कीट विशेषज्ञ से सीखिए कैसे बिना कीटों को मारे और कीटनाशक के कर सकते हैं जैविक खेती

जैविक खेती बिना कीटनाशक कैसे करे : अगर आप जैविक या प्राकृतिक खेती करते हैं तो ये वीडियो आपके काफी काम का हो सकता है। हरियाणा के कीट विशेषज्ञ मनवीर रेढू बता रहे हैं कैसे कीटों पर बिना कीटनाशक के खेती हो सकती है…

Update: 2019-11-30 10:24 GMT

जींद (हरियाणा)। "जब हम जैविक या प्राकृतिक खेती की बात करते हैं तो किसानों के सामने तीन समस्याएं आती हैं। कीट-पतंगों की रोकथाम कैसे हो?, खरपतवार कैसे हटाया जाए और पौधों को पूरा पोषण कैसे मिले? कीटनाशक का ज्यादातर प्रयोग कीटों के लिए होता है? लेकिन अगर आपको कुछ चीजों की जानकारी हो तो कीटनाशक की जरूरत नहीं पड़ेगी।"  मनवीर रेढू कहते हैं।

कीट विशेषज्ञ मनवीर रेढू हरियाणा में रहते हैं। पिछले कई वर्षों से लोगों को कीटों की दुनिया के बारे में जागरूक कर रहे हैं। वो कीट साक्षरता मिशन शुरू करने वाले डॉ. सुरेंद्र दलाल के अहम साथी भी रहे हैं। हरियाणा और पंजाब में उनसे जुड़े सैकड़ों किसान बिना कीटों (insects ) को मारे खेती कर रहे हैं। कीट पाठशाला का वीडियो यहां देखिए

'कौन सा कीट किस ज़रूरत के हिसाब से आया'

किसानाचार्य मनवीर रेढू कहते हैं, "कीट दो प्रकार के होते हैं एक शाकाहारी और दूसरा मांसाहारी। मांसाहारी कीट (vegetarian insects) को मैं मित्र कीट नहीं कह सकता हूं और शाकाहारी कीट (vegetarian insects) को भी मैं दुश्मन कीट नहीं कह सकता हूं क्योंकि शाकाहारी कीट भी पौधों की जरूरत के हिसाब से आते हैं। मैं सिद्ध कर सकता हूं कि कौन सा कीट किस जरूरत के हिसाब से आया है।"

"हां, एक बात सही है कि कुछ कीटों की संख्या आपकी दुश्मन बन जाती है। ये भी सच है कि उन कीटों की संख्या किसानों की वजह से ही बढ़ती है। किसान अगर कीटनाशक का प्रयोग न करें तो कीट की संख्या उतनी ही रहेगी, जितनी पौधों की जरूरत है," मनवीर आगे बताते हैं।

हरियाणा में कपास की फसल पर लगातार कीटों का प्रकोप बढ़ता जा रहा था। वर्ष 2001 में अमेरिकी सुंडी से फसल को बचाने के लिए किसान एक-एक फसल में 30-30 स्प्रे कर रहे थे। उसी दौरान हरियाणा में कृषि विकास अधिकारी रहे डॉ. सुरेंद्र दलाल ने कीटों पर शोध शुरू किया और कीट साक्षरता मिशन की शुरुआत की। डॉ. दलाल ने बताया कि कीट किसानों के दुश्मन नहीं होते, बस उनकी संख्या को नियंत्रित करने की जरूरत होती है।

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खेती विरासत मिशन से जुड़े पंजाब के जगत सिंह धारीवाल भी किसानों को कीटों की पहचान कराते हैं। फोटो- अरविंद शुक्ला

'हर कीट की एक वजह है'

मनवीर बताते हैं, "डॉ. सुरेंद्र दलाल ने गाँव के लोगों को कीटों के प्रति जागरूक करना शुरू किया, उन्हें कीटों की पहचान कराई। सानिध्य में आकर हमने 43 प्रकार के शाकाहारी और 161 प्रकार के कीटों के बारे में जानकारी मिली। हर कीट की एक वजह है समय के अनुसार वो पौधों पर आकर सहायता करता है। जब उनकी संख्या बढ़ जाती है तो मजबूरी में उन्हें पौधे के हिस्से का भोजन करना पड़ता है और वही हमारे नुकसान का कारण बनता है।"

कीटों की दुनिया, फसल के लिए उनके महत्व और कीटनाशक कंपनियों के बढ़ते कारोबार के बारे में बात करते हुए मनवीर रेढू कहते हैं, "कीट के बारे में भ्रम ज्यादा और इससे नुकसान कम है। अगर हिन्दुस्तान की बात करें तो हमें एक प्रतिशत भी कीटों पर कीटनाशकों के छिड़काव की जरूरत नहीं। जितना हम कीटनाशक डालेंगे ये कीट उतना ही बढ़ते जाएंगे। उदाहरण के लिए 1990 से 2001 के बीच अमेरिकी सुंडी (कपास का कीड़ा) को लेते हैं। हम उसे मारते रहे, वो बढ़ती रही। जैसे हमने मारना बंद किया 2005 तक वो शांत रही।"

हरियाणा और पंजाब में पिछले कई वर्षों से कीट पाठशालाओं का आयोजन किया जाता है। इसमें कीटों के विशेषज्ञ जिन्हें कीट कमांडो भी कहा जाता है वो किसानों को खेत में कीटों के बारे में जागरूक करते हैं। देखिए वीडियो Full View

'धीरे-धीरे वो कीट पूरे हरियाणा से गायब हो गया'

अपनी बात को जारी रखते हुए मनवीर कहते हैं, "अमेरिकी सुंडी के बाद नीली बग, जिसे भष्मासुर कहा जाता है, उसका प्रकोप शुरू हुआ। साल 2005 से लेकर 2007 तक‍ उसने करोड़ों रुपए का कपास कीटनाशक बिकवाया। मगर जींद जिले में ज्यादातर किसानों ने उस पर किसी तरह कोई छिड़काव नहीं किया। धीरे-धीरे वो कीट जींद से खत्म हो गया। अब पूरे हरियाणा से गायब हो गया है।"

मनवीर के मुताबिक इस तरह किसानों ने सफेद मक्खी, हरा तिल्ला और चुर्रा नाम के कीट पर कपास और होपर नाम के धान में छिड़काव करना शुरू किया। साल 2007 से पहले कभी भी धान के खेत में कोई भी किसान ने होपर के लिए छिड़काव नहीं किया था और उसी साल छिड़काव के बाद इन्होंने भी भयंकर रुप अख्तियार कर लिया। यह प्रमाण है उस बात का कि जब तक हम कीट को नहीं छेड़ते हैं तब तक वो हमें नुकसान नहीं करता है।

डॉ. सुरेंद्र दलाल के सानिध्य में आकर हमने 43 प्रकार के शाकाहारी और 161 प्रकार के कीटों के बारे में जानकारी मिली। हर कीट की एक वजह है समय के अनुसार वो पौधों पर आकर सहायता करता है। जब उनकी संख्या बढ़ जाती है तो मजबूरी में उन्हें पौधे के हिस्से का भोजन करना पड़ता है और वही ह‍मारे नुकसान का कारण बनता है।

कपास की पत्ती के जरिए कीटों का महत्व बताते मनवीर रेढू। फोटो अरविंद शुक्ला

'कीटों का खेत में होना ज़रूरी है'

कीटों की अहमियत समझाते हुए मनवीर कहते हैं, "कीटों के बिना कपास नहीं हो सकती है। अमेरिकन सुंडी के प्रकोप के बाद हम लोगों ने भी खूब छिड़काव किया था, हर तीसरे दिन खेतों में जहर डाला लेकिन उपज मात्र 60-65 किलो की थी। फिर हम लोगों को समझ हुई कि कीटों का खेत में होना जरूरी है तो कीटनाशक बंद कर दिए। जिसके बाद हमारा उत्पादन बढ़ गए था।"

कीट और फसल के बीच का चक्र समझाते हुए मनवीर कहते हैं, "कीट नहीं होंगे तो परागण कैसे होगा। उपज बढ़ने की दो-तीन वजह रहीं, पोल्युनेशन बढ़ाने वाले कीट हमारे खेतों में अधिक। मांसाहारी कीटों ने शाकाहारी कीटों की संख्या बढ़ने नहीं दी।"

वर्ष 2009 में डॉ. सुरेंद्र दलाल ने इस पर काम करना शुरू किया था, लेकिन 2013 में उनका स्वर्गवास हो गया। इसके बाद उनकी टीम ने पूरे हरियाणा और पंजाब के हर जिले में किसानों को इस काम से जोड़ दिया। कीट पाठशाला का वीडियो नीचे देखिए

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समझाने के लिए बहुत ही सरल तरीका अपनाया

डॉ. सुरेंद्र दलाल ने किसानों को समझाने के लिए बहुत ही सरल तरीका अपनाया था, उन्होंने कीटों का वर्गीकरण कर दिया। पहला वर्गीकरण उनके खाने के हिसाब से है, जो साग खाते हैं उन्हें शाकाहारी कहा और जो सीधे-सीधे मांस खाते हो उन्हें मांसाहारी कहा। शाकाहारी में भी उन्होंने चार वर्ग बनाए। पहला जो रसचूसक कीट थे, दूसरा पत्ते खाने वाले कीट, तीसरा फूल को खाने वाले। चौथा फल को खाने वाले फलहारी होते हैं।

मनवीर के मुताबिक शाकाहारी कीट में 20 प्रकार के कीट होते हैं। ये बीस कीट किसान को याद नहीं होते हैं, इसलिए उनके भी तीन वर्ग बना दिए गए। पहले वर्ग में मेजर कीट लिए। जिससे दुनिया डरती है। सबसे ज्यादा जहरों का प्रयोग इन पर होता है जैसे सफेद मक्खी, हरा तिल्ला और चुर्रा। पहले ये तीनों मेजर कीट में नहीं आते थे। उनकी जगह पर अमेरिकन सुंडी हुआ करता थी।

इसके बाद आते हैं ऑल गोल- ये ऐसे कीट होते हैं जिनके आने न आने से फसल को कोई नुकसान नहीं होता है। इनकी उपस्थिति दर्ज भी नहीं की जाती है। इसके बाद नंबर आता है प्रणभक्षी कीट का जो बस पत्ते ही खाते हैं। लेकिन जब आप इसके बारे में पढ़ेंगे तो आपको एक ऐसी जानकारी मिलेगी कि इन कीटों ने फसल में जाने के लिए एक समय निश्चित किया है। जो विशेष प्रकार के कीट होते हैं वो पहले आ जाएंगे तो बाद नहीं आएंगे। जो बीच में आते हैं वो भी बाद में नहीं आएंगे। जो बाद में आएंगे वो कभी शुरू में नहीं आएंगे। 

'हर पौधे को कीट की जरूरत'

मनवीर बताते हैं, "पहले आएगा स्लेटी गोल जो बस पत्तों के किनारे को खाएगा। उसके बाद पत्ते के अंदर एक इंच सुराग करने वाले कीट आएंगे। इनमें दो कीट होते हैं पहला सेमी लुकर तो दूसरे को लूकर ही बोलते हैं। इसके बाद 4 प्रकार की टिड्डे जिसे ग्रासहॉपर बोलते हैं। ये भी पत्तों में एक इंच तक सुराग करते हैं।"

"उसके बाद आता है सुरंगी कीड़ा और एक पत्ता लपेट। इसके बाद वो कीट आते हैं जो पौधों और फलों को खुराक देने की जरूरत होती है और पत्तों को खुराक नहीं देनी पड़े तो ऐसे कीटों को पौधा बुलाता है जो पत्तों को झलनी बना दे। जिसमें आर्मे सुंडी है। इसमें दोनों बालों वाली, लाल बालों वाली, काले बालों वाली और एक तंबाकू सुंडी है। हर पौधे को हर कीट की जरूरत होती है,"मनवीर आगे बताते हैं। 

हरियाणा के जींद जिले में कीट पाठशाला में कीटों की पहचान करती महिला कीट कमांडो। फोटो- अरविंद शुक्ला

किसान की फ‍़सल को नहीं होगा नुकसान

किसानों को कपास की खेती करने के लिए कीटों की जानकारी होनी जरूरी है। कीटों की जानकारी के लिए कपास एक बेहतर फसल है क्योंकि कपास के पौधे के चारों तरफ बोने के लिए स्पेस होता है। और कपास के बड़े पत्ते होने के कारण उसमें समय-समय पर कीट आते रहते हैं। कीटों का स्वभाव जाने के बाद दूसरी फसलों में उन्हें जानने की जरूरत नहीं पड़ती है। यह चीज समझने के लिए होती है कि ये कीट यहां जरूरत से अत्यधिक आया तो क्यों? ये चीजें अगर किसान समझना शुरू कर दे तो उसे पौधे पर कीट जरूरत से अधिक नहीं आएंगे और किसान की फसल को कोई नुकसान नहीं होगा। 

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