सतावर की खेती: एक एकड़ में लागत और मुनाफे की पूरी जानकारी
सतावर की खेती: सतावर एक औषधीय फसल है। इसका प्रयोग कई प्रकार की दवाइयों को बनाने के लिए होता है। बीते कुछ वर्षों में इस पौधे की मांग बढ़ी है और इसकी कीमत में भी वृद्धि हुई है।
बरेली (उत्तर प्रदेश)। देश में किसान पारंपरिक फसलों से होने वाली कम आमदनी से परेशान है। ऐसे में कई किसान खेती में नए प्रयोग करके अपनी अमादनी बढ़ा रहे हैं। इन्हीं प्रयोगों में से एक है सतावर की खेती। हम आपको सतावर की खेती के बारे में बता रहे हैं।
सतावर एक औषधीय फसल है। इसका प्रयोग कई प्रकार की दवाइयों को बनाने के लिए होता है। बीते कुछ वर्षों में इस पौधे की मांग बढ़ी है और इसकी कीमत में भी वृद्धि हुई है।
सतावर की खेती करने वाले बरेली के गरगइयां गांव के युवा किसान मोहम्मद नाजिम बताते हैं, ''इस खेती से मेरी अच्छी आमदनी हो जा रही है। इसके खरीदार भी मिल जाते हैं। वहीं मैं नर्सरी लगाकर भी इससे फायदा कमा रहा हूं।''
नाजिम सतावर लगाने की विधि के बारे में बताते हैं, यह फसल जुलाई से लेकर सितंबर तक लगती है। यह दो फीट से दो फीट की दूरी पर लगता है। क्यारी से क्यारी दो फिट और पौधे से पौधे की दूरी दो फिट होनी चाहिए। एक एकड़ में 12 हजार पौधे लगते हैं।
कितना आता है खर्च
नाजिम सतावर की खेती का खर्च बताते हुए कहते हैं, ''एक एकड़ में फसल तैयार होने में करीब 80 हजार से 1 लाख रुपए का खर्च आता है। यह फसल 18 महीने में तैयार हो जाती है। इसको निकालने का समय फरवरी से अप्रैल का है। अगर इन महीनों में नहीं निकाल पाते तो अगले साल तक का इंतजार करना होगा।''
नाजिम बताते हैं, ''अगर मार्केट में रेट सही है तो एक एकड़ में दो लाख से तीन लाख तक का मुनाफा हो जाता है। अगर 20 हजार से 30 हजार रुपए कुंतल का रेट है।''
सतावर की खेती इस लिए भी फायदे की खेती है कि इसमें कीट पतंग नहीं लगते। वहीं, कांटेदार पौधे होने की वजह से जानवर भी इसे नहीं खाते हैं। नाजिम बताते हैं, ''एक खास बात है कि इस फसल में कोई बीमारी नहीं लगती। हां अगर क्षेत्र में नीलगाय या छुट्टा पशु हैं तो शुरुआत के दो तीन महीने इसे बचाना होता है, क्योंकि इसमें कांटे नहीं होते। बाद में इसमें कांटे आ जाते हैं तो जानवर भी इसे नहीं खाते।''
नाजिम सतवार की नर्सरी का भी काम करते हैं। वो कहते हैं, ''इस पौधे की मांग हाल के दिनों में बढ़ी है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, राजस्थान में मेरे द्वारा तैयार किए गए पौधे भेजे जाते हैं। लोग इस खेती को सीखने के लिए मुझे कॉल भी करते हैं।''
यूपी में बाराबंकी समेत कई जिलों में बागवानी विभाग द्वारा सतावर की खेती करने वाले किसानों को आर्थिक मदद भी दी जाती है। बाराबंकी के सूरतगंज ब्लॉक में टांडपुर गांव के किसान नरेंद्र शुक्ला बताते हैं कि ''मेरे पास दो एकड़ सतावर है। बागवानी विभाग द्वारा हमें करीब साढ़े तीन हजार रुपए की मदद मिली है।'' नरेंद्र शुक्ला सतावर की खेती करने वाले किसानों को सलाह देते हैं कि सतावर की तैयार फसल को स्टोर करके सर्दियों में बेचना चाहिए क्योंकि तब अच्छे दाम मिलते हैं। गर्मियों में रेट अच्छे नहीं मिल पाते।
सतावर जैसी फसलों के लिए अलग से कोल्ड स्टोरेज होते हैं जिनमें धनिया मिर्चा जैसे मसाले और सूखे मेवे रखे जाते हैं। उत्तर प्रदेश के लखनऊ, मुरादाबाद और बरेली में ऐसे कोल्ड स्टोरेज हैं। जानकारी के लिए किसान अपने जिले के जिला उद्यान अधिकारी और लखनऊ स्थित केंद्रीय औषध एवं सगंध पौध संस्थान में संपर्क कर सकते हैं।
सतावर की जड़ों को निकालना
सतावर की फसल तैयार होने के बाद उसकी जड़ों की खुदाई की जाती है। सतावर की जड़ों की खुदाई से पहले अगर खेत में सिंचाई कर दें तो भूमि नम हो जाती है, जिससे जड़ों को निकालने में आसानी होगी। कुदाली की सहायता से सावधानी से जड़ों को निकालना चाहिए। सतावर की जड़ों के ऊपर वाला छिलका जहरीला होता है इसलिए इसे ट्यूबर्स से अलग कर लिया जाता है। साथ ही सतावर की जड़ को हल्की धूप में सुखाया भी जाता है।
कहां-कहां होती है सतावर की खेती
यूपी (बरेली, सीतापुर, शाहजहांपुर, बाराबंकी, बदायूं, लखनऊ, प्रतापगढ़, रायबरेली, इलाहाबाद), मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, राजस्थान में सतावर की खेती बड़े पैमाने पर होती है। इसके अलावा नेपाल में भी सतावर की खेती होती है।
कहां कहां है मंडी
उत्तर प्रदेश के सआदतगंज, बदायूं, बरेली, दिल्ली में खारी बावली, मध्यप्रदेश नीमच और मुंबई में इसका कारोबार होता है।
सतावर की औषधी का उपयोग
पशुओं में दुग्ध बढ़ाने के लिए किया जाता है।
भूख बढ़ाने और पाचन सुधारने में भी सतावर की औषधी का उपयोग किया जाता है।
सतावर को विभिन्न चर्म रोग के इलाज के लिए भी उपयोग किया जाता है।
अनिद्रा दूर करने में भी सतावर का प्रयोग किया जाता है।