बलात्कार हुआ, एफआईआर लिखाने के लिए महीनों भटकना पड़ा, दबंगों के डर से घर छोड़ना पड़ा तब तक केस दब गया

Update: 2017-11-11 18:56 GMT
परिजन और ग्रामीणों में अभी भी है आक्रोश। (प्रतिकात्मक तस्वीर)

उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में 22 वर्षीय महिला और उसके पति पर 30 जनवरी, 2016 को आधी रात में गाँव के तीन लोगों ने हमला किया, पुलिस ने इसकी शिकायत दर्ज करने से इंकार कर दिया। महिला ने अपने बयान में ये भी कहा कि पति को दो लोगों ने बुरी तरह से मारा-पीटा। तीसरे आदमी ने जो एक प्रभावशाली जाति से था, उसने महिला का बलात्कार भी किया। महिला को जातिसूचक गालियां भी दी और पुलिस के पास न जाने के लिए जान से मारने की धमकी।

महिला बताती हैं, “पुलिस ने शिकायत के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की क्योंकि मुख्य आरोपी सत्तारूढ़ राजनीतिक दल का स्थानीय नेता था। बहुत मुश्किल के बाद 2 मार्च को मामला जब अदालत में पहुंचा तो इसकी एफआईआर लिखने व उचित कार्रवाई करने का आदेश दिया गया। इसके बाद भी एफआईआर दर्ज करने में पुलिस ने आठ महीने का समय लिया।” इस बीच महिला और उसके पति को गाँव के उन दबंगों से लगातार धमकियां मिलती रहीं और मजबूरी में उन्हें गाँव ठोड़ कर कहीं और जाना पड़ा।

पीड़िता कहती है कि हमने न्याय की आस ही छोड़ दी। हम कब तक ऐसे भागते। हमारा पूरा परिवार बिखर गया। पुलिस मामले की जांच नहीं कर रही थी और आरोपी हमें जान से मारने की धमकी देते थे। गाँव के मुखिया ने भी हमारी नहीं सुनी।

आपराधिक दंड संहिता में 2013 का संसोधन पुलिस द्वारा बलात्कार की शिकायत दर्ज करने में विफलता को अपराध करार देता है। लेकिन फिर भी इस मामले में कोई भी कार्रवाई न करने के बाद भी पुलिस पर कोई आपराधिक दंड संहिता नहीं लगाई गई।

देश भर में बढ़ रही महिला अपराधों को देखकर सरकार भले ही नए-नए कानून और सुरक्षा की नीतियां बना रही हो लेकिन अभी भी कई जगह बलात्कार जैसी घटना का एफआईआर लिखवाने के लिए पीड़िता को दर दर भटकना पड़ता है। कई बार आरेापी उन्हें जान से मारने की ध्मकियां देकर केस वापस लेने को कहते हैं। निर्भया कांड के बाद सरकार ने जस्टिस वर्मा कमिटी का गठन किया फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के आदेश दिए और भी कई कानून बनाए लेकिन जब सबसे पहली कड़ी एफ आईआर नहीं दर्ज़ होगी ये सब किस काम आएंगे।

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“ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए फास्टट्रैक कोर्ट बनाए गए हैं। लेकिन मामला अदालत तक पहुंचें उसके लिए जरूरी है कि रिपोर्ट जल्द से जल्द दर्ज हो। तो इसमें तो सबसे पहले जरूरी है कि पुलिस अपनी प्राथमिकता को समझे।” लखनऊ के हाइकोर्ट के एडवोकेट केके शुक्ला ने बताया।

लैंगिक हिंसा से निपटने के लिए इतने कानून फिर भी फायदा नहीं

भारत में लैंगिक हिंसा निपटने के लिए कई कानून हैं जैसे आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013 यौन अपराधों से बाल सुरक्षा अधिनियम और अगर पीड़ित दलित या आदिवासी समुदाय से हैं तो अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार निवारण आधिनियम। समय के साथ कानूनों में बदलाव किया गया। 2015 के अंत तक पुलिस के पास दर्ज हुए बलात्कार की शिकायतों की संख्या में 39 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। 2012 में 24,923 मामलों के मुकाबले 2015 में 34,651 मामले दर्ज हुए।

बयानों को बदलने के लिए दबाव

23 सालल की युवती की 14 सितंबर 2015 को सामूहिक बलात्कार की शिकायत दर्ज कराने के बाद मध्यप्रदेश राज्य की पुलिस ने उसे एफआईआर की प्रति देने से इंकार कर दिया और अगले दिन वापस आने के लिए कहा ताकि मजिस्ट्रेट के आगे बयान दर्ज कराया जा सके। लड़की ने ह्यूमन राइट वाच को बताया कि जब वे पुलिस स्टेशन पहुंचे तो पुलिस ने उसके पिता को हवालात में डाल दिया और उसे अदालत से ये कहने के लिए कहा कि अपने पिता के कहने पर उसने बलात्कार की झूठी शिकायत दायर की थी।

पीड़िता बताती है, “पुलिस ने कई सादे पन्नों पर उससे हस्ताक्षर भी कराए, उसे थप्पड़ मारा और पिटाई भी की। पुलिस ने कथित तौर पर काजल के पिता को धमकी दी थी कि अगर उन्होंने इस बयान पर हस्ताक्षर नहीं किया। उनकी बेटी ने झूठी शिकायत दर्ज की तो उन्हें झूठे आरोपों में गिरफ्तार कर लिया जाएगा।”

लखनऊ की गैर सरकारी संस्था एपवा लगातार कई वर्षों से महिलाओं पर होने वाली हिंसा व यौन उत्पीड़न पर काम करती है। संस्था की समन्वयक ताहिरा हसन बताती हैं, “अक्सर ये मामले सामने आते हैं कि बलात्कार हो गया है लेकिन पुलिस फआईआर दर्ज नहीं कर रही। इसके पीछे कई बार आरोपी का दबंग होना होता है।”

इसका एक कारण ये भी है कि थाने अपना रिकॉर्ड नहीं खराब करना चाहते। कई बार तो हम लोगों को एक केस दर्ज़ कराने में महीनों भाग दौड़ करनी पड़ती है। यही कारण है कि कंवेंशन रेट लगातार कम हो रही है जब अपराध के मामले दर्ज़ ही नहीं होंगे तो सुनवाई कब होगी।

वो आगे बताती हैं, “इसके अलावा पीड़िता के साथ पुलिस का व्यवहार कैसा है। एक तो पीड़िता के साथ इतना बड़ा हादसा हो जाए दूसरा उससे उल्टे सीधे सवाल किए जाएं तो ये बहुत बुरी स्थिति होती है। इसके लिए थानों में कैमरे लगे होने चाहिए इससे पुलिस में भी एक डर रहेगा और एफआईआर दर्ज करवाने वालों को थोड़ी आसानी होगी।

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