देश में गहराते जल संकट पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग
लखनऊ। लोकसभा में एआईएमआईएम पार्टी के एक सदस्य ने देश में गहराते जल संकट का मुद्दा और इस पर व्यापक चर्चा के लिये विशेष सत्र बुलाने या चालू सत्र में दो..चार दिन का समय तय किये जाने की मांग की। निचले सदन में कई सदस्यों ने इससे संबद्धता व्यक्त करते हुए देश के विभिन्न हिस्सों में पेयजल के संकट को दूर करने का संबद्ध मंत्रालय से अनुरोध किया। वहीं गाँव कनेक्शन ने 19 राज्यों में 18,000 ग्रामीणों के बीच किए गए सबसे बड़े ग्रामीण सर्वे में जो आंकड़े सामने आए वो पानी को लेकर ग्रामीणों के दर्द की कहानी कहते हैं।
महाराष्ट्र के औरंगाबाद से सांसद इम्तियाज जलील ने निचले सदन में शून्यकाल के दौरान जल संकट की समस्या पर चर्चा के लिए कम से आठ दिनों का विशेष सत्र बुलाने या इसी सत्र में इसके लिए दो-चार दिन तय किए जाने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि पेयजल की किल्लत के मद्देनजर उनके इलाके में पानी का कारोबार खड़ा किया जा रहा है। एक बड़ी पार्टी नेता ने पानी का ठेका लेने का प्रस्ताव तक दिया है।
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झारखंड के कोडरमा से सांसद अन्नपूर्णा देवी ने कहा कि उनका राज्य पेयजल के गंभीर संकट का सामना कर रहा है। झारखंड में भूजल के स्तर में काफी गिरावट हुई है। लोग पेयजल की किल्लत का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुओं एवं नलकूपों आदि से निकाले जाने वाले पानी में आर्सेनिक की मात्रा भी बहुत ज्यादा है। इसके चलते लोगों को गंभीर बीमारियां हो रही हैं।
इसके अलावा, सदस्यों ने नदी जल प्रदूषण और नदियों के अतक्रिमण का मुद्दा भी उठाया गया। कैराना से भाजपा सांसद प्रदीप कुमार चौधरी ने अपने क्षेत्र में कृष्णा नदी के दूषित जल से कई गांवों के प्रभावित होने की बात कही। उन्होंने कहा कि आसपास की फैक्टरियों से नदी में रसायनयुक्त पानी गिरता है, जिसके चलते लोग कैंसर और त्वचा रोग जैसी बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं।
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उत्तर-पूर्व दिल्ली से सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि ओखला इलाके में यमुना के जल प्रवाह वाले क्षेत्र में करीब 3,000 मकान बन गए हैं। लेकिन वहां कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है।
वर्ष 2018 में आई नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत इतिहास में जल संकट से सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। जबकि हर साल दो लाख लोग साफ पीने का पानी न मिलने से अपनी जान गंवा देते हैं। "जहां तक लोगों के घरों तक पानी नहीं पहुंचने का सवाल है, तो भारत सरकार की बहुत ही महात्वकांक्षी योजना है 'नेशनल रुरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोग्राम (राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना)', जिसका लक्ष्य था कि 2020 तक देश के 70 प्रतिशत ग्रामीण घरों तक पाइप वाटर सप्लाई पहुंचाना। लेकिन 2017 तक मात्र 17 प्रतिशत घरों में ही पाइप्ड ड्रिंकिग वाटर सप्लाई (नल से पेयजल की सप्लाई) हो पाई," वाटर ऐड इंडिया में प्रोग्राम एंड पॉलिसी के निदेशक अविनाश कुमार बताते हैं।
केन्द्र सरकार के नेशनल रूरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोग्राम के तहत हर ग्रामीण को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराया जाना है। इस योजना में साल 2014-15 में जहां 15,000 करोड़ रुपये जारी होते थे, वहीं आज 700 करोड़ रुपये ही जारी हो रहे हैं। नीति आयोग की वर्ष 2018 में आई रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2020 तक दिल्ली और बंगलुरू जैसे भारत के 21 बड़े शहरों से भूजल गायब हो जाएगा। इससे करीब 10 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। अगर पेयजल की मांग ऐसी ही रही तो वर्ष 2030 तक स्थिति और विकराल हो जाएगी। वर्ष 2050 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में छह प्रतिशत तक की कमी आएगी। (इनपुट भाषा)