रमजान विशेष : मदरसे में कुरान की आयतें और रामायण की चौपाइयां साथ-साथ

यूपी के बाराबंकी में एक युवा काजी ने मदरसा खोलकर पेश की सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल

Update: 2018-05-17 11:53 GMT
बाराबंकी ( यूपी) । जहां मजहब के नाम पर हिन्दू और मुस्लिम समुदायों को बांटने की कोशिश रहती हैं, वहीं सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल एक मदरसे में कुरान की आयतों के साथ-साथ रामायण की चौपाइयां गूंजती हैं। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के बेलवा कस्बे में स्थित एक मदरसे में हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के बच्चों को तालीम साथ में दी जाती है, ताकि वह एक दूसरे के धर्मों को समझ सकें। यहां धार्मिक ग्रंथों के साथ-साथ अंग्रेजी पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
मदरसे में पढ़ने वाली छात्रा सफिया बानो गांव कनेक्शन को बताया, "हम यहां पर गणित, उर्दू, हिंदी,अंग्रेजी और बाकी विषय पढ़ते हैं। कभी भी हमको पढ़ाई में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होती।"वहीं छात्रा शांति देवी ने कहा, "हमें यहां हर विषय पढ़ने में कभी कोई दिक्कत नहीं होती।"
इस मदरसे को माडर्न स्वरूप देने वाले युवा काजी फुरकान अख्तर (32 वर्ष) ने नई दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और वर्षों की नौकरी के बाद जब एक बार गाँव आए तो वहीं के हो गए। गाँव के बच्चों के लिए मदरसा खोलकर बेहतर तालीम देने की सोची।
"अक्सर लोग सोचते हैं कि मदरसे में सिर्फ मुस्लिम समुदाय के बच्चे ही पढ़ते हैं, लेकिन ये गलत है। मदरसा एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब स्कूल ही होता है। इसे किसी धर्म से जोड़ना गलत है। हम अपने मदरसे में मॉडर्न एजुकेशन देते हैं। कुरान और रामायण दोनों का ज्ञान बच्चों को दिया जाता है। बाकी जो विषय अन्य स्कूलों में पढ़ाए जाते हैं, वो भी पढ़ाते हैं।- काजी फुरकान अख्तर 
"अक्सर लोग सोचते हैं कि मदरसे में सिर्फ मुस्लिम समुदाय के बच्चे ही पढ़ते हैं, लेकिन ये गलत है। मदरसा एक अरबी शब्द है जिसका मतलब स्कूल ही होता है। इसे किसी धर्म से जोड़ना गलत है। हम अपने मदरसे में मॉडर्न एजुकेशन देते हैं," काजी फुरकान कहते हैं,"कुरान और रामायण दोनों का ज्ञान बच्चों को दिया जाता है। बाकी जो विषय अन्य स्कूलों में पढ़ाए जाते हैं, वो भी पढ़ाते हैं।"
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वर्ष 2015 में शुरू हुए मदरसे में कुल 456 हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के बच्चे पढ़ाई करते हैं। यहां दोनों समुदायों के अध्यापक बच्चों को तालीम देने के लिए रखे गए हैं। "हमारे यहां बच्चों से किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है। हम सभी बच्चों को एक समान ही मानते हैं," मदरसे में पढ़ाने वाली रीना वर्मा ने कहा।
एक बार अपने गाँव आए फुरकान अख्तर ने जब गाँव के बच्चों से बात की कि वह पढ़ने जाते हैं तो बच्चों ने कहा-गाँव में स्कूल नहीं है, जो सरकारी है भी वहां पढ़ाई नहीं होती। इसके बाद फुरकान अख्तर ने नौकरी छोड़कर गाँव में ही एक मदरसा खोलने का मन बना लिया। आज यह मदरसा मान्यता प्राप्त है।
"धर्म को लेकर बच्चों में कभी भेदभाव न हो इसलिए हम एक ही छत के नीचे हिन्दू व मुस्लिम धर्मों की शिक्षा बच्चों को देते हैं। लेकिन हमारी इस सोच का कई बार लोगों ने विरोध भी किया। लोगों ने आपत्ति भी दर्ज कराई। लेकिन हमने उनको समझाया कि धर्म का मतलब सिर्फ प्रेम होता है।" वहीं, छात्रा शांति देवी कहती हैं, "मेरे पिता किसान है और हम यहां पर सभी विषय पढ़ते हैं और कभी भी कोई समस्या हम लोगों को नहीं होती।"
नौकरी छोड़ गाँव में खोला मदरसा

फुरकान ने दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विवि से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। ग्यारह साल लगातार शहर में रहने के बाद छुटियों में जब फुरकान अपने गाँव आए तो उन्होंने गाँव के बच्चों से पूछा कि क्या वो स्कूल जाते हैं तो बच्चों ने मना कर दिया। बच्चों ने कहा कि गाँव में स्कूल नहीं है। जो सरकारी स्कूल है वहां पर पढ़ाई नहीं होती। इसके बाद फुरकान ने गाँव में एक स्कूल खोलने का विचार बनाया। पत्रकारिता की नौकरी छोड़ने के बाद अब वो मदरसे का संचालन कर रहे हैं। वर्ष 2015 में अपने मदरसे की नींव रखी और वर्ष 2016 में उन्हें मदरसा बोर्ड से मान्यता भी मिली।



 


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