अब एमएसपी के गणित में उलझे देश के किसान

सरकारी रिपोर्ट के अनुसार महज छह फीसदी किसानों को ही मिल पाता है एमएसपी का लाभ, कृषि मूल्य एवं लागत आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में सरकार को सुझाव दिया कि एमएसपी पर फसल बेचने को कानूनी अधिकार घोषित किया जाए।

Update: 2018-07-12 07:30 GMT

चुनावी साल में खरीफ की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा कर केन्द्र सरकार जहां अपनी पीठ थपथपा रही है, वहीं किसान संगठन इसे नाकाफी बता कर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए कानून बनाकर इसे लागू करने के लिए अड़े हैं।

बढ़े एमएसपी का लाभ किसानों को कैसे नहीं मिल पाता, इसका गणित समझाते हुए कृषि मामलों के जानकार एवं किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक रमनदीप सिंह कहते हैं, "सरकार या तो समय से खरीदारी नहीं करती, या फिर कम खरीदारी करने से किसानों को अपना अनाज बिचौलियों या मंडियों में ही बेचना पड़ता है, जो एमएसपी से कम दाम पर ही खरीदते हैं," आगे कहते हैं, "कानून बनने से फसलें तय कीमत से कम पर नहीं खरीदी जा सकेंगी।"

एक सरकारी रिपोर्ट के हिसाब से महज 6 फीसदी किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिल पाता है, बाकी किसान स्थानीय व्यापारियों को ही एमएसपी से कम दाम पर अपनी फसल बेच देते हैं।


केन्द्र सरकार के खरीफ की 14 फसलों के एमएसपी बढ़ाने के फैसले से किसान ज्यादा संतुष्ट नहीं दिख रहे। "सरकार बेवजह अपनी पीठ थपथपा रही है, असलियत तो यह है कि इस कीमत पर भी खेती की लागत नहीं निकल रही। एमएसपी को कानूनी दर्जा देने का भी तभी फायदा होगा जब यह जमीनी स्तर पर कड़ाई से लागू होगा," लखीमपुर के किसान केके सिंह ने फोन पर बताया।

उधर, केन्द्र सरकार के अधीन कार्य करने वाले कृषि मूल्य एवं लागत आयोग (सीएसीपी) ने भी अपनी रिपोर्ट में सरकार को सुझाव दिया है कि एमएसपी पर फसल बेचने को कानूनी अधिकार घोषित किया जाए। इससे यह सुनिश्चित हो पाएगा कि फसलें तय कीमत से कम पर नहीं खरीदी जा सकेंगी और इससे किसानों में भरोसा जागेगा।

"अब तो कृषि लागत और मूल्य आयोग की रिपोर्ट ने भी कह दिया है कि एमएसपी को कानूनी दर्जा देना चाहिए। रिपोर्ट में लिखा है कि सरकार कोई ऐसा कानून बनाए कि न तो कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य के नीचे बेच पाए और न ही कोई इससे नीचे खरीद पाए," रमनदीप सिंह कहते हैं, "अगर मोदी सरकार ऐसा कानून बनाए तो किसान का कुछ भला होगा, नहीं तो सरकार ने खरीद ही नहीं की तो फिर इस बढ़े हुए एमएसपी का क्या फायदा?"

किसानों के हक की लड़ाई में स्वराज यात्रा पर निकल कर गाँव-गाँव में किसानों से मिल कर उनकी समस्याएं सुन रहे स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव ने एमएसपी बढ़ाने के फैसले के बारे में कहा, "खरीफ 2018-19 की एमएसपी बढ़ना किसान आंदोलन की एक छोटी सी जीत है। किसानों के ऐतिहासिक संघर्ष ने सरकार को मजबूर किया कि वो चुनावी वर्ष में अपने पिछले चुनावी वादे को आंशिक रूप से लागू करे।"

वह आगे कहते हैं, "सरकार ने जिस एमएसपी का ऐलान किया, यह वह डेढ़ गुना दाम नहीं है जो किसान आंदोलन ने मांगा था और न ही वह है जिसका वादा नरेंद्र मोदी ने किया था। यह महज ऐसा वादा है जो सरकारी खरीद पर निर्भर है। यह अस्थाई है। किसान को संपूर्ण लागत पर ड्योढ़ा दाम की गारंटी चाहिए।"

उधर, सरकार के खरीफ फसलों के एमएसपी बढ़ाने के बावजूद किसान संगठन शांत होते नहीं दिख रहे। 18 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में एमएसपी को कानूनी हैसियत दिए जाने संबंधी निजी विधियेक पेश करने की योजना बना रहे हैं।

"किसान अब अपना हक लेकर रहेगा, संसद को एमएसपी पर कानून बनाना चाहिए, ताकि कोई कारोबारी तय रेट से कम किसान की फसल न खरीद सके और खरीदे तो उसे जेल हो जाए," वीएम सिंह ने कहा।

कुछ किसान नेता इस बढ़े एमएसपी को ऊंट के मुंह मे जीरा होना बता रहे हैं। वीएम सिंह ने आगे कहा, "धान की खेती में जितनी लागत है उस हिसाब से एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) 2050 रुपए प्रति कुंतल होना चाहिए था। इसलिए इस एमएसपी को कानूनी दर्जा मिल भी गया तो किसान घाटे में ही रहेगा। अगर किसान को घाटे की खेती से उबारना है तो कृषि को उद्योग का दर्जा देना होगा और फसलों का एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) तय हो एमएसपी नहीं।"  

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