दलित प्रदर्शन : SC/ST एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान कई राज्यों में हिंसा

Update: 2018-04-02 19:43 GMT
प्रदर्शनकारियों ने गाजियाबाद में वाहनों को कर दिया आग के हवाले।

अनुसूचित जाति/जनजाति (एससी/एसटी) अत्याचार रोकथाम अधिनियम को कमजोर करने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विरोध में आयोजित भारत बंद के दौरान देश के कई हिस्से में प्रदर्शन हिंसक हुए, जिससे मध्य प्रदेश में 6 लोगों की मौत हो गई है. जबकि राजस्थान में 1 और उत्तर प्रदेश में 1 व्यक्ति की जान चली गई। इस बीच केंद्र सरकार ने प्रदर्शनकारी दलितों को शांत करने के लिए कहा कि उसने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है जिससे न्यायालय के 20 मार्च के फैसले की समीक्षा हो सके। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से अनुसूचित जाति अत्याचार मामले में तत्काल गिरफ्तारी नहीं हो सकेगी।

पटना में ट्रेन रोकर प्रदर्शन करते प्रदर्शनकारी। 

पंजाब, राजस्थान, झारखंड, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और ओडिशा नें प्रदर्शनकारी पुलिस के साथ भिड़ गए। हिंसा और आगजनी के कारण राज्यों में सामान्य हालात बिगड़ते दिखाई दिए। मध्यप्रदेश में हिंसा के दौरान दो लोगों की मौत और दर्जनों के घायल होने के कारण झड़प ने घातक रूप ले लिया, सके कारण अधिकारियों को कई जगह कर्फ्यू लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

पुलिस ने कहा कि भिंड और मुरैना में एक-एक व्यक्ति की मौत हुई है। वहीं, ग्वालियर के कलेक्टर राहुल जैन ने बताया, "उनके जिले में हुई हिंसा की घटनाओं में कम से कम 22 लोग घायल हुए हैं, जिनमें कुछ की हालात गंभीर है। जिले में बड़े पैमाने पर लोगों के इकठ्ठा होने पर निषेधात्मक आदेश लागू हैं।"

गया में बाइक को कर दिया आग के हवाले। 

प्रदर्शनकारियों ने रेल ट्रैक पर रेलों को रोका

प्रदर्शनकारियों ने रेल ट्रैक पर रेलों को रोका और वाहनों में आग लगा दी। खाली सड़कों पर आग की लपटें और धुआं दिखाई दिया। मध्य प्रदेश सरकार ने भिंड, मुरैना और ग्वालियर में हालात पर काबू पाने के लिए सेना को बुलाया है। पंजाब और हरियाणा में भी बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देखे गए। राज्य में दुकानें, शैक्षिक संस्थान व अन्य प्रतिष्ठान बंद रहे।

हंगामे के कारण रेल यातायात रहा बाधित।

पंजाब में 10वीं व 12वीं कक्षाओं को स्थगित कर दिया गया। राज्य की करीब 2.8 करोड़ की आबादी में सबसे ज्यादा 32 फीसदी दलित हैं। जालंधर, अमृतसर और भठिंडा में सैकड़ों की संख्या में प्रदर्शनकारियों ने तलवारों, डंडों, बेसबॉल के बल्लों और झंडों के साथ दुकानों और अन्य प्रतिष्ठानों को जबरन बंद कराया। रोहतक और पड़ोसी राज्य हरियाणा के अन्य शहरों में भी विरोध प्रदर्शन हुए। वहीं बिहार में पुलिस ने कहा कि कार्यकर्ताओं ने रेल और सड़क यातायात को रोका। भीड़ ने बाजारों, दुकानों के साथ-साथ शिक्षा संस्थानों को बंद करवाया।

भीम सेना और अन्य दलित संगठनों के समर्थकों ने तीन दर्जन लंबी दूरी वाली और स्थानीय रेलों को रोक दिया, जिससे हजारों यात्री परेशान रहे। पूर्वी मध्य रेलवे के अधिकारी ने बताया, "प्रदर्शन के कारण रेल सेवा बहुत बुरी तरह से बाधित हुई।" इसके साथ ही वैशाली, मुजफ्फरपुर, नवादा, पटना और भागलपुर में हिंसा की सूचना मिली। यहां भी प्रदर्शनकारी पुलिस से भिड़ गए।

जोधपुर में प्रदर्शन करते दलित समुदाय के लोग।

पत्रकारों के कैमरे तोड़ दिए

उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में भी हिंसा भड़क गई। प्रदर्शनकारियों ने हापुड़, आगरा, मेरठ और सहरानपुर में पुलिस पर पत्थर बरसाएं और दुकानों पर हमला कर उन्हें लूटा। प्रदर्शनकारियों ने कई गाड़ियों को अपना निशाना बनाया और उनकी खिड़कियां तोड़ दीं। कुछ जगहों पर सरकारी संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचाया गया। मेरठ में पुलिस दल पर कुछ लोगों ने कथित रूप से गोलियां चलाईं जबकि एक यात्री बस को आग के हवाले कर दिया।

आरक्षण समर्थक समूहों ने मुजफ्फरनगर रेलवे स्टेशन पर तोड़फोड़ की और कोच्चि एक्सप्रेस पर पथराव किया। मेरठ में भी 500 दलित युवकों ने मीडिया को निशाना बनाया और प्रदर्शन की तस्वीरें खींचने का प्रयास कर रहे पत्रकारों के कैमरे तोड़ दिए। बड़े पैमाने पर हिंसा और गुस्से के बीच केंद्र ने सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत शिकायत दर्ज कराने पर आरोपी को तुरंत गिरफ्तार नहीं करने के फैसले को वापस लेने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।

सर्वोच्च न्यायालय ने 20 मार्च को अपने एक आदेश में कहा था कि पुलिस इस अधिनियम के तहत दर्ज शिकायत पर कार्रवाई करने से पहले उसकी सत्यता का पता लगाने के लिए जांच करेगी।केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार पूरे सम्मान के साथ शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए तर्क से सहमत नहीं है।उन्होंने कहा कि सरकार के वरिष्ठ वकील इस मामले में अपनी सभी कानूनी तैयारी और अधिकार के साथ दलील देंगे और इस फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता की बात कहेंगे।

साभार: भाषा

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