सवर्णों को आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर, बताया- असंवैधानिक

Update: 2019-01-10 12:48 GMT

लखनऊ। सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। मोदी सरकार के इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की गई है। एक एनजीओ द्वारा संविधान को संशोधित करके आर्थ‍िक आधार पर आरक्षण देने को चुनौती दी गई है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यूथ फॉर इक्वालिटी नाम के एनजीओ ने याचिका में इन्दिरा साहनी फैसले का हवाला देते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय की गई है। सिर्फ आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। ये असंवैधानिक है। याचिका में अपील की गई है कि इस बिल को गैर संवैधानिक घोषित किया जाए।

बता दें, सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण बिल संबंधी 124वां संविधान संशोधन बिल लोकसभा और राज्‍यसभा में पास हो गया। अब इस बिल को राष्‍ट्रपति की मंजूरी के बाद सामान्‍य वर्ग के आर्थ‍िक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण मिल सकेगा। इसके साथ ही आर्थ‍िक तौर पर आरक्षण के लिए दरवाजे खुल गए हैं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आए इस बिल को मोदी सरकार का मास्‍टरस्‍ट्रोक भी कहा जा रहा है, जिससे बीजेपी अपने कोर वोटर्स माने जाने वाले सवर्णों के बीच पैठ बना सके।

राज्‍यसभा में संशोधन बिल पर चर्चा करते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस फैसले को मोदी सरकार का 'स्‍लॉग ओवर (अंतिम ओवर) में लगाया गया छक्‍का' बताया। बिल देरी से लाने के आरोपों पर कानून मंत्री ने कहा कि ''क्रिकेट में छक्का आखिरी ओवर में लगता है और यह पहला छक्का नहीं है अभी विकास और बदलाव के लिए अन्य छक्के भी आने वाले हैं।''

क्‍या है इंदिर साहनी फैसला?

1992 में नरसिम्‍हा राव सरकार के अगड़ों को आरक्षण देने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देकर इंदिरा साहनी पूरे देश में चर्चित हो गई थीं। उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए ही सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय की थी। कोर्ट ने कहा था कि रिजर्वेशन की लिमिट 50 फीसदी की सीमा क्रॉस नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि संविधान के अनुच्छेद-16 (4) कहता है कि पिछड़ेपन का मतलब सामाजिक पिछड़ेपन से है। शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ेपन, सामाजिक पिछड़ेपन के कारण हो सकते हैं लेकिन अनुच्छेद-16 (4) में सामाजिक पिछड़ेपन एक विषय है। 

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