प्रवासी मजदूरों पर लॉकडाउन उल्लंघन के मामले वापस लिए जाएं और रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराएं राज्य : सुप्रीम कोर्ट

लॉकडाउन के बीच प्रवासी मजदूरों की मुश्किलों पर स्वत: संज्ञान लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद आज राज्य और केंद्र सरकारों को अहम आदेश जारी किया है।

Update: 2020-06-09 08:23 GMT

लॉकडाउन के बीच प्रवासी मजदूरों की मुश्किलों पर स्वत: संज्ञान लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद आज राज्य और केंद्र सरकारों को अहम आदेश जारी किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि लॉकडाउन में अभी भी फँसे प्रवासी मजदूरों की पहचान कर उन्हें उनके मूल स्थानों में भेजा जाए। इसके लिए राज्य मांग के अनुसार 24 घंटे के अन्दर श्रमिक स्पेशल ट्रेन की व्यवस्था करें और आज से 15 दिनों के अन्दर ऐसे सभी प्रवासी मजदूरों को भेजने की व्यवस्था सुनिश्चित करें।

अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि प्रवासी मजदूरों के खिलाफ लॉकडाउन के उल्लंघन के मामले दर्ज किये गए हैं तो राज्य सरकारों की ओर से ऐसे मामले आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत वापस लिए जाने चाहिए। 


लॉकडाउन में दूसरे राज्यों में फँसे और सड़कों पर घर वापसी के लिए पैदल ही निकलने को मजबूर हुए प्रवासी मजदूरों के मामले पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजय किशन कॉल की खंडपीठ ने खुद संज्ञान लेते हुए केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब माँगा था। इससे पहले चार जून को मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकारों की ओर से जवाब दिए गए।

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सुप्रीम कोर्ट ने आज आदेश जारी करते हुए कहा कि राज्य सरकारों को इन प्रवासी मजदूरों की पहचान कर सूची तैयार करनी होगी और अपने यहाँ हेल्प डेस्क स्थापित करने की जरूरत है जिससे इन मजदूरों की स्किल मैपिंग कर इन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जा सकें।

इससे पहले सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से जवाब दे रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि तीन जून तक श्रमिकों की वापसी के लिए 4,228 ट्रेनें चलायीं जा चुकी हैं। इनमें से ज्यादातर ट्रेनें उत्तर प्रदेश और बिहार के लिए गयी हैं। अब तक लगभग एक करोड़ प्रवासी मजदूर अपने गंतव्य तक पहुँच चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को यह निर्देश दिए थे कि हर एक गाँव को यह पता होना चाहिए कि कहाँ से कितने प्रवासी आए हैं ताकि रोजगार उत्थान योजनाएँ भी शुरू हों। हम सभी राज्य सरकारों को यह प्रक्रिया पूरी करने के लिए 15 दिन का समय देते हैं। 

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