विश्व स्वास्थ्य दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, किफायती और अनुकूल स्वास्थ्य उपलब्ध कराने को सरकार प्रतिबद्ध

Update: 2017-04-07 12:41 GMT
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।

नई दिल्ली (भाषा)। विश्व स्वास्थ्य दिवस पर गुणवत्तापूर्ण एवं किफायती स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करवाने की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि उनकी सरकार ऐसी स्वास्थ्य सेवा सुगम बनाने पर जोर दे रही है जो आसान पहुंच में होने के साथ किफायती और नागरिकों के अनुकूल हो।

विश्व स्वास्थ्य दिवस पर मोदी ने आपने ट्वीट में कहा , ‘‘विश्व स्वास्थ्य दिवस के मौके पर मैं आप सबकी अच्छी सेहत की प्रार्थना करता हूं जो आपको अपने सपनों को पूरा करने और उत्कृष्ट प्रदर्शन करने का अवसर देती है।''

प्रधानमंत्री ने ट्वीट में कहा, ‘‘जब बात आती है स्वास्थ्य सेवा की, तो हमारी सरकार ऐसी गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा मुहैया करवाने में कोई कसर नहीं छोड रही, जो आसान पहुंच में हो और किफायती भी हो।''

इस संदर्भ में मोदी ने कहा कि मंत्रिमंडल ने हाल ही में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को मंजूरी दी है, ‘‘जो कि व्यापक, समग्र और नागरिकों के अनुकूल है।''

प्रधानमंत्री ने कहा कि इस साल विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम अवसाद है जिसके बारे में उन्होंने रेडियो पर पिछले ‘मन की बात' कार्यक्रम में बात की थी। ट्वीट के साथ प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति और मन की बात का लिंक साझा किया।

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दुनिया में 35 करोड़ लोगों के अवसाद से पीड़ित होने का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात में कहा था कि अवसाद से मुक्ति मिल सकती है और इसका पहला मंत्र है कि इसे दबाने की बजाए उसे व्यक्त करें। प्रधानमंत्री ने कहा था कि जो लोग शारीरिक स्वास्थ्य के संबंध में जागरुक होते हैं, वे तो हमेशा कहते हैं पेट भी थोड़ा खाली रखो, प्लेट भी थोड़ी खाली रखो और जब स्वास्थ्य की बात आई है, तो 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस है।

संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक सबको स्वास्थ्य का लक्ष्य तय किया है, इस बार संयुक्त राष्ट्र ने 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस पर ‘अवसाद’ विषय पर फोकस किया है।

मोदी ने कहा था कि अवसाद इस बार उनका मुख्य विषय है, हम लोग भी अवसाद शब्द से परिचित हैं, एक अनुमान है कि दुनिया में 35 करोड़ से ज्यादा लोग मानसिक अवसाद से पीड़ित हैं। मुसीबत ये है कि हमारे अगल-बगल में भी इस बात को हम समझ नहीं पाते हैं और शायद इस विषय में खुल कर बात करने में हम संकोच भी करते हैं, जो स्वयं अवसादग्रस्त महसूस करता है, वो भी कुछ बोलता नहीं, क्योंकि वो थोड़ी शर्मिंदगी महसूस करता है।

मोदी ने कहा था कि मैं देशवासियों से कहना चाहूंगा कि अवसाद ऐसा नहीं है कि उससे मुक्ति नहीं मिल सकती है. एक मनोवैज्ञानिक माहौल पैदा करना होता है और उसकी शुरुआत होती है. पहला मंत्र है, अवसाद से दबने की बजाय उसे व्यक्त करने की जरुरत है।''

उन्होंने कहा था कि अपने साथियों के बीच, मित्रों के बीच, मां-बाप के बीच, भाइयों के बीच, शिक्षक के साथ खुल कर के कहिए आपको क्या हो रहा है, कभी-कभी अकेलापन खास कर के हॉस्टल में रहने वाले बच्चों को तकलीफ ज्यादा हो जाती है, हमारे देश का सौभाग्य रहा कि हम लोग संयुक्त परिवार में पले-बढे हैं, विशाल परिवार होता है, मेल-जोल रहता है और उसके कारण अवसाद की संभावनायें खत्म हो जाती हैं।

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