जनहित याचिका को शुरू करने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व सीजेआई पीएन भगवती का निधन

Update: 2017-06-16 10:41 GMT
पीएन भगवती

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पीएन भगवती का गुरुवार को 95 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने 12 जुलाई 1985 से लेकर दिसंबर 1986 तक सर्वोच्च न्यायालय में बतौर जज के तौर पर अपनी सेवा दी थी। 2007 में उन्हें भारत सरकार की ओर से पद्म विभूषण अवॉर्ड से नवाजा गया था।

भगवती पीआईएल यानी जनहित याचिका को पेश कर काफी लंबे समय तक सुर्खियों में रहे थे। 1986 में जस्टिस भगवती ने ही व्यवस्था दी थी कि मौलिक अधिकारों के मामले में कोई भी व्यक्ति सीधे न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है। उन्होंने 1978 का मेनका गांधी पासपोर्ट कुर्की मामले में जीने के अधिकार की व्याख्या की थी। जस्टिस भगवती ने व्यवस्था दी की व्यक्ति का आवगमन नहीं रोका जा सकता। हर किसी को पासपोर्ट रखने का अधिकार है। कैदियों को मौलिक अधिकार दिए जाने की वकाल भी जस्टिस भगवती ने की थी।

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भगवती के निधन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दुख जताया है। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्विटर हैंडिल के जरिए भगवती के लिए संवेदना व्यक्त की है। उन्होंने अपने ट्विटर पर भगवती के लिए दो ट्वीट पोस्ट किए। पीएम ने ट्वीट कर पी एन भगवती को भारतीय कानून व्यवस्था का पक्क समर्थक बताया।

बता दें कि भगवती पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन के दौरान आपातकाल में भगवती बंदी प्रत्यक्षीकरण केस से जुड़े पीठ का हिस्सा भी रहे थे। इस दौरान वे अपने विवादित फैसले के लिए चर्चाओं में लंबे समय तक रहे थे। भगवती नेआदेश दिया था कि इमरजेंसी में गैरकानूनी गिरफ्तारी के खिलाफ मिले संवैधानिक अधिकार निलंबित रहता है। उन्होंने अपने इस फैसले के लिए 30 साल बाद माफी मांगी थी। पीएन भगवती का अंतिम संस्कार शनिवार को किया जाएगा।आपको बता दें कि जानेमाने अर्थशास्त्री जगदीश भगवती और न्यूरोसर्जन एन एन भगवती पूर्व चीफ जस्टिस भगवती के भाई हैं।

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