असानी चक्रवात का असर: लुप्तप्राय ओलिव रिडले के हजारों अंडे समुद्र की लहरों के साथ बह गए

असानी चक्रवात के असर की वजह से रुशिकुल्या में समुद्री लहरों ने घोंसलों की जगह को डुबो दिया। जिसकी वजह से कछुओं के लगभग 25 प्रतिशत अंडे खराब हो गए। बरहामपुर वन मंडल के सहायक वन संरक्षक अशोक बेहरा ने गाँव कनेक्शन को बताया।

Update: 2022-05-13 09:08 GMT

इस साल, वन्यजीव विभाग और संरक्षणवादी कछुओं को लेकर काफी खुश थे क्योंकि पूर्वी राज्य ओडिशा में इस साल मार्च के महीने में कछुओं के रिकार्ड घोंसलों को देखा गया था। All photos by: Rabindra Nath Sahu

11 मई को शाम 5:30 से 7:30 बजे के बीच, चक्रवात असानी ने गहरे दबाव की शक्ल में लैंडफॉल बनाया और मछलीपट्टनम और नरसापुर के बीच आंध्रप्रदेश के तट को पार कर गया। चक्रवात की वजह से, पड़ोसी राज्य ओडिशा में, ऊंची उठती लहरों ने गंजम जिले के रुशिकुल्या समुद्र तट पर लुप्तप्राय ओलिव रिडले कछुओं के घोंसलों को बहा दिया। यह दावा किया जा रहा है कि जन्म से पहले ही हजारों कछुओं की मौत हो गई होगी।

इस साल, वन्यजीव विभाग और संरक्षणवादी कछुओं को लेकर काफी खुश थे क्योंकि पूर्वी राज्य ओडिशा में इस साल मार्च के महीने में कछुओं के रिकार्ड घोंसलों को देखा गया था।

गाँव कनेक्शन ने बताया था कि कैसे 25 मार्च को ओडिशा के गहिरमाथा समुद्री पनाहगाह में छोटे द्वीपों के समुद्री तटों पर 2 लाख से अधिक ओलिव रिडले कछुओं ने काफी तादाद में घोंसले बनाए। एक अनुमान के मुताबिक आधा मिलियन कछुओं ने इन द्वीपों पर पहले ही अंडे दे दिए थे जबकि घोंसला के सालाना इवेंट में एक हफ्ता बाकी था।


ताजा जानकारी के अनुसार, लगभग 550,317 मादा कछुओं ने 26 मार्च से 3 अप्रैल तक रुशिकुल्या समुद्र तट पर अंडे दिए। इसी तरह 501,157 मादा कछुओं ने केंद्रपाड़ा जिले के गहिरमाथा समुद्री पनाहगाह में भी 25 मार्च से 3 अप्रैल के बीच अंडे दिए।

तीन दिन पहले 9 मई को गहिरमाथा में अंडे के छिलकों से अंडे के बच्चे निकलने लगे थे क्योंकि चक्रवात असानी ने केंद्रपाड़ा जिले को छोड़ कर आंध्र प्रदेश में पहुंच गया।

बेरहामपुर वन मंडल के सहायक वन संरक्षक अशोक बेहरा ने गाँव कनेक्शन को बताया, " आसानी चक्रवात के प्रभाव के कारण, समुद्री लहरों ने रुशिकुल्या में घोंसलो के स्थान को डुबो दिया और 10 मई से 11 मई के बीच कछुओं के लगभग 25 प्रतिशत अंडे खराब हो गए।"

कछुओं के अंडे देने के 45 से 50 दिनों के बाद घोंसलों से लाखों बच्चों के निकलने की उम्मीद थी। लेकिन अब समुद्र तच कछुओं के बच्चों का कब्रिस्तान बन गया है। समुद्र तट के कटाव और और बेमौसम बारिश लाखों अंडों के नुकसान की वजह बनी। वन अधिकारी ने बताया कि अब समुद्री तट लाखों अंडों के छिलके और अजन्मे बच्चों के शवों से भरा पड़ा है।


कछुओं की हिफाजत करने वालों का भी दिल टूट गया है। एक मशहूर कछुआ शोधकर्ता और रुशिकुल्या सागर कछुआ संरक्षण समिति के सचिव रवींद्र नाथ साहू ने बताया, " उंची लहरों ने कछुए के घोंसले पर कहर बरपाया है। समुद्री लहरों ने कछुओं के हजारों घोंसले बर्बाद कर दिए, जिसके नतीजे में रुशिकुल्या में पांच किलोमीटर लंबा समुद्र तट अब कछुओं के अंडों के छिलकों से अटा पड़ा है।"

साहू ने कहा,"दो महीने पहले रुशिकुल्या में 5 लाख से अधिक कछुओं ने अंडे दिए थे, हम काफी खुश थे। लेकिन उंची लहरों ने कछुओं के लिए समस्याएं बढ़ा दी। क्योंकि समुद्र के पानी में डूब जाने की वजह से घोंसलों मे बाकि बचे अंडों से बच्चों के निकलने की संभावना नहीं है। समुद्र तट पर कछुओं के बच्चों के जन्म से पहले लाखों खराब अंडों को देखना हमारे लिए एक अजीब बात है।"

उन्होंने आगे बताया," अब वक्त आ गया है कि सरकार राज्य में कछुओं की आबादी को बचाने के लिए समुद्र तट के कटाव के सही कारणों को जानने के लिए मुनासिब वैज्ञानिक अध्ययन करे।

समुद्री कछुओं के लिए सबसे ज्यादा शिकार अंडे, बच्चे और किशोर अवस्था में होता है। साहू ने आगे कहा कि घोंसलों में बैक्टीरियल हालात बनने से भी अंडे फूटने से पहले खराब हो सकते हैं।


कछुए के शोधकर्ता ने बताया, "उंची लहरों के अलावा, रुशिकुल्या में अंडों के खराब होने के मुख्य कारणों में से समुद्री तटों का कटाव भी है।

घोंसलों की जगहों के करीब नुकसान पहुंचाने वाली कृत्रिम रोशनी की मौजूदगी की वजह से प्रकाश प्रदूषण, कछुओं के बच्चों को भटकाता है क्योंकि समुद्री प्रजातियां दृश्य इशारों का इस्तेमाल करती हैं जो खुले समुद्र के उफक पर प्राकृतिक हालात में समुद्र तट सर्फ लाइन की तरफ मोड़ने के लिए मुनासिब चमक से संबंधित होती हैं।

गांजा में एक केमिकल प्लांट से रोशनी और रुशिकुल्या समुद्र तट के पास राष्ट्रीय राजमार्ग से गुजरने वाले वाहनों की रोशनी बच्चों को गुमराह कर सकती हैं, जिससे वे जमीन पर घूमते हुए कीमती ऊर्जा भंडार का उपयोग करते हैं और अक्सर उन्हें समुद्र से दूर ले जा सकती हैं। साहू ने कहा कि अध्ययनों से पता चला है कि दूर के प्रकाश स्रोत भी प्रकाश-संवेदी बच्चों के लिए समस्या पैदा करते हैं।

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