जब फूलन देवी के सरेंडर के लिए एसपी ने इकलौते बेटे को दांव पर लगा दिया था...

Update: 2018-07-25 04:57 GMT
फूलन देवी (फोटो साभार : गूगल) 

लखनऊ। 13 फरवरी 1983 का दिन भिंड के एमजीएस कॉलेज में लाल रंग का कपड़ा माथे पर बांधे हुए हाथ में बंदूक लिए फूलन देवी मंच की तरफ बढ़ीं तो लोगों की सांसें थम गईं। कहीं फूलन देवी आज फिर गोली न चला दें लेकिन मंच में पहुंचते ही बिना कुछ बोले बंदूक को माथे से छुआकर अर्जुन सिंह के पैरों पर रख दिया और आत्मसमर्पण कर दिया।

कुछ ऐसे किया था डकैत फूलन देवी ने सरेंडर जिन्हें बाद में उनकी मार्मिक कहानी सुनकर लोगों की खूब सहानुभूति मिली थी। हालांकि सरेंडर के समय एक बड़े समारोह के साथ दिखावा करने के कारण मध्यप्रदेश पुलिस और सरकार को लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा। वरिष्ठ पत्रकार केपी सिंह कहते हैं कि शायद हिंदुस्तान में ये किसी डकैत का पहला ऐसा सरेंडर था जिसपर पुलिस पर लोगों ने पत्थर बरसाए थे।

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साल 2001 में दिल्ली में 25 जुलाई को उनके बंगले के बाहर उनकी हत्या कर दी गई थी। चंबल की इस शेरनी के बारे में कहा जा सकता है कि अस्सी के दशक में गब्बर सिंह से ज्यादा फूलन देवी का खौफ लोगों में था। बहमई में उन्होंने 22 लोगों को एक साथ खड़ा करके गोली मार दी थी।

हालांकि फूलन देवी को पकड़ना एमपी पुलिस के लिए इतना आसान नहीं था। फूलन देवी के आत्मसमर्पण से लेकर उनकी गिरफ्तारी को कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार केपी सिंह बताते हैं, मध्यप्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह सरकार ने फूलन देवी के समर्पण से पहले चर्चित डाकू मलखान सिंह का सरेंडर किया था जो उस समय का सबसे बड़ा डकैत था। इसका सरकार को बड़ा श्रेय मिला लेकिन एक महिला डकैत जिसके ऊपर 22 लोगों की हत्या का आरोप था और जिसकी पूरी दुनिया की चर्चा थी उसके सरेंडर के लिए एमपी सरकार और पुलिस बेताब थी।

हालांकि मुश्किल ये थी कि एमपी में फूलन देवी के खिलाफ कोई केस नहीं था वहीं यूपी पुलिस की फूलन देवी से खास दुश्मनी थी। उनकी वजह से तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह को इस्तीफा देना पड़ा था। यूपी पुलिस फूलन देवी को एनकाउंटर के लिए ढूंढ रही थी। उन दिनों डकैतों के सफाये का सरकार और पुलिस पर जुनून चढ़ा था।

दूसरा उस समय एक फ्रेंच टीवी कंपनी ने फूलन देवी को लाइव शूट करने के लिए उस समय के एसपी राजेंद्र चौधरी को 20 लाख रुपए दिए थे।

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फूलन देवी के सरेंडर में बंगाल के लेखक कल्याण मुखर्जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे उन दिनों नक्सलियों पर किताब लिखने के लिए मध्यप्रदेश आए थे। उन्हीं दिनों मलखान सिंह ने सरेंडर की चर्चा चलाई, लेकिन उसकी शर्त थी कि उस समय के एसपी विजय राणा को हटाया जाए। इसके लिए कल्याण ने मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह से दो काम कराए। एक तो विजय राणा का ट्रांसफर और उनकी जगह राजेंद्र चौधरी की नियुक्ति और दूसरा मलखान सिंह का सरेंडर।

इसके बाद कल्याण मुखर्जी ने फूलन देवी के लोगों से संपर्क किया। फूलन देवी से ये कहा गया कि तुम्हारा एनकाउंटर नहीं होगा और तुम समर्पण कर देना। इस खबर की भनक जब यूपी पुलिस को लगी तो वह इससे चिढ़ गई। यूपी पुलिस ने फूलन को धमकी भेजी कि तुम्हारे परिवार का सफाया कर देंगे। फूलन ने इस पर अपने परिवार को सुरक्षित एमपी लाने को कहा।

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एसपी ने अपना इकलौता बेटा फूलन देवी को समर्पित कर दिया था

उस समय भिंड के टाउन इंस्पेक्टर मंगल सिंह चौहान को सात-आठ सिपाहियों के साथ जालौन जिले के कालपी कोतवाली भेजा गया जहां एक गांव में फूलन का परिवार रहता था, लेकिन यूपी पुलिस ने इंस्पेक्टर सहित सभी लोगों को पकड़कर जेल में डाल दिया मुकदमा चलाया। अगली सुबह किसी तरह उन सबकी जमानत हुई।

उधर मध्यप्रदेश में चंबल रेंज के डीआईजी इस समर्पण के खिलाफ थे। उनका मानना था कि डकैतों का सरेंडर नेम-फेम के लिए किया जा रहा है। उन्होंने फूलन के खास आदमी बाबा मुस्लिम के भाई को किसी बहाने बुलाकर उस पर गोली चलवा दी। उस डकैत को तो बचा लिया गया लेकिन इस वजह से डीआईजी और इंस्पेक्टर को काफी फटकार सुननी पड़ी और उनका ट्रांसफर हो गया। उधर फूलन देवी इस घटना से बहुत गुस्से में थीं और सरेंडर से इनकार कर दिया था। कहा जाता है कि एसपी राजेंद्र चौधरी के काफी मनाने के बाद भी जब फूलन नहीं मानी तो अपना इकलौता बेटा फूलन के सुपुर्द करते हुए एसपी ने कहा कि जब यकीन हो जाए तब समर्पण कर देना, तब तक जमानत के तौर पर मेरा बेटा रख लो।

17 जून 1982 को मलखान सिंह का समर्पण हो गया था लेकिन इस घटना की वजह से फूलन ने 13 फरवरी 1983 में समर्पण किया।

उधर अर्जुन सिंह को पता था कि फूलन के खिलाफ कोई केस न होने पर सरेंडर का इतना ड्रामा रचने का उनको जवाब देना होगा इसलिए उन्हो‍ंने खूंखार डकैत घंसा बाबा सहित कई छोटे मोटे गैंग को भी सरेंडर के लिए तैयार करा लिया।

एक दिन पहले फूलन ने पत्रकार को मारा था थप्पड़

सरेंडर से एक दिन पहले दिल्ली से पत्रकारों को फूलन देवी से बातचीत के लिए मध्यप्रदेश बुलाया गया। तब तक फूलन देवी को अपने लाइव शूट की बात पता चल चुकी थी वह इससे बेहद चिढ़ी हुई थीं। उस समय फूलन ने दिल्ली के एक वरिष्ठ पत्रकार को अपनी फोटो लेने पर थप्पड़ मार दिया था। फूलन ने कहा कि बिना पैसे दिए फोटो क्यों ले रहे हो। इसके बाद पत्रकार भी काफी भड़क गए।तब एसपी राजेंद्र चौधरी ने फिर स्थिति संभाली।

अगले दिन भिंड के एमजीएस कॉलेज में जब फूलन देवी का सरेंडर किया जा रहा था तो स्थानीय लोग और कॉलेज में छात्र संघ ने सरेंडर को इतना बड़ा कार्यक्रम बनाने के लिए सरकार का विरोध किया और पुलिस पर पत्थरबाजी भी हुई। छात्र संघ के अध्यक्ष तो मंच पर चढ़ गए और अर्जुन सिंह के हाथ से माइक छीनते हुए बोले कि हत्यारा मुख्यमंत्री ही है।

इसके बाद फूलन सिंह को ग्वालियर जेल में खुले माहौल में रखा गया जहां कोई भी उनसे मिल सकता था। उनके भाई को एमपी पुलिस में नौकरी दिलाई गई। उनकी बहन को जमीन भी मुहैया कराई गई। तब जाकर पत्रकार माला सेन के जरिए फूलन देवी की आपबीती और उनका मार्मिक रूप दुनिया के सामने आया।

जेल के अंदर से ही फूलन ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट से अर्जुन सिंह के खिलाफ दक्षिणी दिल्ली सीट पर उपचुनाव लड़ा था। इसके बाद समाजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह ने इन्हें छुड़ाया और फिर फूलनदेवी ने मिर्जापुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा।

कालपी नहीं गईं लेकिन वहां के विकास के लिए काम किया

मिर्जापुर से सांसद बनने के बाद फूलन अपने पैदायशी स्थान कालपी तो कभी वह नहीं गईं लेकिन वहां के विकास की बहुत परवाह करती थी। सांसद बनने के बाद उन्हो‍ंने कालपी के विकास के लिए कई काम करवाए। लोगों में भी उनके प्रति सहानुभूति भी बढ़ गई थी। फूलन के हत्यारे शेर सिंह राणा को कभी सम्मान नहीं मिला लेकिन फूलन देवी को वहां हमेशा श्रद्धा की नजर से देखा जाता है।

अजब इत्तेफाक : ठाकुरों पर ही किया सबसे ज्यादा भरोसा

पत्रकार केपी सिंह बताते हैं कि फूलन के साथ एक इत्तेफाक रहा है कि भले ही उन्हो‍ंने बदला लेने के लिए बहमई में 22 ठाकुरों को मार गिराया था लेकिन उन्होंने जिन पर भी भरोसा किया वे सब ठाकुर ही थे। समर्पण कराने वाले मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह भी ठाकुर थे। इसके बाद भिंड का इंस्पेक्टर मंगल सिंह चौहान भी ठाकुर, फूलन सिंह को बंदूक देने वाला भी क्षत्रिय और सरेंडर करने के बाद जिस व्यक्ति से पुलिस वैन में बैठकर एक घंटे तक बातचीत की थी वह भी क्षत्रीय ही था।

(जैसा कि वरिष्ठ पत्रकार केपी सिंह ने गां‍व कनेक्शन को बताया)

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