महाराष्ट्र के सियासी अखाड़े में चाचा-भतीजे का दंगल

महाराष्ट्र की सियासत में कभी चाचा ने भतीजे को धक्का दिया तो कभी भतीजे ने चाचा को पटखनी दी.. महाराष्ट्र की गहमागहमी पर मनीष मिश्रा की टिप्पणी

Update: 2019-11-23 11:47 GMT

 शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की खिचड़ी पकती ही रही, लेकिन सत्ता की मलाई कोई और चट कर गया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) नेता अजित पवार के समर्थन से भाजपा ने महाराष्ट्र में सरकार बना ली है। देवेन्द्र फडणवीस मुख्यमंत्री और अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

तेइस नवंबर, 2019 की सुबह जब आप अखबार में महाराष्ट्र में चल रहे राजनीतिक उठापटक के बीच उद्धव ठाकरे के सीएम बनने की खबरें पढ़ रहे थे कि उसी बीच फडणवीस और अजित पवार के शपथ लेने की खबरें सोशल मीडिया पर तैरने लगीं। इस अप्रत्याशित घटनाक्रम का किसी को अंदाजा नहीं था। यहां भतीजे ने अपने राजनीतिक पैंतरे से चाचा को सकते में डाल दिया।

महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए हो रही मीटिंग में लगातार शामिल होते रहे एनसीपी नेता अजित पवार। 

महाराष्ट्र की राजनीति में चाचा भतीजे की जोड़ी हमेशा से चर्चा में रही है, कभी चाचा ने भतीजे के पर कतरते हुए सकते में डाल दिया, तो कभी भतीजे ने चाचा को।

उन्नीस जून, 1966 में शिवसेना की स्थापना करने वाले दिवंगत बाला साहेब ठाकरे की छवि एक कट्टर हिन्दूवादी राजनेता की रही। उनकी इस विचारधारा पर शिवसेना लगातार चलती रही। बाला साहेब की राजनीतिक विरासत को संभालने वाले उनके बेटे उद्धव ठाकरे होंगे या भतीजे राज ठाकरे, इस पर हमेशा से सवाल बना रहता था। उद्धव ठाकरे शाँत किस्म के नेता थे, जबकि भतीजे राज ठाकरे में लोग फायर ब्रांड नेता बाला साहेब ठाकरे का अक्स देखते थे। राज ठाकरे हमेशा से ही बाला साहेब ठाकरे के पद चिन्हों पर चला करते थे। माना जाता था कि बाल ठाकरे, राज ठाकरे को ही पार्टी की कमान देंगे, लेकिन वर्ष 2004 में जब सत्ता हस्तातंरण की बारी आई तो बाल ठाकरे ने पुत्र मोह में राज ठाकरे को दरकिनार कर उद्धव ठाकरे को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। इस बार चाचा ने बेटे को आगे कर भतीजे को किनारे कर दिया।

इसी के बाद भतीजे राज ठाकरे और चाचा बाला साहेब ठाकरे के बीच दूरियां बढ़ती गईं। राज ठाकरे ने एक साल बाद ही वर्ष 2006 में शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) नाम से पार्टी बनाकर अलग राजनीति शुरू कर दी।

वहीं, महाराष्ट्र राजनीति में 23 नवंबर, 2019 को एक भतीजे ने फिर से चाचा को गच्चा दे दिया। जिस चाचा शरद पवार से भतीजे अजित पवार ने राजनीति का ककहरा सीखा, उसी चाचा को, भतीजे के धोबी पछाड़ दांव का अंदाजा तक नहीं लग पाया।

एनसीपी प्रमुख शरद पवार, कांग्रेस और शिवसेना के साथ मिल कर सियासत की गोटियां सेट करने में मशगूल थे, उसी वक्त भतीजे ने रातोंरात बड़ा दांव चलते हुए भाजपा को समर्थन देकर सुबह-सुबह उप मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली।

रात तक किसी को भनक भी नहीं थी कि शरद पवार के भतीजे अजित पवार अचानक बीजेपी को समर्थन देकर उपमुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले सकते हैं। 

विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 105, शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं।

शरद पंवार को अजित पवार का राजनीतिक गुरु भी माना जााता है, अजित राजनीति में शरद पवार की बदौलत ही आए। बारामाती से लगातार सात बार विधायक चुने गए अजित पवार एनसीपी में विधायक दल के नेता भी हैं।

अपने चाचा शरद पवार के लिए वर्ष 1991 में लोकसभा सीट खाली कर देने वाले अजित पवार आज अपने चाचा द्वारा बनाई गई पार्टी को तोड़ कर सत्ता के सिंहासन तक पहुंच गए। अपने इस सियासी दांव के बारे में अजित ने बस इतना कहा कि अभी कुछ नहीं बोलूंगा, वक्त आने पर बोलूंगा। लेकिन अजित के इस फैसले से महाराष्ट्र की राजनीति ने यू-टर्न ले लिया है।

अजित के इस फैसले से आहत चाचा शरद पवार ने उनका निजी फैसला बताया, तो चचेरी बहन सुप्रिया सुले ने व्हाट्सऐप स्टेटस डाला कि 'पार्टी और परिवार दोनों टूट गए।' 

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