छत्तीसगढ़: CIMS में लगी थी आग, अब तक 5 बच्चों की मौत, प्रशासन पर लीपापोती का आरोप
लखनऊ। बिलासपुर में मौजूद छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (सिम्स) में 22 जनवरी को शॉर्ट सर्किट से आग लग गई थी। इसके बाद नियो-नेटल केयर युनिट (गहन नवजात चिकित्सा ईकाई) में भर्ती 18 नवजात बच्चों को अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया। अब तक इन बच्चों में से 5 की मौत हो गई है। ऐसे में मेडिकल कॉलेज पर आरोप लग रहे हैं कि इन बच्चों की मौत दम घुटने से हुई है। हालांकि मेडिकल कॉलेज की ओर से जारी बयान में इन आरोपों को सिरे से खारिज किया गया है।
21 जनवरी को सुबह करीब 10 बजे मेडिकल कॉलेज के इलेक्ट्रिकल पैनल में आग लग गई। इसकी वजह से एनआईसीयू (गहन नवजात चिकित्सा ईकाई) वार्ड में धुआं भर गया। साथ ही वॉर्ड की बिजली भी चली गई। मेडिकल कॉलेज की प्रेस विज्ञपति में दी गई जानकारी के मुताबिक, इस घटना के बाद आनन फानन में वॉर्ड से नवजात बच्चों को दूसरे अस्पताल में शिफ्ट किया गया।
शिफ्ट करने के कुछ देर बाद ही एक बच्ची की मौत हो गई। इस बच्ची की मां तारिणी ने गांव कनेक्शन को बताया कि, ''मेरी बच्ची 16 जनवरी को पैदा हुई। अगले दिन (17 जनवरी) उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी तो डॉक्टरों ने उसे भर्ती कर लिया। इसके बाद से उसका इलाज चल रहा था। डॉक्टर कहते थे कि उसकी हालत सही हो रही है, लेकिन जिस रोज आग लगी उस दिन भी उसकी मौत की खबर आई।''
तारिणी की बच्ची की मौत की खबर के बाद ऐसी खबरें आईं कि बच्ची की मौत दम घुटने से हुई है। इसके बाद 23 जनवरी को एक बच्ची की मौत, 27 जनवरी को 2 बच्चियों की मौत हुई और फिर 31 जनवरी को 1 बच्ची की मौत हो गई। कुल 5 बच्चियों की मौत को लेकर मेडिकल कॉलेज पर लगातार यह आरोप लग रहे थे कि इन मौतों के पीछे कॉलेज में आग लगने और वॉर्ड में धुंआ भर जाना है। साथ ही इन बच्चों को शिफ्ट करते हुए भी लापरवाही हुई जिस वजह से उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई।
इन खबरों के बाद मेडिकल कॉलेज ने बयान जारी कर कहा कि प्रारंभिक जांच के मुताबिक, ''सिम्स चिकित्सालय से स्थानांतरित जिन बच्चों की मौत हुई है वो सब पहले से गंभीर स्थिति में भर्ती हुए थे। इनमें से किसी भी मरीज की मौत आग से जलने या धुएं से नहीं हुई है।''
इस मामले पर सामाजिक कार्यकर्ता प्रियंका शुक्ला बताती हैं कि ''मेडिकल कॉलेज में आग लगने के बाद कुल 22 बच्चों को पहले जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां उस हिसाब की व्यवस्था नहीं थी। इसके बाद बच्चों को अलग अलग अस्पताल में भेजा गया। इन अस्पतालों के नाम हैं- अपोलो अस्पताल, महादेवा अस्पताल और शिशु भवन। यहां इनकी हालत खराब होती गई और अब तक 5 बच्चों की मौत हो गई है।'' प्रियंका शुक्ला कहती हैं, ''इस मामले में प्रशासन लीपापोती करने में जुटा है।''
मेडिकल कॉलेज से 8 बच्चों को महादेवा अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इनमें से 1 बच्ची की मौत हो गई। महादेवा अस्पताल के डॉक्टर आशुतोष तिवारी कहते हैं, ''जिस बच्ची की मोत हुई वो पहले से बीमार थी। सिर्फ धुएं से दम घुटने से मौत की बात गलत है। इन बच्चों की तबीयत पहले से खराब थी। इसी लिए उन्हें नियो-नेटल केयर युनिट में भर्ती किया गया था। ऐसे में सिर्फ धुएं से मौत होना एक वजह नहीं हो सकती। मेडिकल कॉलेज से शिफ्ट करते हुए भी कोई दिक्कत हो सकती है।''