बर्फ़बारी का कहर: कश्मीर के दूर-दराज के गाँवों में मनरेगा के तहत बर्फ की सफाई की माँग

टूटी हुई सड़कें, भारी बर्फ़बारी और कड़ाके की ठंड की वजह से जम्मू और कश्मीर के ग्रामीण इलाकों के लोग रोज़मर्रा की ज़रूरत की चीज़ों के लिए तरस रहे हैं। सरकारी विभागों की बर्फ़ हटाने की कोशिशें नाकाम रही हैं। क्या मनरेगा से इसका कोई हल निकल पाएगा?

Update: 2021-01-25 06:15 GMT
जमा बर्फ को हटाने का प्रयास किया जा रहा। (फोटो: Zubair Fayaz/Twitter)

राजा मुज़फ़्फ़र भट

बडगाम (जम्मू-कश्मीर)। जम्मू- कश्मीर के बड़गाम के कुटबल मार्ग गाँव की गर्भवती महिला तबस्सुम की कहानी काफी दिल दहला देने वाली है। भारी बर्फबारी के की वजह से सामुदायिक स्वास्थ्य सेवा वाहन और पब्लिक ट्रांसपोर्ट की न मिल पाने की वजह से, तबस्सुम के चार रिश्तेदार, उसे चारपाई के सहारे कंधों पर उठा कर लगभग 2 किलोमीटर बोनेन गाँव तक लेकर गए। जो श्रीनगर से दक्षिण की ओर 40 किलोमीटर की दूरी पर है। हालात ऐसे थे कि सड़कें दिखाई नहीं दे रही थीं और कुछ जगहों पर लगभग चार फीट तक बर्फ ही बर्फ जमी हुई थी।

बोनेन गाँव पहुँचते ही तबस्सुम को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। फिर उसे जेसीबी में बिठाकर लगभग 15 किलोमीटर दूर चदूरा शहर तक ले जाया गया। इसी बीच उप जिला अस्पताल में सूचना पहुंचते ही डॉक्टर मंज़ूर अहमद अपने कुछ सहयोगी और कुछ आशा कर्मचारियों के साथ एम्बुलेंस में बैठ कर बोनेन की तरफ रवाना हुए।

डॉक्टर मंज़ूर अहमद ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हम बोनेन गाँव से छह किलोमीटर पहले दाडोमपोरा गाँव के रास्ते में हमारी एम्बुलेंस बर्फ़ में फँस गई। तबस्सुम को ले जा रही जेसीबी को ढूंढने में एक घंटे का वक़्त लगा। फिर जेसीबी के दिखते ही हमने तबस्सुम को एम्बुलेंस में शिफ़्ट कर अस्पताल की तरफ़ रुख़ किया।

लेकिन उस गर्भवती महिला की मुसीबत ख़त्म नहीं हुई थी। ख़राब सड़क और बर्फ़बारी की वजह से वो अस्पताल से करीब 2 किलोमीटर दूर ट्रैफिक जाम में फँस गए। तबस्सुम ने एम्बुलेंस में ही बेटी को जन्म दिया। "जच्चा और बच्चा" दोनों स्वस्थ हैं, डॉक्टर ने गाँव कनेक्शन को बताया।

कईं दिनों से साफ़ न हो पाई बर्फ़ से ढकी सड़कों की बेहद ख़राब हालत की वजह से घर से लेकर अस्पताल तक के रास्ते में तबस्सुम ने बहुत तकलीफ़ उठाई।

भारी बर्फ़बारी के कारण बाकी हिस्सों से कट चुके कश्मीर घाटी के हज़ारों ग्रामीण इन्हीं हालात में रह रहे हैं। वक्त पर बर्फ़ हटाने का काम न होने की वजह से इनकी ये तकलीफ़ और बढ़ जाती है।

फोटो- MayorofS/Twitter

स्थानीय लोगों की मांग है कि सड़कों से बर्फ़ हटाने का काम मनरेगा (महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्पलॉयमेंट गारंटी एक्ट) के तहत लाया जाए। ताकि सड़कों से बर्फ़ हटाने का काम तेज़ी से हो और गाँव वालों को भी रोज़गार मिले।

बर्फ़ हटाने की मशीनों की संख्या बेहद कम है इसलिए इस काम में जेसीबी मशीनें लगाई गई हैं। "बडगाम ज़िले में हमारे पर हटाने की 12 मशीनें हैं जिनसे सैकड़ों किलोमीटर तक सड़कों से बर्फ़ हटाई जाती है," बडगाम के मैकेनिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के सहायक अधिशासी अभियंता इरफ़ान उल इस्लाम ने गाँव कनेक्शन को बताया।

उन्होंने बताया, "सारा काम हम ख़ुद ही करते हैं। बर्फ़ हटाने वाली मशीनों की कमी की वजह से सड़कों से बर्फ़ हटाने के काम में देरी हो जाती है।" श्रीनगर. बडगाम और गंदरबल ज़िलों के इस डिविज़न के लिए एक ही अधिशाी अभियंता है जिसके पास इन तीनों ज़िलों की ज़िम्मेदारी है।

हाल ही में 8 जनवरी को, जब चदूरा के रेपोरा गाँव में जेसीबी से बर्फ की सफाई का काम चल रहा था तो गाँव वालों ने काम रुकवा दिया और बुलडोज़र को वापस भेज दिया। वो चाहते थे कि बर्फ की सफाई का काम कुदाल और फावड़े से किया जाए।

स्थानीय लोग मांग कर रहे हैं कि मनरेगा के तहत बर्फ हटाये जाएं। Photo: By arrangement

आरटीआई कार्यकर्ता और रेपोरा गाँव के निवासी शाहनवाज़ सुलतान ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमने ठेकेदार को जेसीबी का काम रुकवाने को कहा। इसके बजाय 6-7 स्थानीय लोगों ने कुदाल और फावड़े से बस कुछ ही घंटों में सड़कों से बर्फ की सफाई कर दी।

बोनेन गाँव के निवासी मुश्ताक़ अहमद ने गाँव कनेक्शन को बताया, "काश यह काम मनरेगा के तहत आता।" इससे एक साथ दो मकसद पूरे हो सकते थे। पहला इससे स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलता और दूसरा भारी मशीनों के इस्तेमाल सड़कों को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता था, मुश्ताक ने मुश्ताक़ अहमद के अनुसार पिछली गर्मी में, बड़गाम ज़िले के बोनयार गाँव से कुतबल होकर गोग्गी पथरी रोड तक की 9 किलोमीटर की सड़क की मरम्मत और पुश्ता दीवारों के निर्माण में करोड़ों रुपये खर्च हुए थे। "यह सड़क पहली बार कोलतार से बनाई गई थी इसलिए इलाके के ग्रामीण खुश हुए थे। पर उनकी ख़ुशी ज़्यादा दिन नहीं टिकी," उन्होंने बताया।

पाँच महीने बाद ही सड़कें पहले जैसी हो गईं क्योंकि बर्फ सफाई के दौरान भारी बुलडोज़र के इस्तेमाल से कोलतार की सड़कें टूट गईं।

जेसेबी से हुई सफाई के कारण खराब हुई सड़क। Photo: By arrangement

क्या मनरेगा से संभव है समस्या का समाधान?

भारी बर्फबारी के कारण जिले की अधिकांश सड़कों से बर्फ को हटाने की ज़िम्मेदारी मेकैनिकल इंजीनियरिंग विभाग की है। लैंड एंड बिल्डिंग विभाग ऐसे ठेकेदारों को इसका ठेका देता है जो बर्फ़ हटाने के लिए जेसीबी या ट्रैक्टरों का इस्तेमाल करते हैं। इनके ऊपर गांव की उन सड़कों और लिंक रोड को साफ़ करने की ज़िम्मेदारी है जिसका निर्माण उन्होंने किया है।

साथ ही, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत बनाई गई सड़कों की देखभाल की सारी ज़िम्मेदारी, पाँच साल तक इन ठेकेदारों के ऊपर है। इसे दोष दायित्व अवधि (Defect Liability Period) कहा जाता है और बर्फ़ की हाटने की ज़िम्मेदारी भी इनकी है। ठेकेदार सड़कों से बर्फ़ हटाने के लिए जेसीबी का इस्तेमाल करते हैं। कभी-कभी ज़िले ज़रूरी सड़कों पर यह काम मेकैनिकल इंजीनियरिंग विभाग करता है।

घाटी में बर्फ हटाने की पर्याप्त मशीनें नहीं हैं। Photo: @MayorofS/Twitter

जम्मू-कश्मीर के गांवों में लोग अक्सर पूछते हैं कि प्रशासन सड़कों से बर्फ़ हटाने के काम के लिए मनरेगा का फंड क्यों नहीं इस्तेमाल करता?

पंचायती राज मंत्रालय में भारत सरकार के सचिव रह चुके रिटायर्ड आईएएस अधिकारी और पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने गाँव कनेक्शन से कहा, "मेरे विचार से बर्फ सफाई के लिए मनरेगा का प्रयोग करना अच्छा होगा, भले ही इसके लिए मौजूदा नियमों में संशोधन क्यों न करने पड़े।"

लेकिन कश्मीर ग्रामीण विकास के डायरेक्टर क़ाज़ी सरवा ने कहा इस तरह के काम की इजाज़त इस एक्ट में नहीं हैं। ग्रामीण विकास और पंचायती राज की सचिव शीतल नंदा ने भी यही बात दोहराई: "भारत सरकार मनरेगा के तहत बर्फ़ हटाने के काम की इजाज़त नहीं देती है।"

उत्तर कश्मीर के बांदीपोरा के सोशल एक्टीविस्ट मौहम्मद रमज़ान ख़ान ने कहा कि इसके लिए केवल केंद्र सरकार को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

रमज़ान ख़ान ने कहा, "मुझे पता चला है कि केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्रालय को मनरेगा के तहत बर्फ़ हटाने के काम से संबंधित कोई प्रस्ताव जम्मू-कश्मीर प्रशासन की तरफ़ से नहीं भेजा गया है।" उन्होने आगे कहा, "बांदीपोरा के गुलरेज़ सब-डिविज़न में कईं ऐसी जगह हैं जो छह महीने के लिए श्रीनगर से कट जाती हैं। मनरेगा के तहत बर्फ़ हटाने का काम आ जाने से इस क्षेत्र के आदिवासियों के लिए बहुत बड़ी मदद होगी। सर्दियों के दिनों में उन्हें रोज़गार मिल पाएगा।"

बर्फ़ हटाने में मनरेगा का इस्तेमाल

मनरेगा के तहत जम्मू-कश्मीर के हर जिले को औसतन 25 से 30 करोड़ रुपए सालाना मिलते हैं। इसके अलावा इस सालाना बजट में 40% सामग्री लागत जोड़ी गई है।

बड़गाम ज़िले में 13 लाख पंजीकृत मनरेगा जॉब कार्ड धारक हैं, जिन्हें इस योजना के तहत काम मिलता है उन्हें हर रोज़ 204 रुपये मेहनताने के तौर पर मिलते हैं। इस तरह से बड़गाम ज़िले का मनरेगा का सालाना बजट 26 करोड़ रुपए से अधिक हो जाता है। 40% सामग्री लागत जुड़ने से यह बजट लगभग 35 करोड़ रुपए।

सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार अगर सरकार बर्फ को हटाने का काम मनरेगा योजना के तहत कर देती है तो इसके लिए मीटिरियल के पैसे नहीं देने पड़ेंगे। यह पूरी तरह मज़दूरी पर आधारित होगा। बल्कि सरकार मीटिरियल पर ख़र्च होने वाली रकम का इस्तेमाल किसी ऐसे काम में कर सकती है जहां ज़्यादा मीटिरियल की ज़रूरत होती है।


Photo: @MayorofS/Twiter

किन्नौर में मनरेगा तहत हुआ बर्फ हटाने का काम

ऐसा नहीं है कि मनरेगा के तहत बर्फ़ हटाने का काम कभी किया ही नहीं गया है। साल 2011-12 में किन्नौर में बर्फ़ हटाने का काम इस एक्ट के तहत किया गया था।

सर्दी के महीनों में भारी बर्फ़बारी और बिना रोज़गार के तमाम मज़दूरों को ध्यान में रखते हुए किन्नौर के ज़िला प्रशासन ने राज्य सरकार से पूछा था कि क्या मनरेगा के तहत बर्फ़ हटाने का काम करवाया जा सकता है। इसके जवाब में राज्य के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अपनी सहमति जताते हुए कहा था कि सड़क निर्माण और मलबा हटाने का काम आवश्यक गतिविधियों के तहत आता है कि इसलिए सड़कों से बर्फ़ हटाने का काम इस योजना के तहत आ सकता है।

जम्मू-कश्मीर में बर्फ़बारी भारी मात्रा में होती है लेकिन फिर भी इस योजना के तहत एक बार भी बर्फ़ हटाने का काम नहीं करवाया गया है। तीन साल पहले जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री अब्दुल हक़ ख़ान ने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री के साथ कुछ बैठकें की थीं, लेकिन आज तक मनरेगा का तहत बर्फ़ हटाने के काम को मंज़ूरी नहीं मिली।

तबस्सुम की कहानी का अंत सुखद रहा। लेकिन जम्मू-कश्मीर के ग्रामीण और सुदूर इलाकों में हज़ारों लोग अनिश्चितताओं और अनेक कठिनाइयों के साथ ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। हाल ही में हुई बर्फ़बारी की दौरान सड़कें बंद हो जाने की वजह से मेडिकल इमरजेंसी में मरीज़ को अस्पताल ले जाने के लिए चारपाई, स्ट्रेचर, ट्रैक्टर या जेसीबी मशीन का इस्तेमाल किया गया है। जहां जेसीबी नहीं पहुंच पाती है वहां लोग घुटनों तक बर्फ़ में ख़तरनाक रास्तों पर चलकर मरीज़ को अस्पताल लेकर जाते हैं। क्या सरकार मनरेगा फ़ंड को बर्फ़ हटाने के काम में लगाकर कड़कड़ाती ठंड में कश्मीरियों को कोई राहत देगी?

(राजा मुज़फ़्फ़र भट, बडगाम में स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

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अनुवाद- इंदु सिंह

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