रामनाथ कोविंद : बीजेपी के इस दलित कार्ड से बसपा को खतरा

Update: 2017-06-19 19:42 GMT
रामनाथ कोविंद के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।

लखनऊ। राष्ट्रपति चुनाव में दलित उम्मीदवार को उतारकर बीजेपी ने एक तीर से कई निशाने लगा दिया है, जिसमें एक तरफ जहां विपक्ष को यह नहीं समझ रहा है कि इस चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारें या नहीं, वहीं बसपा के अपने अस्तित्व के लिए यह खतरा नजर आ रहा है। सोमवार को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने नई दिल्ली में जैसे ही रामनाथ कोविंद के नाम का ऐलान किया, वैसे ही विपक्षी कांग्रेस समेत सभी दलों को बीजेपी के इस मास्टर स्ट्रोक के जवाब नहीं सूझ रहा था।

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2019 के लोकसभा चुनाव पर निशाना

बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद बीजेपी की राजनीति से लंबे समय तक जुड़े रहे हैं। राजनीति पर लंबे समय तक निगाह रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाकर बीजेपी ने जहां साल 2019 के लोकसभा चुनाव में दलित वोटों को अपने पाले मे करने के लिए दांव चल दिया है।

बसपा पर वार

वहीं इसका सबसे ज्यादा असर बहुनज समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती पर पड़ेगा। उत्तर प्रदेश चुनाव में हार के बाद बुरे दिन का सामना कर रही बसपा के लिए दलित वोटों को अब अपने पाले में रखना मुश्किल होगा लेकिन दलित चिंतक चंद्रभान सिंह इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका कहना है कि रामनाथ कोविंद का दलित समाज में वह पकड़ नहीं है और न ही दलित नेता के तौर पर उनकी कभी पहचान या स्वीकार्यता रही है। ऐेसे में उनके राष्ट्रपति बनने से बसपा के दलित वोटों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

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राष्ट्रपति पद के लिए भाजपा की तरफ़ से उम्मीदवार घोषित किए गए रामनाथ कोविंद के गाँव से सीधे लाइव देखिए, गाँव में खुशी का माहौल है

Full View

दलित चिंतक और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रहे एस.आर. दारापुरी ने बताया कि पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा को मिलने वाले दलित वोटों में काफी गिरावट आई है। ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव में एक दलित को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाकर आने वाले समय में बसपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है। यही कारण है कि बीजेपी के उम्मीदवार के घोषणा के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने सोमवार को रामनाथ कोविंद के नाम पर संतुलित प्रतिक्रिया देने की कोशिश की। दरअसल बसपा को डर है कि रामनाथ कोविंद का विरोध करने से बसपा के दलित लोग कहीं नाराज न हो जाएं।

दलित वोटों पर शाह गंभीर

रामनाथ कोविंद के बहाने अमित शाह ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में दलित वोटों को हासिल करने के लिए बड़ी चाल चल दी है। अमित शाह को पता है कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में की तरह अगर आने वाले लोकसभा चुनाव में भी यूपी की 80 में से अधिकतर सीटें हासिल करना है तो दलित वोट को अपने पक्ष में रखना होगा। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। इस चुनाव में उसका वोट प्रतिशत 19.6% रह गया था। इस चुनाव में दलितों का एक बड़ा हिस्सा बसपा से अलग हो गया था। वहीं बीजेपी ने 80 में 73 सीटें जीतकर रिकार्ड कायम कर दिया था।

बड़े वोट बैंक का रखा ख्याल

उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा आबादी दलितों की है। उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी 21 प्रतिशत है। जिनमें लगभग 66 उपजातियां है। जिसमें सबसे ज्यादा 56 प्रतिशत जाटवों की है। इसके बाद 16 प्रतिशत पासी, 1 5 प्रतिशत में धोबी, कोरी और बाल्मिकी, 5 प्रतिशत गोंड, धानुक और खटिक और 9 प्रतिशत में खरवार, कोल और बहेलियां हैं। 3 प्रतिशत बाकी उपजातियां हैं।

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