उत्तर प्रदेश की कोल खदानों की सुरक्षा सीआईएसएफ जवानों के हवाले

Update: 2017-11-19 11:43 GMT
कोयला खदान में कार्य करती महिलाएं। प्रतीकात्मक फोटो साभार इंटरनेट

लखनऊ। कोल खदानों में कोयला व कबाड़ चोरी की बढ़ती घटनाओं पर प्रभावी अंकुश के लिए खदानों की सुरक्षा व्यवस्था अब केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) को सौंपी जाएगी। उत्तर प्रदेश में स्थित नार्दर्न कोलफील्डस लिमिटेड (एनसीएल) की पांच कोयला खदानों की सुरक्षा के लिए संबंधी एनसीएल बोर्ड के प्रस्ताव को केंद्रीय गृह मंत्रलय ने मंजूरी दे दी है।

गृह मंत्रलय द्वारा उत्तर प्रदेश में स्थित खदानों के लिए भेजे गए 2100 जवानों के प्रस्ताव के सापेक्ष 2081 जवानों के तैनाती को मंजूरी मिली है इसी तरह एनसीएल बोर्ड द्वारा मध्य प्रदेश में स्थित कोल खदानों के लिए 1808 जवानों की तैनाती संबंधी प्रस्ताव गृह मंत्रलय को भेजा जा चुका है।

इस संबंध में एनसीएल के जनसंपर्क अधिकारी सीरज कुमार सिंह ने बताया, "वर्तमान में अमलोरी परियोजना व जयंत स्थित मैग्जिन (शस्त्रगार) में प्रयोग के तौर पर तैनाती दी गई है। सीआईएसएफ जवानों की तैनाती से खदानों सहित आवासीय परिसर की भी सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद हो जायेगी।"

खदानों में चोरी की बढ़ती घटनाओं से हो रहा भारी नुकसान

उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र में फैले एनसीएल की कोयल खदानों में कोयला, कबाड़ व डीजल चोरी की बढ़ती घटनाओं से कोल परियोजनाओं को भारी आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ रहा है। प्रबंधन, सुरक्षा एजेंसियों व प्रशासन के तमाम कवायद के बाद भी चोरी की घटनाओं पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पा रहा है। इससे जहां परियोजनाओं की उत्पादन व उत्पादकता पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा था वहीं इससे भारी आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ रहा है। इसे देखते हुए प्रबंधन द्वारा खदानों की सुरक्षा व्यवस्था सीआईएसएफ के हवाले करने का निर्णय लिया गया है। जल्द ही जवानों की तैनाती कर दी जाएगी लेकिन मध्य प्रदेश की खदानों का मामला अभी लटका हुआ है।

फोटो साभार सीआईएसएफ ट्वीटर एकाउंट

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अमलोरी परियोजना में हो चुकी है तैनाती

प्रयोग के तौर पर एनसीएल प्रबंधन द्वारा अमलोरी परियोजना में सीआइएसएफ के जवानों की तैनाती कर दी गयी है। इसकी सफलता को देखते हुए अन्य परियोजनाओं में भी सीआइएसएफ मोर्चा संभालेगी।

अभी तक निजी सुरक्षा एजेंसियां संभालती थीं कमान

कोल परियोजनाओं में अभी तक सुरक्षा व्यवस्था की कमान निजी सुरक्षा एजेंसियां संभाल रही थी। विभिन्न परियोजनाओं में अलग-अलग एजेंसियों की तैनाती के कारण उनमें परस्पर समन्वय का अभाव रहता है। समुचित संसाधनों के अभाव में सुरक्षाकर्मी दुस्साहसी कबाड़ चोरों के समक्ष खुद को असहज पाते हैं। हालांकि परियोजनाओं के खुद के सुरक्षा गार्ड भी हैं, किंतु इनकी संख्या कम होने के कारण ये भी बेअसर साबित होते हैं।

फोटो साभार सीआईएसएफ ट्वीटर एकाउंट

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यूपी क्षेत्र में पांच परियोजनायें

एनसीएल की कोल परियोजनायें उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में विस्तृत हैं। इनमें से दुद्धीचुआ, खड़िया, कृष्णशिला, बीना व ककरी परियोजनायें यूपी क्षेत्र में तथा अमलोरी, निगाही, जयंत, ब्लाक बी व झगुरदह परियोनायें एमपी क्षेत्र में स्थित हैं।

भारत की कोयला खानें

  • राज्य------------------कोयले का भण्डार (मिलियन मेट्रिक टन में)
  • तमिलनाडु------------80,356.21
  • झारखण्ड-------------80,356.20
  • ओडिशा--------------71,447.41
  • छत्तीसगढ़-----------50,846.15
  • पश्चिम बंगाल-------30,615.72
  • मध्य प्रदेश----------24,376.26
  • तेलंगाना-------------22,154.86
  • महाराष्ट्र-------------10,882.09
  • उत्तर प्रदेश---------1,061.80
  • मेघालय-------------576.48
  • असम---------------510.52
  • नागालैण्ड-----------315.41
  • बिहार---------------160.00
  • सिक्किम-----------101.23
  • अरुणाचल प्रदेश----90.23
  • असम---------------2.79

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कोयला खनन का इतिहास

भारत के वाणिज्यिक कोयला उद्योग का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है। बताया जाता है कि वर्ष 1774 में जॉन सुमनेर और हिटली ने रानीगंज कोयला क्षेत्र और साथ में दामोदर नदी के पश्चिमी किनारे में कोयला खनन का काम शुरू किया था। हालांकि, शुरुआती दौर में कोयले की ज्यादा मांग नहीं होने के कारण इसका खनन सीमित मात्र में ही किया जाता था। वर्ष 1853 के बाद इसकी मांग में अचानक से तेजी उस समय आयी जब ब्रिटिश सरकार ने भारत में ट्रेन की शुरुआत की। भाप इंजन में कोयले की खपत होने के चलते इसकी मांग बढ़ गयी। आरंभिक वर्षो में जहां कोयले का उत्पादन सालाना औसतन एक लाख टन हुआ करता था, वहीं भाप इंजन के आने से धीरे-धीरे इसकी मांग और उत्पादन बढ़ता गया।

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