छत्‍तीसगढ़: मलेरिया बच्‍चों को बना रहा शिकार, लोग लाचार

Update: 2019-02-14 05:39 GMT

कोंटा, छत्तीसगढ़। मडावी कोसा (28) छत्तीसगढ़ के नागराव गांव में रहती हैं, जो सुकमा जिले के कोंटा तहसील में पड़ता है। दो हफ्ते पहले इनके दो साल के बच्चे को जब तेज बुखार आया तो ये अपने गांव से 25 किमी चल के हाईवे तक आईं, लेकिन इन्हें कोई गाड़ी या बस नहीं मिली तो वापस पैदल चल के अपने गांव चली गयीं। दो हफ्ते बाद उन्होंने फिर कोशिश की। हर गुरूवार को कोंटा में बाज़ार लगता है जिस कारण बहुत से अन्दर के गांवों के लोग कोंटा आते हैं और गाड़ियां मिल जाती हैं। जब तक वो क्लिनिक पहुंची तब तक इनके बच्चे की मलेरिया से हालात बहुत खराब हो गयी थी।

अपने बच्‍चे के साथ मडावी कोसा। 

इसी तरह कोंटा से 40 किमी दूर मेलासुर गांव में रहने वाली वेको मडावी (26) को कोई खबर ही नहीं थी कि उनके नवजात शिशु का वज़न लगातार क्यों घट रहा था। चार महीने बाद जब वो 40 किमी चल के कोंटा पहुंची तब उन्हें बताया गया के उनका 2 साल का बच्चा कुपोषित है और उसका वजन सिर्फ 1.2 किलो था। उसे एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के सहायता से सुकमा के एक बड़े अस्पताल में ले जाया जा रहा था।

संपत करताम

राज्य में अन्दर के गांवों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य की हालत बहुत ख़राब है और इसका अहम कारण है सडकों का न होना। ''हमारे गांव शहरों से और मुख्य हाइवे से काफी कटे हुए हैं। कई लोगों को 40 किमी दूर चल के आना पड़ता है। अगर सड़के बन जाएं तो कई मसले हल हो जाएंगे। खास कर स्वास्थ्य से सम्बंधित।'' संपत करताम (25) ने बताया जो बीजापुर के रहने वाले हैं लेकिन वहां हो रही हिंसा के कारण कोंटा में रह रहे हैं।

मडावी सुक्का

''मैं 30 साल से नागराव में रह रही हूं। इतने वर्षों में मैंने न ही कोई अस्पताल बनते देखा है ना ही किसी सरकारी डॉक्टर को दौरे पर आते देखा है। हमारा गांव इतना अन्दर है कि बच्चों को लाते-लाते ही कई बार वो मर जाते हैं। इस वजह से हम आज भी जड़ी बूटियों पर निर्भर हैं। सबसे ज्यादा लोग मलेरिया से मरते हैं और सरकार एक मामूली से मच्छरदानी भी नहीं देती।'' मडावी सुक्का (30) ने बताया।

2017 में ही राज्य में 141,310 मलेरिया के केस सामने आए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य में 2016 के पहले 3 महीनों में ही 32,000 केस सामने आये थे। सिर्फ मलेरिया से ही मरने वालों की संख्या इतनी ज्यादा है की सरकार ने 2030 इस बीमारी को पूरी तरीके से मिटने के लिए एक एक्शन प्लान बनाया है।

कोंटा के एकमात्र सरकारी अस्पताल में काम करने वाली डॉक्टर जी. हरिका ने बताया, ''पिछले 3 महीनों में ही मलेरिया के न जाने कितने केस सामने आए, जिसमें से ज्यादातर बच्चे थे। ये लोग जंगलों में रहते हैं। खाने को पौष्टिक खाना नहीं मिलता इसलिए ये सारे कमज़ोर हैं। ज्यादातर लोग नालों का गन्दा पानी पीते हैं। सिर्फ कुछ ही गांवों में बोरवेल हैं। महिलाओं की स्वास्थ्य की स्‍थ‍िति और खस्ता है। बहुत सी महिलाओं को कई तरह की बीमारियां हैं जिसका वो इलाज तक नहीं करवाती। परिवार नियोजन के बारे में इन्हें कुछ नहीं पता। सबके 5-6 बच्चे हैं। ये खुद भी इतनी कमज़ोर होती हैं कि बच्चों को दूध तक नहीं पिलाती जिससे कई बच्चे मर जाते है।''

उन्हीं के सहयोगी डॉक्टर टी. सुनील ने बताया, ''छत्तीसगढ़, आन्ध्र और उड़ीसा के जंगलों में मलेरिया का कहर एशिया में सबसे ज्यादा है। राज्य में इसकी सबसे बड़ी वजह है सडकों का न बनने देना। अगर सड़क बनेगी को डॉक्टर्स भी अन्दर जा सकते हैं और गांव वालों को बाहर तक नहीं आना पड़ेगा। मैं खुद केवल 20 किमी अन्दर बसे गांवों तक जा पाया हूं। कोंटा में यह एक ही सरकारी अस्पताल है जहां 150 गांवों के लोग आते हैं। सड़कों के निर्माण से आधे से ज्यादा मसले हल हो जाएंगे, लेकिन कुछ लोग ये चाहते नहीं हैं।''

राजेश राव

राजेश राव जो कोंटा में आदिवासियों के लिए स्वास्थ्य संबंधित NGO चलाते हैं उन्होंने बताया, ''बहुत ज़रूरी है कि सरकार इन बीमारियों और उनसे मरने वाले लोगों के आंकड़े हर साल जारी करे। इस से हम जैसे लोगों के लिए बहुत आसानी होगी। आदिवासी बहुत डरते हैं। अगर हम इन्हें सरकारी अस्पताल में भारती करते हैं तो वो भाग जाते हैं। इन इलाकों में बहुत गहराई में जाके काम करवाना पड़ेगा। गांव-गांव जाकर लोगों को समझाना पड़ेगा कि मलेरिया, कुपोषण जैसी बीमारियां होती किस वजह से हैं। जब तक उन्हें यही पता नहीं चलेगा, तब तक ये इलाज की एहमियत समझेंगे ही नहीं।'' 

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