लखनऊ। उत्तर प्रदेश में इस साल 'वृक्षारोपण महाकुंभ' के तहत एक ही दिन (9 अगस्त 2019) में 22 करोड़ पौधे लगाए गए हैं। लेकिन इन पौधों में सबसे ज्यादा एक खास किस्म का पेड़ है जिसे कर्नाटक सरकार ने बैन कर रखा है। इस पेड़ का नाम यूकेलिप्टस है। कर्नाटक की सरकार राज्य में गिरते भूजल के पीछे इस पेड़ को एक वजह मानती है।
9 अगस्त 2019 को जब यह पौधरोपण कार्यक्रम हुआ तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था, ''हमें समझना होगा कि अगर पेड़ हैं तो जल है और जल नहीं रहेगा तो कल नहीं होगा।'' लेकिन मुख्यमंत्री के इस कथन से उलट सरकार ने इस कार्यक्रम में बहुतायत में ऐसे पेड़ लगवा दिए जो भूगर्भ जल का बहुत ज्यादा दोहन करते हैं। यह स्थिति तब और भयावह नजर आती है जब प्रदेश का ग्राउंड वॉटर लेवल लगातार कम हो रहा है।
बात करें प्रदेश में भूजल के गिरते स्तर की तो सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड (CGWB)की रिपोर्ट - Ground water year book 2017-18 से इसे समझा जा सकता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2007 से लेकर 2017 के बीच उत्तर प्रदेश के 637 कुओं का वॉटर लेवल देखा गया। इन 637 कुओं में से 450 कुओं के वॉटर लेवल में गिरावट देखी गई, जो कि 71% है। यानि साफ है कि प्रदेश में भूजल खतरनाक स्तर पर घट रहा है और अब इसका असर कई इलाकों में दिखने को मिल रहा है।
ऐसे में जब भूजल का स्तर लगातार नीचे गिर रहा हो तब इस तरह के पेड़ लगाना जो भूजल का दोहन अधिक करते हों एक समझदार कदम नजर नहीं आता। 'वृक्षारोपण महाकुंभ' के मिशन डायरेक्टर विभाष रंजन बताते हैं, ''हमारे पास प्रदेश भर से जो डिमांड आई उसमें 20% यूकेलिप्टस के पौधों की डिमांड थी। हमने इसे कम करते हुए 10% यूकेलिप्टस पौधे लगाए हैं।'' अगर प्रदेश भर में लगाए गए 22 करोड़ पौधों का 10% के हिसाब से अनुपात निकालें तो करीब 2 करोड़ 20 लाख यूकेलिप्टस के पेड़ लगाए गए हैं।
इतनी अधिक संख्या में यूकेलिप्टस लगाने की बात को स्थानीय स्तर पर प्रधान और डीएफओ भी मान रहे हैं। पीलीभीत के माधवटांडा ग्राम पंचायत के प्रधान के प्रतिनिधि योगेश्वर सिंह बताते हैं, ''इस साल हमारी ग्राम पंचायत में 2500 पेड़ लगाए गए हैं। इसमें से 700 पेड़ यूकेलिप्टस के हैं। यह पेड़ हमें सरकर की ओर से फ्री में मिले थे।''
इसी तरह बाराबंकी के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (डीएफओ) एस.के. सिंह बताते हैं, ''प्रदेश में 22 करोड़ पौधरोपण में से बाराबंकी में 44 लाख लाख पौधे लगाने थे। इसमें से वन विभाग की ओर से 14 लाख 62 स्थानों पर लगाए गए थे। इसमें जंगल की जमीन, ग्राम समजा की जमीन, सड़क के किनारे, नहर के किनारे जैसी सरकारी जमीनों पर वन विभाग ने पौधे लगाए। इसके अलावा बचे हुए 30 लाख पौधों को बाराबंकी की 1166 ग्राम पंचायत में लगवाया गया है। इन 30 लाख पौधों में से करीब 10 से 12 लाख यूकेलिप्टस के पेड़ हैं। इतनी ही संख्या सागौन की भी है।''
बाराबंकी के डीएफओ की तरह शाहजहांपुर के डीएफओ आदर्श कुमार भी मनते हैं कि 'वृक्षारोपण महाकुंभ' के दौरान यूकेलिप्टस और सागौन के पौधे ज्यादा लगाए गए हैं। आदर्श कुमार बताते हैं, ''शाहजहांपुर में लगभग 39 लाख पौधे लगे हैं। इसमें से करीब 65% पौधे यूकेलिप्टस और सागौन के हैं।''
ऐसे में साफ होता है कि प्रदेश भर में यूकेलिप्टस के पौधे बड़ी मात्रा में लगाए गए हैं। यूकेलिप्टस कितना खतरनाक हो सकता है इस बात की गवाही कर्नाटक सरकार और कर्नाटक हाईकार्ट का एक आदेश देता है जिसमें राज्य में यूकेलिप्टस के पौधरोपण पर पूरी तरह से बैन लगाया गया है।
इन आदेशों से साफ होता है कि यूकेलिप्टस के पौधों को लगाना क्षेत्र के भूगर्भ जल के लिए अच्छी बात नहीं है। इस मामले पर वॉटर रिसोर्स मैनेजमेंट के विशेषज्ञ डॉ. वेंकटेश दत्ता कहते हैं, ''यूकेलिप्टस का पेड़ ग्राउंड वॉटर बहुत तेजी से खींचता है। अगर इसे लगाया भी जा रहा है तो ऐसी जगह लगाना चाहिए जहां वॉटरलॉगिंग की समस्या होती है। वहां भी यह लिमिटेड तरीके से लगाए जाने चाहिए। इसकी जगह पीपल, पाकड़, बरगद, पलास जैसे पेड़ लगाना ज्यादा अच्छा होगा।''
ऐसा नहीं कि इन पेड़ों के लगते समय किसी ने इसका विरोध नहीं किया था। बस्ती जिले में जून 2019 में भारत महापरिवार पार्टी की ओर से पौधरोपण में यूकेलिप्टस का पेड़ लगाने का विरोध दर्ज कराया गया था। उस वक्त बस्ती के जिलाधिकारी राज शेखर को एक ज्ञापन भी सौंपा गया था। महापरिवार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमरीश देव गुप्ता बताते हैं, ''हमने उस वक्त जिले में मौजूद कई नर्सरी का दौरा किया था। हर जगह यूकेलिप्टस के पौधे बहुत अधिक मात्रा में रखे गए थे। यही बात में गांव में पहुंचाए गए जो कि अब हर सड़क और मेढ़ पर नजर आते हैं। हमने विरोध दर्ज कराया लेकिन उसका कोई खास असर नहीं हुआ और अब तो पूरे जिले में यूकेलिप्टस के पेड़ लगे हैं।''