मछली पालन पर सब्सिडी रोक का विरोध करेगा भारत, लेकिन अगर सब्सिडी रुकी तो क्या होगा ?

Update: 2017-12-13 18:17 GMT
मछली पालन ( फोटो: विनय गुप्ता)

भारत ने मछली पालन में मिल रहे सब्सिडी पर रोक का विरोध करना शुरू कर दिया है। भारत ने कहा है कि वो विश्व व्यापार संगठन (ड्ब्ल्यूटीओ) के मत्स्य पालन पर सब्सिडी के अंतरिम रोक का विरोध करेगा। क्योंकि देश का मानना है कि वो अपने मछली कर्मचारियों की मदद को ऐसे अचानक से बंद नहीं कर सकता।

इसके बजाय देश चाहता है कि इस मुद्दे का समाधान दो साल बाद होने वाले बारहवीं मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (एमसी 12) में हो, इकोनॉमिक टाइम्स को एक अधिकारी ने बताया। उन्होंने कहा "हम मत्स्य पालन में किसी अंतरिम समाधान का विरोध कर रहे हैं। हम इसका समाधान एमसी12 के बाद एक चाहेंगे, क्यों इसके लिए हम अभी परिपक्व नहीं हैं।"

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अर्जेन्टीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में विश्व व्यापार संगठन के शिखर सम्मेलन मत्स्य पालनों पर मंत्रिस्तरीय घोषणा के पहले मसौदे के अनुसार देशों को मत्स्य पालन सब्सिडी के वर्तमान प्रारूप को 2020 तक बंद कर देने को कहा गया है। मसौदे के अनुसार ये अभी क्षमता से ज्यादा है और इससे बहुत ज्यादा मछली पालन हो रहा है। इसे अवैध करार देने को कहा गया है। इसमें ये भी कहा गया है कि 2019 में होने वाले अगले मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में मछली सब्सिडी पर रोक लगाने के लिए व्यापक और प्रभावी विषयों पर एक समझौता हो।

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एक अन्य अधिकारी ने इकोनॉमिक टाइम्स से कहा, "अंतरिम समाधान का मतलब ये होना चाहिए कि मत्स्य पालन सब्सिडी पर रोक एक निश्चित समय के बाद होना चाहिए। भले ही इसके प्रारूपों पर अभी चर्चा कर ली जाए।" विश्व व्यापार संगठन के 164 सदस्यों का मछलियों की सब्सिडी के पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों को लेकर अलग-अलग मत रखते हैं। जबकि कुछ देश अंतरिम समाधान की मांग कर रहे हैं।

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पहला ड्राफ्ट जिनेवा से आया है। इसमें कहा गया है कि समुद्र तट से 200 मील तक मछलियां सब्सिडी के लिए प्रतिबंधित करता है। यह विकासशील और कम से कम विकसित देशों (एलडीसी) को 31 दिसंबर 2020 तक विश्व व्यापार संगठन को सूचित करना होगा कि वे सब्सिडी तुरंत खत्म करने में सक्षम हैं कि नहीं। हालांकि, भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र में अपने मछली पकड़ने के जहाजों को ईंधन सब्सिडी देने की मांग अभी भी बातचीत का मामला है। आगे अधिकारी ने बताया "ईंधन सब्सिडी का कोई जिक्र नहीं है क्योंकि अभी भी इस पर चर्चा की जा रही है। अंतरिम फैसले पर इतनी जल्दी क्यों है।"

भारत के लिए क्यों जरूरी है सब्सिडी

पिछले दिनों नई दिल्ली में केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा था कि भारत में मत्स्य पालन तेजी से बढ़ रहा है। पिछले तीन वर्षों में मछली उत्पादन में 18.86 प्रतिशत की वृद्वि हुई इसके साथ ही स्थलीय मात्स्यिकी क्षेत्र में 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई। देश में चल रही नीली क्रांति योजना के तहत वर्ष 2022 तक 15 मिलियन टन तक पहुंचाना है। भारत में देश के लाखों लोग अपनी आजीविका के लिए मछली पालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। सभी प्रकार के मछली पालन (कैप्चर एवं कल्चर) के उत्पादन को साथ मिलाकर 2016-17 में देश में कुल मछली उत्पादन 11.41 मिलियन तक पहुंच गया है।

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछले एक दशक में जहां दुनिया में मछली और मत्स्य उत्पादों की औसत वार्षिक वृद्धि दर 7.5 प्रतिशत दर्ज की गई वहीं भारत 14.8 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर के साथ पहले स्थान पर रहा। विश्व की 25 प्रतिशत से अधिक प्रोटीन आहार मछली द्वारा किया जाता है और मानव आबादी प्रतिवर्ष 100 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक मछली को खाद्य के रूप में उपभोग करती है।

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14.5 मिलियन व्यक्तियों को आजीविका मिलती है

द नेशनल प्लेटफॉर्म फॉर स्केल फिशरवर्क, चेन्नई के संयोजक प्रदीप चटर्जी ने गाँव कनेक्शन को बताया "हमारे संगठन ने अक्टूबर में ही सरकार को पत्र लिखकर मांग की थी कि डब्ल्यूटीओ मे प्रस्तावित सब्सिडी रोक पर भारत को कड़ाई से विचार करना चाहिए। और हर राज्य के मछली पालकों से बात करने के बाद ही किसी निष्कर्ष पर निकलना चाहिए।"

डब्ल्यूटीओ ने जुलाई में बताया था कि कई देश मत्स्य पालन पर दिए जाने वाली मदद के खिलाफ हैं। पशुपालन डेयरी एवं मत्स्य मंत्रालय भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार मात्सियकी से 14.5 मिलियन व्यक्तियों को आजीविका मिलती है। इसके साथ ही 1.1 मिलियन से अधिक किसान जल कृषि के माध्यम से लाभ उठाते हैं।

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चटर्जी आगे कहते हैं "भारत में मछली पालक (समुद्रीय या देश के अंदर) मुश्किलों से गुजर रहे हैं। उनकी आर्थक स्थिति ठीक नहीं है। ऐसे में इनकी सुनिश्चत आय के लिए सरकार को डब्ल्यूटीओ समिट में हमारी बात को प्रमुखता से रखनी चाहिए। ये मछली पलकों की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है।"

वहीं मुंबई और गुजरात में मत्स्य व्यापार से जुड़े व्यापारी आजाद दुबे कहते हैं "अगर सब्सिडी नहीं मिलेगा तो जहाजों से मछली पकड़ने वाले व्यापारियों को बहुत नुकसान होगा। हमारी स्थिति पहले से ही खराब है। ऐसे में मदद रुकने से परेशानी और बढ़ेगी ही, सैकड़ों लोगों का रोजगार भी प्रभावित होगा।

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दीघा फिशरमैन एंड फिश ट्रेडर्स एसोसिएशन, पश्चिम बंगाल के चेयरमैन प्रणब कुमार कर इस बारे में कहते हैं " अभी हमारे देश में मछली पालन बहुत छोटे स्तर पर है। इसको अभी और बढ़ाने की जरूरत है। ऐसे में अगर दूसरे देशों से मिलने वाली सब्सिडी रुक जाएगी तो छोटे व्यापारियों का लाभ कम हो जाएगा। ये फैसला इस क्षेत्र के लिए नुकसानदायक होगा।"

फ्रेंड्स ऑफ फिश ने की थी बैन की मांग

9 दिसंबर 2016 में प्रकाशित द हिंदू समाचार पत्र के अनुसार यूएस के एक ग्रुप फ्रेंड्स ऑफ फिश ने पिछले साल नवंबर में डब्ल्यूटीओ से अवैध, अपरिवर्तित, और अनियमित (IUU) मत्स्य पालन पर दिए जाने वाले सब्सिडी पर रोक लगाने की मांग की थी। उनका कहना था कि मछली की वैश्विक मांग को पूरा करने और इस व्यवसाय से जुड़ी अनिश्चितता को खत्म करने के लिए सब्सिडी को खत्म किया जाना चाहिए।

'फ्रेंड्स ऑफ फिश' समूह सब्सिडी पर प्रतिबंध सुनिश्चित करना चाहता है। जिसमें ईंधन पर मिलने वाली सब्सिडी भी शामिल है, जो परिचालन लागत को कम करता है। भारत उन देशों में से एक होगा जो इस तरह की प्रतिबंध से प्रभावित होंगे, क्योंकि भारत को 2014-15 में 284 करोड़ रुपए के मत्स्य पालन योजना सब्सिडी और केंद्रीय उत्पाद शुल्क की प्रतिपूर्ति के लिए लगभग 177 करोड़ रुपए मिला था।

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