल्ड टूर सुपर 300 में इंडिया को रिप्रेजेंट करने वालीं दो लड़कियाँ सोनाली और समृद्धि सिंह ने डबल्स का अपना पहला मैच जीत लिया है और अपने शानदार प्रदर्शन से महिला युगल के मुख्य ड्रॉ में जगह बना ली है अब उनकी नज़र टूर्नामेंट जीत कर खिताब अपने नाम करने पर है।

दोनों लड़कियों के बैडमिंटन सफ़र की शुरुआत भले अलग रही हो मंज़िल एक ही है, भारत के लिए ओलंपिक्स में गोल्ड लाना।


उत्तराखंड के देहरादून जिले के छोटे से गाँव कोरवा से निकलकर समृद्धि सिंह का लखनऊ आना और देश को बैडमिंटन में रिप्रेजेंट करना वास्तव में बड़ी बात है, लेकिन ये सफ़र शुरू एक एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी के तौर पर हुआ था। जहाँ समृद्धि ने बैडमिंटन खेलना सिर्फ इसलिए शुरू किया ताकि उनकी बहन से उनकी लड़ाई न हो। समृद्धि अपने गाँव की पहली लड़की है जिसने स्पोर्ट्स को अपने करियर के रूप में चुना।

समृद्धि गाँव कनेक्शन को बताती हैं, "मेरे गाँव में कोई भी स्पोर्ट्स के बारे में नहीं जानता है; मैं अपने गाँव से पहली लड़की हूँ, जिसने स्पोर्ट्स खेलना शुरू किया, मेरे गाँव मैं लगभग सब खेती ही करते हैं, लेकिन किस्मत से पापा की जॉब लखनऊ में लग गई तो हम यहाँ आए और मैंने खेलना स्टार्ट किया वरना गाँव में तो मुश्किल था।"

समृद्धि के बैडमिंटन चुनने के पीछे एक अलग ही कहानी है, वे कहती हैं, "मेरी एक बड़ी बहन भी है और हम दोनों डांस करते थे, फिर मम्मी ने बोला की दोनों बहने एक ही प्रोफेशन न चुने, ताकि हम दोनों में लड़ाई न हो; मैं बहुत एक्टिव थी और शैतान भी, तो घर वालों ने सोचा की इसे स्पोर्ट्स में डाल देते हैं।"


"पहले हम लखनऊ के केडी सिंह स्टेडियम में एडमिशन के लिए गए, लेकिन उस समय वहाँ टेनिस के कोच नहीं थे; मम्मी को टेनिस ज़्यादा पसँद था, फिर पापा ने बैडमिंटन में ही एडमिशन करवा दिया। उस समय बस एक एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी के लिए मैंने बैडमिंटन खेलना शुरू किया था ऐसा कोई गेम को लेकर पैशन नहीं था।" समृद्धि ने कहा।

समृद्धि ने अभी तक कई पदक जीते हैं और वो इंडिया को अंडर 19 वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी रिप्रेजेंट कर चुकी है। 2018 में उन्होंने जूनियर नेशनल खेला है, जिसमें उनका सिल्वर मेडल था, इंडिया अंडर 19 खेला, नेशनल में भी सिल्वर, ब्रॉन्ज मेडल हासिल कर चुकी हैं और फिलहाल उनका पूरा ध्यान सैयद मोदी अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन चैंपियनशिप जीतने पर है।

एक कहावत तो हम सबने ज़रूर कभी न कभी सुनी होगी 'पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे तो बनोगे ख़राब' लेकिन सोनाली सिंह के पिता की सोच इसके उलट थी। उनका कहना था खेल पर ज़्यादा ध्यान दो; सोनाली के बैडमिंटन को एक करियर के रूप में चुनने के पीछे उनके पिता का बड़ा योगदान है, क्योंकि वो खुद भी वॉलीबॉल के प्लेयर रह चुके हैं।

आज़मगढ़ की रहने वाली सोनाली सिंह जो पिछले आठ साल से बैडमिंटन खेल रही हैं, गाँव कनेक्शन से कहती हैं, "दरअसल मुझे बचपन से ही ट्रॉफी बहुत पसँद थी और मेरे पापा वॉलीबाल में थे तो उनका ये था अगर ट्रॉफी जितनी है तो स्पोर्ट्स खेलना पड़ेगा; वो टीम गेम में थे तो उनके साथ काफी पॉलिटिक्स वगैरह हुई थी तो उनका मानना था की किसी ऐसे स्पोर्ट्स में इसको डालते हैं जिससे सारा बर्डन इसके ऊपर हो।

ये जितनी मेहनत करेगी उसको उतना ही मिलेगा, इसलिए पापा ने बैडमिंटन में डाला।"

"पैरेंट्स ने हमेशा बोला है स्पोर्ट्स पर ज़्यादा ध्यान दो पढ़ाई पर कम ध्यान दो,काफी सपोर्टिव पेरेंट्स हैं मेरे; उनका कहना था की दो नाव में पैर मत रखो जो करो अच्छे से करो फिर चाहे पढ़ाई हो या स्पोर्ट्स। " सोनाली ने कहा।

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