मुजफ्फरपुर: "बच्चा लोग का जान निकलते देख कलेजा धक से हो जाता है"

Update: 2019-06-14 12:59 GMT

मुजफ्फरपुर (बिहार)। बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास के जिलों में संदिग्ध बुखार से अब तक 70 बच्चों की मौत हो चुकी है और अभी 100 से ज्यादा बच्‍चों का इलाज चल रहा है। रोज होती मौतों को देखकर बीमार बच्चों के परिजनों की सांसें अटकी हुई हैं। कोई भगवान के सामने हाथ जोड़ रहा है तो कोई बीमार कलेजे के टुकड़े को एकटक निहार (देखना) रहा है। वहीं कुछ लोग इसे चमकी बुखार (दिमागी बुखार) बता रहे हैं। हालांकि डॉक्‍टर अभी बीमारी का पता लगा रहे हैं।

देवरिया कोठी, मुजफ्फरपुर की रहने वाली अमीना खातून की 6 साल की बेटी फरजाना भी मेडिकल कॉलेज में भर्ती है। अमीना ने बताया कि तीन दिन पहले बिटिया ठीक थी। अचानक हाथ पैर अकड़ गए, तेज बुखार हो गया। आनन-फानन में अस्पताल में लाया गया। डॉक्टर बोल रहे हैं सुधार है, लेकिन मेरी बिटिया आंख नहीं खोल रही है, कुछ खा भी नहीं रही है। इतना कहते कहते अमीना फफक कर रो पड़ती हैं। इस दौरान उनके पास मौजूद महिलाएं उन्‍हें संभालती हैं।

जिस वार्ड में बच्चे एडमिट हैं वहां कोई एक दूसरे से बात नहीं कर रहा है। यहां मौजूद हर शख्‍स को किसी अनहोनी का डरा लगा हुआ है। सभी उम्मीद भरी नजरों से अपने जिगर के टुकड़ों को देख रहे हैं कि वह जल्दी ठीक हो जाएंगे।

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फोन पर अपने पापा से बात करती खुशबू।


बगल के बेड पर लेटी ढाई साल की खुशबू की तबियत में कुछ सुधार है। खुशबू मोबाइल पर तोतली आवाज में अपने पिता से बात करते हुए नजर आई। उसकी प्यारी आवाज सुनकर पास बैठी महिलाओं के चेहरे पर कुछ पल के लिए मुस्कान आ गई थी।

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पास में खड़ी सिस्टर महिलाओं को दिलासा दे रही थी और लोगों से कह रही थी कि आप लोग बिल्‍कुल भी परेशान मत होइए, खुशबू को देखिए। इसी तरह आपके बच्चे भी जल्दी ठीक हो जाएंगे। बस धैर्य बनाकर ऊपर वाले पर भरोसा रखिए।"

वार्ड के एक बेड पर अपने बीमार बच्चे का पैर दबाते हुए वेदांती देवी उदास मन से कहती हैं कि " हमार बबुआ कुछू बोल नहीं रहा है। तीन दिन हो गया कोई सुधार नहीं हो रहा है। डॉक्टर लोग नाक के रास्ते पानी चढ़ा रहे हैं। पता नहीं हमार बबुआ कब निम्मन (ठीक) होगा।"



वार्ड के सबसे किनारे वाले बेड पर लेटी हुई 3 साल की सुदामा कुमारी अपने हाथ पर लगे ड्रीप से परेशान है। बार-बार हाथों में दर्द होने के कारण उस ड्रिप को निकालना चाह रही है। वह अपने मां से कभी घर जाने के लिए बोलती है तो कभी हाथ में दर्द होने की शिकायत करती है। बीमार बेटी की हालत को देखकर उसकी मां अंजू की आवाज बैठ गई है। दबे आवाज में वो कहती हैं "तुम्हरा पापा आ रहे हैं, कल सुबह घर चलेंगे।"

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आंसू पोछते हुए अंजू कहती हैं, "हेकरा पापा बाहर रहते हैं। ट्रेन में बैठ गए हैं। कल तक आ जाएंगे। डॉक्टर सब कह रहे हैं भरोसा रखो। अउर बच्चा लोग का जान निकलते देख कालेज धक से हो जाता है। हमरा बहुत डर लग रहा है। हमरा बिटिया को कही कुछ हो न जाये, इस बात का डर लगा रहा है।" इतने कहने के बाद वो फिर अपनी बेटी को देखने लगती हैं।


वहीं श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के सीएमएस (चीफ मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट) डॉ. सुनील कुमार शाही ने गांव कनेक्शन से विशेष बातचीत में बताया कि" कोई भी मौत लीची खाने से नहीं हुई है। इस पर हम पहले ही रिसर्च कर चुके हैं। जैसे ही बारिश शुरू होगी यह बीमारी भी खत्म हो जायेगी। अभी तक 62 बच्‍चों की मौत हो चुकी है। वहीं 30 बच्‍चे स्‍वस्‍थ होकर घर जा चु‍के हैं।

गौरतलब है कि बिहार के मुजफ्फरपुर में संदिग्ध बुखार (दिमागी बुखार) से बच्चों के मरने की संख्या बढ़ती ही जा रही है। शुक्रवार की सुबह मुजफ्फरपुर मेडिकल कॉलेज पहुंचे नीतीश कुमार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि मौत के कारणों पर अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है, जांच चल रही है।

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