प्लास्टिक कचरे को रिसाइकिल कर बना सकते हैं ईंट और टाइल्स जैसे उपयोगी उत्पाद
सिर्फ 100 रुपए के खर्च में प्लास्टिक कचरे के उपयोग से एक वर्ग फीट की 10 टाइलें बनाई जा सकती हैं।
नई दिल्ली। प्लास्टिक कचरा, आज दुनिया में एक बड़ी समस्या बन गई है, लेकिन ऐसे में वैज्ञानिकों ने नई तकनीक विकसित की है जिससे बेकार प्लास्टिक के कचरे से ईंट व टाइल जैसे उपयोगी उत्पाद बना सकते हैं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), रुड़की के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसमें पॉलिमर तत्व एचडीपीई या उच्च घनत्व वाली पॉलीथीन सामग्री, कुछ रेशेदार तत्वों और संस्थान द्वारा विकसित किए गए खास तरह के रसायन के उपयोग से इस तरह के उत्पादों का निर्माण किया जा सकेगा।
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आईआईटी, रुड़की के रसायन अभियांत्रिकी विभाग के वैज्ञानिक डॉ. शिशिर सिन्हा बताते हैं, "यह बेहद आसान तकनीक है, जिसका उपयोग सामान्य लोग भी कर सकते हैं। इसके लिए प्लास्टिक, रेशेदार सामग्री और रसायन के मिश्रण को 110 से 140 डिग्री पर गर्म किया जाता है और फिर उसे ठंडा होने के लिए छोड़ देते हैं। इस तरह एक बेहतरीन टाइल या फिर ईंट तैयार हो जाती है।"
प्लास्टिक कचरे, टूटी-फूटी प्लास्टिक की बाल्टियों, पाइप, बोतल और बेकार हो चुके मोबाइल कवर इत्यादि के उपयोग से इस तरह के उत्पाद बना सकते हैं। रेशेदार तत्वों के रूप में गेहूं, धान या मक्के की भूसी, जूट और नारियल के छिलकों का उपयोग किया जा सकता है।
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राष्ट्रीय रासायनिक लैबोरट्ररी, एनसीएल से प्राप्त डेटा के मुताबिक भारत में सबसे ज्यादा प्लास्टिक कचरा प्लास्टिक बोतलों से ही आता है। 2015-16 में करीब 900 किलो टन प्लास्टिक बोतल का उत्पादन हुआ था।
शोध समूह द्वारा विकसित रसायन ओलेफिन पर आधारित एक जैविक रसायन है। यह कंपोजिट बनाने के लिए पॉलिमर और रेशेदार या फाइबर सामग्री को बांधने में मदद करता है। डॉ. सिन्हा के अनुसार, "इस रसायन को घरेलू सामग्री के उपयोग से बनाया जा सकता है। 50 से 100 ग्राम रसायन बनाने का खर्च करीब 50 रुपए आता है। महज 100 रुपये के खर्च में प्लास्टिक कचरे के उपयोग से एक वर्ग फीट की 10 टाइलें बनाई जा सकती हैं। यह तकनीक ग्रामीण लोगों के लिए खासतौर पर फायदेमंद हो सकती है। इस रसायन पर पेंटेट मिलने के बाद इसके फॉर्मूला के बारे खुलासा किया जाएगा।"
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डॉ. सिन्हा के आगे बताते हैं, "हमारी कोशिश इस कंपोजिट में इंसान के बालों का उपयोग रेशेदार तत्व के रूप में करने की है क्योंकि ग्रामीण इलाकों में अत्यंत गरीब व्यक्ति भी बालों की व्यवस्था कर सकता है। बाल यहां वहां पड़े रहते हैं और कई बार जल-निकासी को बाधित करते हैं। बालों में लचीलापन और मजबूती दोनों होती है। हल्का होने के साथ-साथ येजैविक रूप से अपघटित भी हो सकते हैं। कंपोजिट में बालों के उपयोग से संक्षारण प्रतिरोधी उत्पाद बनाए जा सकते हैं।" (इंडिया साइंस वायर)