इस राज्य की महिलाओं के लिए एटीएम हैं बकरियां
लोग बकरियों को एटीएम की तरह इस्तेमाल करते हैं। जब पैसे की जरुरत हुई बाजार जाकर एक मेमने या बकरी को बेच दिया। अगर 100 रुपए की जरुरत है तो मुर्गी बेच दिया और 1000-1500 रुपए चाहिए तो बकरी का बच्चा बेच देते हैं।
रामगढ़ (झारखंड)। आदिवासी बाहुल्य झारखंड को जंगलों की जमीन भी कहा जा सकता है। पहाड़ियों के नीचे यहां कोयला, अभ्रक, लोहा जैसी खनिज संपदा है तो ऊपर कुदरत ने खूब हरियाली दी है। झारखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ महिलाएं हैं। और इन महिलाओं के लिए बकरियां और मुर्गियां एक तरह से एटीएम हैं, यानि ऐनी टाइम मनी।
झारखंड में महिलाएं खेतों से लेकर घर की रसोई तक सारा काम संभालती हैं। छोटे-छोटे खेतों में महिलाएं अपनी मेहनत से फसलें उगाती हैं, जंगलों से लकड़ियां लाती हैं। भेड़, बकरी और मुर्गियों जैसे छोटे पशु इन महिलाओं की आर्थिक लड़ाई के साथी हैं। झारखंड के लगभग हर ग्रामीण घर में मुर्गियां मिलेंगी तो अब बकरियां इन घरों में खूब नजर आती हैं। स्थानीय लोग बकरियों को एटीएम की तरह इस्तेमाल करते हैं। जब पैसे की जरुरत हुई बाजार जाकर एक मेमने या बकरी को बेच दिया। अगर 100 रुपए की जरुरत है तो मुर्गी बेच दिया और 1000-1500 रुपए चाहिए तो बकरी का बच्चा बेच देते हैं।
प्रदेश की राजधानी रांची से करीब 70 किलोमीटर दूर रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड के हुप्पू गांव में लगभग हर घर में बकरियां और मुर्गियां पली हुई हैं। कुछ जागरुक महिलाओं ने बतख और भेड़ भी रखी हैं। खेती और पशुपालन यहां रोजगार का जरिया है। इसी गांव में रहने वाली सुनीता देवी के पास पांच बकरियां हैं और वो जल्द 10 और बकरियां लेने वाली हैं। इस गांव पहुंची गांव कनेक्शन की टीम को सुनीता देवी बताती हैं, "हमारे यहां सभी लोग बकरी पालते हैं। क्योंकि इन्हें रखने में कोई झंझट नहीं होता है और ये तुरंत बिक भी जाती हैं।' सुनीता की तरह कलावती के पास एक दर्जन बकरियां हैं उन्होंने बतख और देसी मुर्गियां भी पाली हुई हैं। सुनीता बताती हैं, "बकरियां पालने के अलावा वो सब्जियों की खेती करती हैं। इनसे (बकरियों) और खेती से ठीकठाक कमाई हो जाती है।' सुनीता जैसी लाखों महिलाएं झारखंड में छोटे पशुओं के जरिए अपनी जीविका चला रही हैं।
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पशुपालन और खेती ग्रामीणों और आदिवासियों का पारंपरिक काम है, लेकिन सरकार के साथ ने इसे रफ्तार दी है। प्रदेश में ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी को आर्थिक रुप से बेहतर बनाने के लिए चलाए जा रहे झारखंड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशलन सोसायटी ने स्वयं सहायता समूहों से लाखों महिलाओं को जोड़कर उन्हें न सिर्फ बचत के गुर सिखाएं हैं बल्कि कमाई के कई अवसर भी दिलाएं हैं। समूहों को यहां सखी मंडल भी कहा जाता है।
झारखंड में बकरी पालन का व्यवसाय बड़े पैमाने पर होता है। यहां की जलवायु में ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरियां उपयुक्त हैं। राज्य में 72 फीसदी लोग बकरी पालन करते हैं। सखी मंडल से 16 लाख से ज्यादा ग्रामीण महिलाएं जुड़ी हुई हैं। जिसमें 3,495 महिलाएं पशु सखियाँ बनकर गांव-गांव जाकर बकरियों की देखरेख कर रही हैं। इन पशु सखियों की मदद से यहां न सिर्फ बकरियों की मृत्यु दर रुकी है बल्कि बकरी पालकों को बकरी की अच्छी नस्ल और इनके वजन के हिसाब से अच्छा भाव भी मिल रहा है। झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के सहयोग से झारखंड में 58,990 किसान बकरी पालन का काम कर रहे हैं।
रामगढ़ में मक्के और शकरकंद की खूब खेती होती है। खेत छोटे छोटे हैं और सिंचाई के लिए मानसून के अलावा कुएं और तालाब सहारा है। बावजूद इसके हजारों किसान अब नई-नई तकनीकों से खेती करने लगे हैं। जेएसएलपीएस के सखी मंडलों के जरिए इन महिलाओं को न सिर्फ बैंकों से आसानी से बकरी आदि पालन के लिए लोन मिल जाती है बल्कि खेती की उन्नत तकनीकी, ट्रेनिंग और बीज आदि भी मुहैया कराए जाते हैं। सुनीता देवी बताती हैं, "पहले हम लोग सिर्फ मिर्च और मक्का की खेती के साथ धान बोते थे लेकिन ट्रेनिंग के बाद अब सब्जियां भी उगाने लगे हैं। जिससे अच्छी कमाई जो हाती है।"
महिलाओं में जागरुकता बढ़ने का सीधा असर इनके घरों में नजर आती है। झारखंड के अशांत जिले खूंटी के रनिया ब्लॉक के सुदूर आदिवासी गांव में कई घरों में आधुनिक तरीकों से बकरी पालन हो रहा है। यहां के कई घरों में स्टॉल बने हैं। इस विधि में बांस और लकड़ी की मदद से ऐसे मचान बनाए गए हैं कि बकरियों का मलमूत्र नीचे जमीन पर गिर जाती है। बकरियां साफ सुथरी जगह रहती है, जिसका असर उनकी सेहत पर पड़ता हैं, इस विधि से पशु पालने से न सिर्फ वो कम बीमार होती हैं बल्कि उनकी ग्रोथ भी जल्दी होती है।
रनिया ब्लॉक के सुदूर घाटी क्षेत्र के गाँव गिरजा टोली (बघिया) जहां का रास्ता काफी दुर्गम है। लेकिन यहां की महिलाएं खुश नजर आईं। इस गाँव में रहने वाली गुड़िया देवी (48 वर्ष) बताती हैं, "हमारा गाँव पहाड़ी क्षेत्र का भले ही है पर हमें गाँव में कोई तकलीफ नहीं है। खुद कमाते हैं खुद खाते हैं यहां की हर चीज शुद्ध होती है। गाँव में सिर्फ सड़क नहीं है बाकी सबकुछ है। खेती से लेकर बकरी पालन तक का काम हम लोग करते हैं, जरूरत के हिसाब से आमदनी हो जाती है।" गुड़िया देवी की तरह यहां रहने वाली सभी महिलाएं खेती से लेकर बकरी पालन तक का सारा काम खुद सम्भालती हैं जो इनके आजीविका का एक बेहतर जरिया बना हुआ है।