बारिश के चलते अगेती आलू की बुवाई पिछड़ी, नए आलू के लिए करना होगा 2 महीने इंतजार

Update: 2018-10-05 07:33 GMT

अजय मिश्र/मोहम्मद परवेज

कन्नौज (उत्तर प्रदेश)। बाजार में इस बार नया आलू देरी से आएगा। कारण, बारिश और बाढ़ की वजह से अगेती फसल की बुवाई कम हुई है। निर्धारित समय के बाद ही किसान खेत तैयार कर पाए हैं। बुवाई कम होने से पुराने आलू के दाम फिलहाल अच्छे बने रह सकते हैं। इसके साथ ही नया आलू खाने वालों को इंतजार करना पड़ सकता है।

उत्तर प्रदेश में कन्नौज से लेकर आगरा तक को आलू बेल्ट कहा जाता है। इस इलाके में बाकी क्षेत्रों की अपेक्षा पहले बुवाई की जाती है। कन्नौज के जिला उद्यान अधिकारी मनोज कुमार चतुर्वेदी कहते हैं, ''बरसात की वजह से आलू की बुवाई देर से हुई है। कन्नौज में तिर्वा और उमर्दा क्षेत्र में कच्ची फसल ही अधिक होती है, लेकिन इस बार कम रहेगी। कुल रकबे का 15-20 फीसदी ही किसान कच्ची फसल में उपयोग करते हैं।"

कन्नौज बेल्ट ही नहीं लौटते मानसून में यूपी के पूर्वांचल से लेकर बिहार और पश्चिम बंगाल तक काफी बारिश हुई थी। तराई इलाकों में नमी के चलते आलू की अगैती बुवाई नहीं हो पाई है।

देश में सबसे ज्यादा आलू का उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है।

मनोज चतुर्वेदी आगे बताते हैं, यूपी के पूर्वांचल, बहराइच, बलिया, गोरखपुर के साथ ही पश्चिम बंगाल और बिहार के लिए कन्नौज से आलू के बीज जाते हैं। इसका असर रेट पर पड़ेगा और आने वाले दिनों में पुराने आलू के दाम मिलते रहेंगे।"

यूपी में पुराने आलू का रेट 350 रुपए से लेकर 600 रुपए प्रति कट्टा (50 किलो) तक हैं। आलू की बुवाई शुरु होने के कुछ दिनों बाद पुराने आलू की कीमतें गिरनी शुरु हो जाती हैं। पिछले वर्ष आगरा समेत कई इलाकों में किसानों को आलू सड़कों पर फेंकना पड़ा था। लेकिन इस बार के हालात बदले नजर आ रहे हैं। कच्चे आलू की बुवाई 15 सितंबर से 30 सितंबर तक चलती है। इसके बाद किसान जो आलू बोता है उसमें का बड़ा हिस्सा कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है।

यह भी देखें: यूपी: मिड-डे मील में शामिल होंगे आलू से बने उत्पाद, समर्थन मूल्य पर ही होगी खरीदी

देश में सबसे ज्यादा आलू का उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है। देश के कुल उत्पादन में 32 फीसदी हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की है। यहां 2016-17 के सीजन में 15076.88 मिट्रिक टन आलू का उत्पादन हुआ था। ज्यादा उत्पादन होने के कारण ही किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ा, जबकि प्रदेश सरकार ने आलू का एमएसपी 487 भी तय किया था। इससे भी बात नहीं बनी तो इसे बढ़ाकर 566 रुपए कर दिया गया था। प्रदेश में मार्च से आलू की खरीदी की तैयारी शुरू हो जाती है। ऐसे में योगी सरकार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। पिछले दिनों भारतीय किसान संघ के सम्मेलन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि प्रदेश सरकार किसानों का हित चाहती है इसलिए इस बार भी प्रदेश में समर्थन मूल्य पर आलू की खरीद होगी। सरकार आलू को मिड डे मील में भी शामिल करेगी।

 देश के कुल उत्पादन में 32 फीसदी हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की है।

कन्नौज में जलालाबाद निवासी 36 वर्षीय साक्षर किसान विजय तिवारी बताते हैं, ''कन्नौज के तिर्वा और जलालाबाद क्षेत्र में आलू की कच्ची फसल अधिक होती है। यहीं पर बीज की बिक्री होती है। यहां नेपाल तक बीज जाता है, इसलिए रेट अच्छा मिलता है।" विजय बताते हैं, पिछले बार हमने 20 बीघा में आलू की फसल की थी। इस बार 10-15 बीघा लगान पर अधिक फसल करेंगे। कच्ची फसल अधिक करते हैं। 15-16 बीघा में लगा भी चुके हैं। भाव और बरसात का कोई पता नहीं है।"

यह भी देखें: सलाह: बीज शोधन से आलू को झुलसा रोग से बचाएं किसान

कन्नौज जनपद से 25 किमी दूर गुरसहायगंज क्षेत्र के हबीब कोल्ड स्टोरेज के प्रबंधक रमेश चंद्र द्विवेदी कहते हैं, ''50 फीसदी आलू की निकासी हो चुकी है। कीमतें यही रहेंगी। पक्की (पिछैती) फसल अधिक होगी।" नरायन कोल्ड स्टोरेज, मानीमऊ कन्नौज के अरविंद सामवेदी बताते हैं, ''जब तक नया आलू देर से आएगा, इसलिए पुराने आलू की कीमतें कम नहीं होंगी। सामान्यतः आलू का पैकेट 375 रूपए से 425रूपए चल रहा है। अच्छा आलू 600 रूपए पैकेट तक बिक रहा है।' आगे कहते हैं, ''हमारे यहां निकासी आधी हो चुकी है। रकबा भी बढ़ने की उम्मीद है।"

फर्रूखाबाद जिले के उद्यान निरीक्षक जितेंद्र सिंह चौहान बताते हैं, ''हमारे जिले में 74 कोल्ड स्टोरेज चालू हालत में हैं। साढ़े छह लाख मीट्रिक टन आलू रखने की क्षमता है। करीब 55 फीसदी निकासी हो चुकी है। 42 हजार हेक्टेयर में आलू की पैदावार होती है।' वह आगे कहते हैं, ''कच्ची फसल का समय निकल गया है। अबकी बार पक्की फसल अधिक होगी। बढ़ने की उम्मीद अधिक है।"

देश में पांच अनुसंधान केंद्र हैं जो आलू पर रिसर्च करते हैं।

तिर्वा कोल्ड स्टोरेज के मैनेजर हाकिम सिंह राजपूत बताते हैं, ''इस बार अभी तक निकासी कम हुई है। बीज के लिए आलू निकल गया है। सब्जी के लिए किसानों ने रोक रखा है। 450 से 600 रूपए पैकेट तक बिक रहा है। पिछले साल से रेट अच्छा है।" किसान राजेश कुमार (40) साल निवासी मटकेपुर्वा बताते हैं, ''कच्ची फसल नहीं की है। कच्ची फसल कच्चा खेल, पक्की फसल पक्का खेल। पक्की फसल करनी है। कोल्ड स्टोरेज में 105 पैकेट पड़े हैं। पहले की तरह 25-30 बीघा में आलू की फसल करेंगे।"

उद्यान विभाग के रिकार्ड के मुताबिक कन्नौज जिले में पिछले कुछ सालों में आलू का रकवा 48,500 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। यहां अगैती (कच्ची) और पिछैती (पक्की) दोनों ही तरह की फसलें होती है।

यह भी देखें: रिसर्च : आलू को सड़ाने करने वाले यूरोपियन रोगाणु की खोज... आयरलैंड में मचाई थी तबाही

कन्नौज और फर्रूखाबाद की तरह कानपुर में किसानों ने बड़े पैमाने पर आलू बुवाई की तैयारी की हैं। कानपुर के डीएसओ चंद्रप्रकाश अवस्थी बताते हैं, ''हमारे यहां इस बार आलू का रकवा बढ़ने की संभावना है। करीब 15 हजार हेक्टेयर में आलू की फसल होती है। 62 कोल्डस्टोरेज हैं। छह लाख मीट्रिक टन आलू रखने की क्षमता है और 45 फीसदी निकासी हो चुकी है।" बाराबंकी के जिला उद्यान अधिकारी महेंद्र कुमार बताते हैं, हमारे यहां लो लैंड एरिया में आलू ज्यादा बोया जाता है, जहां खेत तैयार नहीं है। इस बार करीब 15 हजार हेक्टेयर में आलू बोये जाने की उम्मीद है।"

कन्नौज में आलू की खेती

वरिष्ठ निरीक्षक उद्यान रामशंकर शुक्ल बताते हैं, ''गतवर्ष कन्नौज में 46,200 हेक्टेयर में आलू की खेती हुई थी। 12,47,400 मीट्रिक टन आलू का उत्पादन और जिले के 117 कोल्डस्टोरज में 11,46,719 मीट्रिक टन भण्डारण हुआ था।' वरिष्ठ निरीक्षक आगे बताते हैं, ''20 सितम्बर तक 5,40,678 मीट्रिक टन यानि 47 फीसदी आलू की निकासी हो चुकी है। 30 नवम्बर तक सभी कोल्ड स्टोरेज खाली करने होते हैं।117 कोल्डस्टोरेज में 11,69,025.96 मीट्रिक टन आलू रखने की क्षमता है।"

कन्नौज में एक हजार क्विंटल बीज की डिमांड

उद्यान विभाग के वरिष्ठ निरीक्षक बताते हैं कि ''कुफरी चिप्सोना और कुफरी बहार आलू बीज की डिमांड हो चुकी है। एक हजार क्विंटल बीज पिछले साल की तरह इस साल भी मांगा गया है। अक्तूबर के पहले सप्ताह में बीज आ जाएगा। किसानों को पहले आओ, पहले पाओ के हिसाब से बीज दिया जाएगा।'

देश में हैं पांच अनुसंधान केंद्र

देश में पांच अनुसंधान केंद्र हैं जो आलू पर रिसर्च करते हैं। पहला और मुख्य सेंटर हिमाचल प्रदेश के शिमला में है। उत्तर प्रदेश के मेरठ में मोदीपुरम, मध्य प्रदेश के ग्वालियर, बिहार के पटना और पंजाब के जालंधर में भी केंद्र हैं। 

यह भी देखें: आलू की खेती का सही समय, झुलसा अवरोधी किस्मों का करें चयन

Similar News