ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा की पहली सिपाही आशा कार्यकत्री कोरोना से लड़ने के लिए कितना तैयार है?

कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों का इलाज करते हुए इटली में 13 डॉक्टरों की मौत हो गई है। यहाँ अब तक 2629 स्वास्थ्यकर्मी इस संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। ऐसे में भारत ने स्वास्थ्य विभाग की पहली सिपाही आशा कार्यकर्ताओं के लिए जो घर-घर जाकर आम जनता को कोरोना से लड़ने के लिए जागरूक कर रही हैं। इनकी सुरक्षा के क्या इंतजाम हैं? पढ़िए ये खबर ...

Update: 2020-03-23 05:29 GMT

"घर से निकलने में डर लगता है पर क्या करूं? काम है तो जाना ही पड़ेगा।"

ये शब्द उस आशा कार्यकत्री राधिका (40 वर्ष) के हैं जो रोजाना की तरह अपनी धुन में बिना मास्क और सेनिटाइजर के घर-घर जाकर ग्रामीणों को साफ़-सफाई और घर में रहने की नसीहत दे रही है।

राधिका (40 वर्ष) ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा की वो महत्वपूर्ण इकाई हैं जिनकी बदौलत प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर इस समय मरीज पहुंच रहे हैं।

कोरोना वायरस की दहशत राधिका के चेहरे पर दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। जब पूरा देश घरों में बंद है, लोग सुरक्षा के तमाम एहतियात बरत रहे हैं। ऐसे हालातों में राधिका की तरह दस लाख से ज्यादा आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर ऐसे मरीजों की पहचान करने में जुटी हैं जिन्हें थोड़ी बहुत खांसी, जुखाम, बुखार और गले में दर्द है। पता लगते ही ये ऐसे मरीजों को तुरंत अस्पताल पहुंचाती हैं, जिससे इनमें बीमारी बढ़ न सके। 

आशा कार्यकत्री राधिका ग्रामीणों को कोरोना वायरस से जागरूक करने के लिए जाती हुई. 

"अब तो घर-घर जाने में मुझे भी डर लगने लगा है। अभी मास्क और सेनिटाइजर बाजार में मिल नहीं रहा है। कहां से खरीदें? अस्पताल से कुछ नहीं दिया गया केवल अस्पताल वाले डॉ ही पहनते हैं," क्रीम कलर के मैरून बार्डर की साड़ी पहने उस दिन राधिका देवी अपने पति की साइकिल पर बैठकर दोपहर के करीब डेढ़ बजे अपने गाँव से दो किलोमीटर दूर नरसिंह खेड़ा गाँव पहुंच गईं थीं।

राधिका उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर माल ब्लॉक के नरसिंह खेड़ा गाँव की आशा बहु हैं।

कोरोना वायरस से दुनियाभर में अबतक 14,000 से ज्यादा मौते हो चुकी हैं। तीन लाख तीस हजार से ज्यादा लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने इसे महामारी घोषित कर दिया है।

इटली में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों का इलाज करते हुए 13 डाक्टरों की मौत हो गयी है जबकि 2629 स्वास्थ्यकर्मी इससे संक्रमित हो गए हैं। ये स्वास्थ्यकर्मी इस समय ज़िंदगी और मौत की लड़ाई से जूझ रहे हैं। यहाँ 50 से अधिक डॉक्टरों को कोरोना का संक्रमण हुआ है। 

मरीजों की बढ़ती संख्या और कुछ डाक्टरों की मौत के बावजूद देश की स्वास्थ्य विभाग की आख़िरी सिपाही आशा कार्यकर्ताओं के लिए सुरक्षा का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किया गया है।

यहाँ बात सिर्फ राधिका की सुरक्षा की नहीं है बल्कि देश में तैनात दस लाख से ज्यादा आशा कार्यकर्ताओं की है, जो ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की महत्वपूर्ण रीढ़ हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन सितंबर 2018 के आंकड़ों के अनुसार आशा कर्मियों की कुल संख्या लगभग 10 लाख 31 हजार 751 है।

आशा कार्यकत्रियों को कोरोना वायरस के लिए किया गया जागरूक.

गाँव कनेक्शन ने उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और झारखंड में तैनात कुछ आशा कार्यकर्ताओं और उनसे सम्बन्धित अधिकारियों से बात करके यह जानने की कोशिश की कि उनके लिए स्वास्थ्य विभाग की तरफ से किस तरह के सुरक्षा इंतजाम किये गये हैं? तीन राज्यों में अबतक किसी भी राज्य में आशा बहुओं को मास्क और सैनेटाईजर नहीं दिए गये हैं और न ही इनकी छुट्टी हुई है। 

राधिका जिस ब्लॉक की हैं वहां के ब्लॉक कम्युनिटी प्रोसेस मैनेजर विवेक नवल मिश्रा ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, "इस समय मास्क और सैनेटाईजर बाजार में नहीं मिल रहे हैं, हमने आशा बहुओं से कहा है कि वो दुपट्टे से मुंह ढककर जाएँ। इस ब्लॉक में 170 आशा बहुएं हैं। इस समय इनकी मदद से ही अस्पताल तक मरीज आ रहे हैं।" ये उन मरीजों की बात कर रहे हैं जो इस समय थोड़ा बहुत बीमार हैं पर अस्पताल नहीं आना चाहते, ऐसे मरीजों को ये आशा कार्यकर्ता सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक पहुँचाने में मदद कर रही हैं।

रोजाना कोरोना वायरस के केसेज बढ़ रहे हैं ऐसे में इन आशा कार्यकत्रियों के लिए स्वास्थ्य विभाग कितना सजग है इस सवाल के जबाब में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, माल ब्लॉक के अधीक्षक डॉ के डी मिश्रा ने कहा, "कोरोना का डर लोगों में ज्यादा है जबकि गाँव स्तर पर अभी सब कुछ सामान्य है। मास्क हर व्यक्ति को पहनना बिलकुल जरूरी नहीं है। कम मात्रा में होने की वजह से अभी अस्पताल का स्टाफ ही लगाये हुए है। आशा बहुओं को देने के बारे में प्रयास किया जा रहा है।"

आशा बहुएं घर-घर जाकर ग्रामीणों को कर रही जागरूक.

उत्तर प्रदेश में अभी 16-31 मार्च तक 'संचारी रोग नियंत्रण अभियान चल रहा है जिसमें एक आशा रोजाना 10-15 घरों में जाकर ग्रामीणों को साफ़-सफाई और कोरोना के बारे में जानकारी दे रही हैं।

भारत में कोविड-19 के 360 से ज़्यादा मामले पाये गए हैं जिनमें से सात लोगों की मौत हुई और 23 मरीज़ पूरी तरह ठीक हुए हैं। लखनऊ में शुक्रवार को कोरोना वायरस से पीड़ित चार नये मरीज मिले। लखनऊ के केजीएमयू अस्पताल में कोरोना के 9 मरीजों का इलाज चल रहा है। जिसमें आठ मरीज लखनऊ के हैं।

भारत में 22 राज्यों के 75 ज़िलों में कोरोना वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई है जिसमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, दिल्ली-एनसीआर और उत्तर प्रदेश सबसे अधिक प्रभावित पाए गये हैं।

ग्रामीण महिलाओं और बच्चों की सेहत की देखभाल के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन ने वर्ष 2005 में आशा कार्यकर्ता (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) का पद सृजित किया था। ग्रामीण स्तर इन आशाओं की यह जिम्मेदारी है कि ये गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की देखरेख करें। बुनियादी प्राथमिक चिकित्सा सुविधाओं को भी घर-घर पहुंचाना इनकी जिम्मेदारी है। आमतौर पर एक जिले में 1,000 से 2,500 आशा कार्यकर्ता होती हैं।


झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला ब्लॉक के जोड़ीसा गाँव की रहने वाली भाषा शर्मा (40 वर्ष) शैय्या साथी (आशा) हैं जिनके अधीन 18 शैय्या दीदी (आशा कार्यकर्ता) आती हैं। ये गाँव कनेक्शन को फोन पर बताती हैं, "कोई भी मीटिंग 14 अप्रैल तक नहीं कर सकते हैं लेकिन शैय्या दीदी को तो घर-घर जाकर अपना काम करना ही है। नवजात बच्चों की देखरेख के लिए हर शैय्या दीदी घर-घर विजिट कर रही है।"

क्या आपको मास्क और सेनिटाइजर मिला है इस पर भाषा कहती हैं, "नहीं, हमें ऐसा कुछ नहीं दिया गया पर हमने अपनी शैय्या दीदी को खुद के पैसे से खरीदने को बोला है, अगर बाजार में न मिले तो वह दुपट्टा बांधकर ही गाँव में जाएँ।"

आपको लगता नहीं ऐसे माहौल में आपको भी छुट्टी दी जाए इस पर भाषा ने जबाब दिया, "बिलकुल नहीं, सेवा भाव से ही इस काम में जुड़े थे। अगर हम नहीं जायेंगे तो गाँव मे इनको बताने कौन आएगा? बस अगर सुरक्षा के अच्छे इंतजाम हो जाते तो अच्छा रहता।"

यह कोई पहला मौका नहीं है जब आशा कार्यकर्ताओं की सुरक्षा को स्वास्थ्य विभाग गम्भीरता से नहीं ले रहा है। राज्य सरकारें हमेशा आशा कार्यकर्ताओं की सुरक्षा में असफल रही हैं। चाहें उनके मानदेय की बात हो या फिर काम करने के घंटों की, जिसे हमेशा अनदेखा किया गया है। यहाँ तक की इन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा भी प्राप्त नहीं है।

आशाएं ग्रामीणों को कोरोना वायरस के लिए जागरूक करें इसके लिए उन्हें प्रशिक्षण तो दिया गया पर उनकी सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं.

"आशाओं को बताया गया है कि वो एक मीटर की दूरी पर रहकर ही लोगों से बात करें। हमारे पास ऐसा कोई ऊपर से आदेश नहीं आया है कि इन्हें मास्क और सैनेटाईजर दिया जाये। पर हमने इन्हें सुझाव दिया है कि अपने पैसों से खरीद लें, इसे लगाकर ही फील्ड जाएँ।" पूर्वी सिंहभूम जिला कार्यक्रम समन्यवक हक्किम प्रधान ने गाँव कनेक्शन को बताया।

इस जिले में 2129 शैय्या दीदी (आशा कार्यकत्री) हैं। जो बिना किसी इंतजाम के हमेशा की तरह अपने काम में लगी हुई हैं।

चीन के वुहान शहर से शुरू हुए कोरोना वायरस (Coronavirus disease - COVID-19) की चपेट में आज दुनिया के 145 से ज्यादा देश आ चुके हैं।

कोराना वायरस से बचने के लिए ग्रामीण क्या करें? ये जानकारी घर-घर पहुँचाने में स्वास्थ्य विभाग के पास आशा कार्यकर्ता ही एक मात्र माध्यम है।

एक हजार आबादी पर एक आशा कार्यकर्ता होती है। ज्यादा आबादी वाले गाँवों में इनकी संख्या बढ़ जाती है। कुछ राज्यों में आशा कार्यकत्रियों को एक निश्चित मानदेय मिलता है जबकि कई जगह उनके काम के आधार पर उन्हें प्रोत्साहन राशि दी जाती है। इन्हें इनकी जिम्मेदारियों के अनुसार बहुत ज्यादा मानदेय नहीं मिलता है।


पंचायत स्तर पर आशा कार्यकर्ता की मानीटरिंग एनम (सहायक नर्स) करती हैं। भोपाल के जवाहरलाल देशराज हास्पिटल में कार्यरत एनम राम दत्ती नर्रे फोन पर बताती हैं, "हम अपनी सुरक्षा स्वत: कर रहे हैं। विभाग से हमें या आशाओं को कोई भी सुविधा नहीं दी गयी है।"

भोपाल के ब्लॉक कम्युनिटी मोब्लाईजर रेवा शंकर अहिरवार की देखरेख में 250 आशाएं और 20 आशा फैसलिटेटर आती हैं। उन्होंने बताया, "आशाओं की सुरक्षा का कोई पैरामीटर ही नहीं है वो अपनी सुरक्षा स्वयं करें। हमारे पास स्टोर में अब मास्क स्टाक में नहीं बचे हैं। ये दुपट्टा बांधकर जाती हैं और साथ में साबुन लेकर भी जाती हैं।"

ये वही आशा कार्यकर्ता हैं जिनके माध्यम से स्वास्थ्य विभाग की सभी महत्वाकांक्षी योजनाएं ग्रामीण भारत में हर परिवार तक पहुंचती हैं। उन्हीं आशा बहुओं की सुरक्षा को लेकर स्वास्थ्य विभाग गम्भीर नहीं है।

ग्रामीण बच्चे मास्क लगाकर बरत रहे एहतियात.

कोरोना वायरस के इस माहौल में इन आशाओं को एक जिम्मेदारी और दी गयी है वो है गाँव में किसी दूसरे राज्य के व्यक्ति के आने पर इन्हें तुरंत स्वास्थ्य विभाग को सूचित करना है।

"हमारा जिला बिहार के गया जिले से सटा हुआ है। हमने सभी शैय्या दीदी (आशा कार्यकर्ता) को बोला है अगर इस समय कोई भी व्यक्ति किसी के यहाँ भी आने की खबर है तो उसे जांच के लिए तुरंत अस्पताल लाएं।" झारखंड के चतरा जिले के जिला कार्यक्रम समन्यवक उदय शरण प्रसाद ने बताया।

इन फ्रंट लाइन वर्कर को ऐसे सम्वेदनशील माहौल में क्या कुछ सुविधाएं दी गयी हैं इसके जबाब में उदय शरण ने कहा, "राज्य सरकार से हमें ऐसा कोई आदेश नहीं मिला है। पर हमने इन कार्यकर्ताओं को एक वीडियो शेयर किया है जिसमें रुमाल से मास्क बनाने का तरीका बताया गया है। जगह-जगह होडिंग्स और फ्लैग लगवाए हैं। सब जगह पोस्टर बटवाए हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग जागरूक हों।"

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