गाय-भैंस में फैल रही नई तरह की बीमारी, जिसके चपेट में आते ही पशुओं में घट जाता है दूध उत्पादन

साल 2019 में सबसे पहले लम्पी स्किन डिजीज को भारत में देखा गया था, बीमारी के चपेट में आते ही पशु दूध देना कम कर देते हैं, इस बीमारी का अभी कोई इलाज भी नहीं है।

Update: 2021-01-21 14:11 GMT
पिछले दो साल में ये बीमारी दस से ज्यादा राज्यों में फैल चुकी है।

अब्दुल्ला ज़हीरुद्दीन (31) पिछले 12 साल से तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले में थारपरकार नस्ल की गायों की डेयरी चलाते हैं। उनकी छह गायों के शरीर पर बड़े-बड़े घाव हो गए, कई दिनों तक जब ये घाव ठीक नहीं हुए तो डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि लम्पी स्किन डिज़ीज़ नाम की बीमारी हो गई है।

"दिसंबर के महीने में बीमारी की शुरूआत हुई थी, पहले एक गाय के शरीर में घाव हुए, उसके बाद कुछ ही दिनों में छह गायों को ये बीमारी हो गई, बीमारी के बाद से गायों ने दूध देना ही कम कर दिया। इस समय मेरे पास 30 गाय हैं, जिसमें से छह बीमार हो गईं, किसी तरह इलाज करने के बाद वो ठीक हो पाईं हैं," अब्दुल्ला जहीरुद्दीन ने गाँव कनेक्शन को बताया।

अब्दुल्ला की तरह ही तमिलनाडु, ओडिशा, कर्नाटक, केरल, असम, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे कई राज्यों के पशुपालक इस बीमारी से परेशान हैं। भारत में सबसे पहले ये बीमारी साल 2019 में पश्चिम बंगाल में देखी गई थी। इस वायरस का अभी तक कोई टीका नहीं है, इसलिए लक्षणों के आधार पर दवा दी जा रही है।

कर्नाटक सहित कई राज्यों में ये बीमारी पशुओं में फैल गई है।

लंपी स्किन डिज़ीज़ एक वायरल बीमारी होती है, जो गाय-भैंसों में होती है। लम्पी स्किन डिज़ीज़ में शरीर पर गांठें बनने लगती हैं, खासकर सिर, गर्दन, और जननांगों के आसपास। धीरे-धीरे ये गांठे बड़ी होने लगती हैं और घाव बन जाता है। पशुओं को तेज़ बुखार आ जाता है और दुधारु पशु दूध देना कम कर देते हैं, मादा पशुओं का गर्भपात हो जाता है, कई बार तो पशुओं की मौत भी हो जाती है। एलएसडी वायरस मच्छरों और मक्खियों जैसे खून चूसने वाले कीड़ों से आसानी से फैलता है। साथ ही ये दूषित पानी, लार और चारे के माध्यम से भी फैलता है।

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यह बीमारी सबसे पहले 1929 में अफ्रीका में पाई गई थी। पिछले कुछ सालों में ये बीमारी कई देशों के पशुओं में फैल गई, साल 2015 में तुर्की और ग्रीस और 2016 में रूस जैसे देश में इसने तबाही मचाई। जुलाई 2019 में इसे बांग्लादेश में देखा गया, जहां से ये कई एशियाई देशों में फैल रहा है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, लम्पी स्किन डिज़ीज़ साल 2019 से अब तक सात एशियाई देशों में फैल चुकी है, साल 2019 में भारत और चीन, जून 2020 में नेपाल, जुलाई 2020 में ताइवान, भूटान, अक्टूबर 2020 वियतनाम में और नंवबर 2020 में हांगकांग में यह बीमारी पहली बार सामने आई।

दुनिया के अलग-अलग देशों में लम्पी स्किन डिजीज का संक्रमण। 

केरल के पालक्काड़ में दक्षिण वृंदावन गौशाला में भी साल 2020 में लंपी स्किन डिज़ीज़ से कई गाएं बीमार हो चुकीं हैं। दक्षिण वृंदावन गौशाला के संचालक अश्विनी एस बताते हैं, "पिछले साल हमारी गौशाला में भी कई गायों को लम्पी स्किन डिज़ीज़ हुई थी, इस बीमारी का कोई इलाज तो है नहीं किसी तरह से हमारी गौशाला की गायें ठीक हो पाईं थी।"

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केरल के कई जिलों में ये बीमारी फैल चुकी है। वायनाड़ के जिला पशु पालन अधिकारी, डॉ. प्रदीप कुमार पीआर बताते हैं, "वायनाड़ के कई गाँवों में गायों को लम्पी स्किन डिज़ीज़ हुई। कई बार दूसरी बीमारियों को भी लोग लम्पी स्किन डिज़ीज़ समझ लेते हैं। वायनाड़ में अभी तक 844 पशुओं में ये बीमारी मिली है, जिनका इलाज चल रहा है।" पशुपालन विभाग, केरल के अनुसार जनवरी 2020 से दिसम्बर 2020 तक कुल 7952 पशुओं को ये बीमारी हो चुकी है, जिसमें ज्यादा 4704 पशु जनवरी में संक्रमित हुए थे। 

तमिलनाडू और केरल के साथ ही लम्पी स्किन डिज़ीज़, छत्तीसगढ़, असम, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में फैल चुकी है।

बीमारी के चपेट में आते ही पशु चारा खाना बंद कर देते हैं, दूध देना बिल्कुल कम कर देते  हैं। कई बार तो उनकी मौत भी हो जाती है।

लम्पी स्किन डिजीज को विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन ने नोटीफाएबल डिज़ीज़ घोषित किया है, इसके अनुसार अगर किसी भी देश को इस रोग के बारे में पता चलता है तो विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (ओआईई) को जल्द सूचित करें।

20वीं पशुगणना के अनुसार देश में गोधन (गाय-बैल) की आबादी 18.25 करोड़ है, जबकि भैंसों की आबादी 10.98 करोड़ है। जो कि दुनिया में पहले नंबर पर है। देश की एक बड़ी आबादी पशुपालन से जुड़ी है, ऐसी बीमारी से पशुपालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली के विकृति विज्ञान विभाग के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. केपी सिंह इस बीमारी के बारे में बताते हैं, "ये बीमारी एक वायरस कैप्रीपॉक्स (Capripox) से फैलती है, अगर एक पशु में संक्रमण हुआ तो दूसरे पशु भी इससे संक्रमित हो जाते हैं। ये बीमारी, मक्खी-मच्छर, चारा के जरिए फैलती है, क्योंकि पशु भी एक राज्य से दूसरे राज्य तक आते-जाते रहते हैं, जिनसे ये बीमारी एक से दूसरे राज्य में भी फैल जाती है।"

मच्छर-मक्खी के साथ ही से बीमारी एक दूसरे पशुओं में साथ रहने से भी फैल सकती है।

लम्पी स्किन डिजीज से बचने के उपाय के बारे में वो कहते हैं, "अभी तक इस बीमारी का टीका नहीं बना है, लेकिन फिर भी ये बीमारी बकरियों में होने वाली गोट पॉक्स की तरह ही है, इसलिए अभी गाय-भैंस को भी गोट पॉक्स का टीका लगाया जा रहा है, जिसका अच्छा रिजल्ट भी आ रहा है। इसके साथ ही दूसरे पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए संक्रमित पशु को एकदम अलग बांधें और बुखार और लक्षण के हिसाब से इलाज कराएं।" 

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